सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा है कि प्रवासी मजदूरों को उनके घरों को वापस जाने से रोकना असंभव है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को मजदूरों के लिए शेल्टर या फ़्री ट्रांसपोर्ट का निर्देश देने से भी इनकार कर दिया।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस संजय कौल की बेंच ने कहा, ‘कोई इसे कैसे रोक सकता है, जब वे रेलवे ट्रैक पर सो जाएं।’ अदालत ने महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश में अपने घर को लौट रहे 16 मजदूरों के औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर मारे जाने का मुद्दा उठाए जाने पर यह टिप्पणी की।
इन मजदूरों के ऊपर से एक मालगाड़ी गुजर गई थी। सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर घर लौट रहे ये मजदूर रेलवे ट्रैक के किनारे-किनारे चल रहे थे और भयंकर थकान के कारण ट्रेन की पटरियों पर ही सो गए थे।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘आप ऐसे लोगों को कैसे रोकेंगे, जो चलते रहना चाहते हैं। क्या कोई उन्हें वहां जाकर रोक सकता है। किसी के लिए भी उन्हें रोक पाना असंभव है।’
अदालत ने कहा कि लेकिन कुछ लोग इंतजार नहीं करना चाहते और उन्होंने पैदल ही जाना शुरू कर दिया। केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच से कहा कि प्रवासियों को अपनी बारी आने तक थोड़ा धैर्य रखते हुए इंतजार करना चाहिए था।
केंद्र सरकार की ओर से अदालत को यह बताए जाने पर कि उसने घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों के लिए इंतजाम किए हैं, अदालत ने याचिका पर आगे सुनवाई से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता की मांग थी कि अदालत सभी जिलाधिकारियों को फंसे हुए लोगों की पहचान करने का निर्देश दे और उनके लिए शेल्टर, खाने और फ़्री ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करे।
लॉकडाउन के चलते काम-धंधे बंद होने से देश भर में महानगरों से मजदूर अपने घरों की ओर पैदल ही लौट रहे हैं। इनमें कई मजदूर रास्ते में दुर्घटनाओं में और कई भूख व थकान के कारण दम तोड़ चुके हैं।