'नफरती' हरिद्वार धर्म संसद के मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

11:54 am Jan 12, 2022 | सत्य ब्यूरो

हरिद्वार में 'धर्म संसद' में किए गए नरसंहार के खुले आह्वान और नफरत वाली भाषा के मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई होगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की अध्यक्षता वाली पीठ मामले की सुनवाई करेगी। 17-19 दिसंबर को आयोजित धार्मिक सभा में विभिन्न 'धर्मगुरुओं' ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ हथियारों के इस्तेमाल का आह्वान करते हुए अपमानजनक भाषण दिए थे।

सीजेआई एनवी रमना ने सोमवार को ही कहा था कि शीर्ष अदालत इस मामले में सुनवाई करेगी। उन्होंने यह बात कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल की ओर से दायर याचिका के जवाब में कही। 

कपिल सिब्बल ने एक जनहित याचिका में कहा कि भारत का स्लोगन सत्यमेव जयते से बदलकर शास्त्र मेव जयते हो गया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि वह इस धर्म संसद में की गई भड़काऊ बयानबाजी के खिलाफ कार्रवाई करे। सिब्बल ने अदालत को बताया था कि इस मामले में अभी तक सिर्फ एफ़आईआर ही दर्ज की गई है। 

धर्म संसद में नफ़रत वाले भाषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 76 नामी वकील भी सीजेआई एनवी रमना को चिट्ठी लिख चुके हैं। वकीलों ने मांग की थी कि इस कार्यक्रम का संज्ञान लिया जाए। 

धर्म संसद में नफ़रत वाले भाषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 76 नामी वकील भी सीजेआई एनवी रमना को चिट्ठी लिख चुके हैं। वकीलों ने मांग की थी कि इस कार्यक्रम का संज्ञान लिया जाए। 

यह चिट्ठी दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, सलमान खुर्शीद, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश सहित कई नामी वकीलों ने लिखी है।

इसके साथ ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को संबोधित एक खुले ख़त की कॉपी मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना को भी भेजी गई थी। यह ख़त सेना के पाँच पूर्व प्रमुखों, बड़े नौकरशाहों और एक्टिविस्टों ने लिखा था। 

ख़त में कहा गया था, 'हम हिंदू धर्म के धर्म संसद नामक 3 दिवसीय धार्मिक सम्मेलन के दौरान दिए गए भाषणों की सामग्री से गंभीर रूप से परेशान हैं। 17-19 दिसंबर 2021 के बीच हरिद्वार में साधुओं और अन्य नेताओं का आयोजन किया गया। हिंदू राष्ट्र की स्थापना और यदि आवश्यक हो तो हिंदू धर्म की रक्षा के नाम पर हथियार उठाने व भारत के मुसलमानों की हत्या करने के लिए बार-बार आह्वान किया गया।'

इस खुले ख़त में कहा गया कि हिंसा के लिए इस तरह के आह्वान आंतरिक रूप से अशांति पैदा कर सकते हैं और बाहरी दुश्मन ताक़तों को मज़बूत कर सकते हैं।