सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बाबरी मसजिद विध्वंस मामले में सीबीआई की लखनऊ स्थित विशेष अदालत से पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी व अन्य के ख़िलाफ़ 31 अगस्त तक जांच पूरी करने और फ़ैसला देने के लिए कहा है। इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी व उमा भारती के ख़िलाफ़ भी जांच चल रही है।
अप्रैल, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने जांच पूरी करने के लिए सीबीआई की अदालत को 2 साल का समय दिया था। जुलाई, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से 9 महीने में फ़ैसला देने के लिए कहा था। यह समय अवधि अप्रैल में ख़त्म हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में जल्द फ़ैसला आ सके, इसके लिए सीबीआई की विशेष अदालत के जज एस.के.यादव का कार्यकाल भी बढ़ा दिया था। यादव को सितंबर, 2019 में रिटायर होना था।
सीबीआई की विशेष अदालत के जज ने शीर्ष अदालत को पत्र लिखकर लॉकडाउन के चलते कुछ और समय देने की मांग की थी। जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया है। शीर्ष अदालत ने सीबीआई की कोर्ट से कहा है कि वह वीडियो कांफ़्रेंसिंग का इस्तेमाल करे और अगस्त की समय सीमा तक मामले को निपटा ले।
आडवाणी, जोशी और उमा भारती के अलावा इस मामले में बीजेपी के पूर्व सांसद विनय कटियार और हिंदूवादी नेता साध्वी ऋतंभरा भी अभियुक्त हैं। विश्व हिंदू परिषद के नेता गिरिराज किशोर, अशोक सिंघल और विष्णु हरि डालमिया भी मामले में अभियुक्त थे लेकिन उनकी जांच के दौरान मौत हो चुकी है।
6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने बाबरी मसजिद को गिरा दिया था। इससे पहले आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए देश भर में रथ यात्रा निकाली थी। यह रथ जहां-जहां गया, वहां-वहां दंगे हुए थे और सैकड़ों लोग मारे गए थे।
वर्षों से चले आ रहे राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फ़ैसला सुनाया था। कोर्ट ने फ़ैसले में विवादित जगह राम लला विराजमान को देने का निर्देश दिया था। इसके अलावा मुसलमानों को मसजिद के लिए 5 एकड़ ज़मीन देने का भी निर्देश दिया था।