चुनाव आयुक्त (ईसी) अरुण गोयल की नियुक्ति प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सवाल उठा दिया। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक अदालत ने कहा कि सरकार ने नियुक्ति प्रक्रिया की जो फाइल कोर्ट में जमा कराई है, उसको देखने से ही पता चलता है कि पूरी प्रक्रिया में सरकार ने जल्दबाजी दिखाई है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
पीटीआई के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जैसा इस अदालत ने देखा कि गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइल को "बिजली की गति" से मंजूरी दे दी गई।
बता दें कि अरुण गोयल ने पिछले शुक्रवार को अचानक वीआरएस लिया था और शनिवार को उन्हें सरकार ने ईसी नियुक्त कर दिया। इस घटनाक्रम को सत्य हिन्दी ने 19 नवंबर को ही रिपोर्ट किया था कि सरकार उन्हें किस तरह चुनाव आयोग में लेकर आई है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान ईसी अरुण गोयल की नियुक्ति फाइल को सरकार से तलब किया था। सरकार की ओर से एजी ने आज गुरुवार को इस फाइल को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के.एम. जोसेफ की संवैधानिक बेंच के सामने पेश किया। पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को कहाः
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यह किस तरह का मूल्यांकन है? हम अरुण गोयल की साख की योग्यता पर नहीं बल्कि प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं।
- जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच, सुप्रीम कोर्ट में 24 नवंबर को
अभी जब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी जारी थी तो बीच में वकील प्रशांत भूषण ने कुछ कहना चाहा तो एजी वेंकटरमणी ने प्रशांत भूषण से कहाः
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कृपया थोड़ी देर के लिए अपना मुंह बंद रखें। मैं इस मुद्दे को समग्रता में देखने का अनुरोध करता हूं।
- एजी वेंकटरमणी, सुप्रीम कोर्ट में 24 नवंबर को
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से ईसी अरुण गोयल की नियुक्ति की मूल फाइल का अवलोकन किया। जिसे केंद्र ने बेंच के सामने रखा था। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फाइल देखने के बाद कहाः
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1985 बैच के आईएएस अधिकारी गोयल को एक ही दिन में सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) मिल गई, उनकी फाइल को कानून मंत्रालय ने एक ही दिन में मंजूरी दे दी, फिर चार नामों का एक पैनल प्रधानमंत्री के सामने रखा गया और गोयल के नाम को मंजूरी मिली। फिर उसी 24 घंटे के अंदर राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी।
- जस्टिस के एम जोसेफ की संवैधानिक बेंच, सुप्रीम कोर्ट में 24 नवंबर को
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई मंगलवार को शुरू की थी। कल बुधवार को सुनवाई करते हुए संवैधानिक बेंच ने कहा था कि हमे ऐसा सीईसी चाहिए जो प्रधानमंत्री पर भी कार्रवाई कर सके। संवैधानिक बेंच ने यह टिप्पणी मौखिक की थी। उसने अभी कोई आदेश पारित नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एजी के सामने साफ कर दिया था कि इस मामले में सरकार को कोई न कोई फैसला लेना ही पड़ेगा। बेहतर होगा कि अदालत को सूचित कर दिया जाए कि वो क्या कदम उठाने जा रही है।
मंगलवार को उसने कहा था कि देश में एक के बाद एक केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग की आजादी को पूरी तरह नष्ट कर दिया। 1996 से किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) को पूरे 6 साल का कार्यकाल नहीं मिला। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसके लिए कोई कानून नहीं बनाया गया। इस वजह से यह खतरनाक कदम हर सरकार उठाती रही और अल्प समय के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करती रही।
बता दें कि संवैधानिक बेंच चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम जैसी व्यवस्था की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इस संबंध में चार जनहित याचिकाएं (पीआईएल) सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। इनमें मांग की गई है कि सीईसी और ईसी की नियुक्तियों के लिए राष्ट्रपति के पास नामों की सिफारिश करने के लिए एक तटस्थ और स्वतंत्र चयन पैनल बनाया जाए। इसके लिए अदालत केंद्र सरकार को निर्देश दे। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन, वकील प्रशांत भूषण, कालीश्वरम राज पैरवी कर रहे हैं। इन लोगों ने तर्क दिया है कि पूरी तरह से तटस्थ चयन पैनल होने के जरिए ही चुनाव आयोग की आजादी बचाई जा सकती है ताकि ईसीआई पूरी तरह से राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त हो।