सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को अपराध बनाने वाले क़ानून पर शुक्रवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। यानी एक तरह से अब इस क़ानून की संवैधानिक वैधता की जाँच की जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए मुसलिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के ख़िलाफ़ याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह नोटिस जारी किया है। तीन तीलक़ को अपराध बनाए जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएँ दायर की गई हैं। कोर्ट इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कोर्ट से कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही तत्काल तीन तलाक़ को अवैध क़रार दे दिया है तो ऐसे में इसे अपराध बनाने की ज़रूरत नहीं है। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की बेंच ने तीन तलाक़ को अवैध क़रार दिया था। इसके बाद सरकार ने इसी साल तीन तलाक़ पर क़ानून बनाया है। बता दें कि तीन तलाक़ को अपराध बनाए जाने का कई मुसलिम धार्मिक संगठन विरोध कर रहे हैं। इस क़ानून के तहत ऐसा करने के जुर्म में दोषी को 3 साल तक की कैद की सजा हो सकती है। क़ानून में इसी बात को लेकर कई मुसलिम संगठनों को आपत्ति है।
सुनवाई के दौरान सलमान खुर्शीद की दलील पर जस्टिस रमण ने पूछा, 'मुझे संदेह है। देखिए, हिंदू समुदाय में बाल विवाह और दहेज जैसी कई धार्मिक प्रथाएँ हैं। ऐसी प्रथाएँ अभी भी चल रही हैं। उनको अपराध बनाया जा चुका है। यदि यह अभी भी प्रचलित है तो तीन तलाक़ को भी उसी तरह अपराध क्यों नहीं बनाया जा सकता है’
केरल सुन्नी मुसलिम संगठन के एक गुट ‘समस्ता केरल जमीअत उल उलेमा’ द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि 30 जुलाई को संसद द्वारा पारित क़ानून ‘मुसलिमों वर्ग विशेष के लिए’ था और ‘संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन’ था। याचिका में कहा गया है कि ऑर्डिनेंस (बाद में क़ानून बन गया) लाने का मकसद तीन तलाक़ को ख़त्म करना नहीं, बल्कि मुसलिम पतियों को सज़ा देना था। पत्नियों का संरक्षण पति को सज़ा देकर हासिल नहीं किया जा सकता है।'
तीन तलाक़ को अपराध क़रार देने वाले विधेयक को इसी साल 31 जुलाई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दी है। इसके बाद मुसलिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक क़ानून बन गया है। यह क़ानून 19 सितंबर 2018 से लागू माना जाएगा। इससे पहले 30 जुलाई को राज्यसभा में यह विधेयक पास हो गया था। राज्यसभा में विधेयक पर वोटिंग के दौरान विपक्ष के कई सांसद सदन में मौजूद नहीं थे। इससे राज्यसभा में यह विधेयक पास कराने की मोदी सरकार की राह आसान हो गई थी। लोकसभा में तो सरकार ने इस विधेयक को आसानी से पास करा लिया था।