बड़े-बड़े निजी अस्पताल कोरोना इलाज से कन्नी काटते रहे हैं। वे अस्पताल भी जिम्मेदारी से बचते रहे हैं जिन्होंने सरकार से मुफ़्त ज़मीन या अनुदान लिया है। एक अहम घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि सरकार से मुफ़्त ज़मीन लेने वाले अस्पताल कोरोना रोगियों का मुफ़्त इलाज क्यों नहीं कर सकते
सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से एक सप्ताह में इसका जवाब देने का आदेश देते हुए कहा कि उन अस्पतालों की पहचान की जानी चाहिए जो मुफ़्त में नाम मात्र की फ़ीस में कोरोना का इलाज़ कर सकते हैं।
इसके एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों को नोटिस जारी कर पूछा था कि उन्होंने प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए हैं, बताएं।
दो-तिहाई बेड
प्राइवेट अस्पतालों में भारत के कुल हॉस्पिटल बेड्स के दो-तिहाई बेड हैं और 80 फ़ीसदी वेंटिलेटर हैं, जो सिर्फ़ 10 फ़ीसदी कोरोना मरीजों के इलाज में काम आ रहे हैं। भारत में 2.4 लाख करोड़ का प्राइवेट हेल्थ सेक्टर इस वक्त एक तरह से किनारे हो गया है और सारा बोझ सरकारी अस्पतालों पर आ गया है।देश भर में अधिकतर प्राइवेट अस्पतालों ने ख़ुद को इस महामारी के वक्त लोगों से दूर कर लिया है। यहां तक कि ऐसे मरीज जो कोरोना से संक्रमित नहीं हैं, उनके इलाज के लिए भी प्राइवेट अस्पताल और डॉक्टर्स आगे नहीं आ रहे हैं।
क्या कहना है इन अस्पतालों का
अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, पटना से मुंबई तक चल रहे प्राइवेट अस्पतालों के प्रबंधनों की ओर से इसके लिए कई कारण बताए जाते हैं। उनके मुताबिक़, लॉकडाउन, अपने डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ़ के संक्रमित होने का डर इसके लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा उन्हें इस बात का भी डर है कि ऐसे मरीज जो दूसरी बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं, कोरोना संक्रमितों का इलाज करने पर वे भी उनके अस्पताल में नहीं आएंगे।वैश्विक महामारी और भगवान भरोसे स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश भारत में इस समय प्राइवेट अस्पतालों को सरकारी अस्पतालों के सहयोग के लिए आगे आना चाहिए था, चिकित्सा धर्म निभाना चाहिए था, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं दिखता।