बिलकीस बानो: दोषियों की रिहाई मामले की याचिका SC से खारिज

12:41 pm Dec 17, 2022 | सत्य ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को बिलकीस बानो के द्वारा अदालत की ओर से मई, 2022 में दिए गए फैसले की समीक्षा करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजरात सरकार के पास 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो के साथ गैंगरेप और हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा पाने वाले 11 दोषियों की माफी की अर्जी पर फैसला लेने का अधिकार है। 

मई, 2022 में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि दोषियों की रिहाई के मामले में उस राज्य की सरकार द्वारा विचार किया जाएगा, जहां पर अपराध हुआ था, भले ही मुकदमे को किसी दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर दिया गया हो। 

अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि गुजरात सरकार दोषियों की रिहाई की मांग वाली याचिका पर 1992 की रिहाई नीति के अनुसार 2 महीने के भीतर फैसला करे। 

बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। दुष्कर्म की यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी। इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को इस साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। 

क्या है 1992 की नीति?

गुजरात सरकार ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में कहा था कि इस मामले में अदालत के निर्देश के मुताबिक ही 1992 की नीति के तहत दोषियों की रिहाई की गई है। 1992 की नीति के अनुसार, उम्र कैद की सजा पाने वाले किसी भी शख्स को 14 साल की कैद के बाद रिहा किया जा सकता है, भले ही वह हत्या और सामूहिक बलात्कार जैसे घिनौने अपराधों का ही दोषी क्यों ना हो। जिस वक्त इस मामले में दोषियों को सजा दी गई, वह साल (2008) का था और उस समय 1992 की नीति लागू थी। लेकिन 2014 के बाद जो नीति बनी, उसमें ऐसे कैदियों को सज़ा में छूट देने का प्रावधान हटा दिया गया।

क्या कहा था याचिका में?

बिलकीस बानो ने अपनी याचिका में यह कहते हुए फैसले की समीक्षा की मांग की थी कि यह सीआरपीसी की धारा 432(7)(बी) के खिलाफ है क्योंकि यह धारा कहती है कि छूट का फैसला करने के लिए वह राज्य सरकार सही है, जहां पर मामले की जांच हुई थी। बिलकीस बानो ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों में से एक के द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया। 

याचिका में कहा गया था कि दोषी ने इस तथ्य को चतुराई से दबा दिया कि यह मामला गुजरात दंगों से संबंधित है। इसमें न तो बिलकीस बानो को पक्षकार बनाया गया और न ही याचिका में उनके नाम का जिक्र किया गया। बिलकीस बानो ने कहा है कि इससे अपराध की गंभीरता को छुपाया गया और अदालत को आदेश पारित करने में गुमराह किया गया। 

बिलकीस बानो की याचिका खारिज होने पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने ट्वीट किया है। उन्होंने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट से भी न्याय नहीं मिलेगा, तो कहाँ जाएँगे?

जज ने उठाए थे सवाल

बिलकीस बानो के दुष्कर्मियों को सजा देने वाले जज ने भी दोषियों को रिहा करने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाए थे। सेवानिवृत्त हो चुके जस्टिस यूडी साल्वी ने कहा था, “सरकार को दोषियों को दी गई सजा, उनके द्वारा किए गए अपराधों और पीड़िता के बारे में भी विचार करना चाहिए था। मुझे नहीं लगता कि इनमें से कुछ भी किया गया है। मैंने सुना है कि छूट देते समय 1992 की नीति के दिशा-निर्देश का पालन किया गया है, न कि 2014 में बनाई गई नई नीति का। नई नीति में ऐसे अपराधों में छूट के प्रावधान नहीं हैं।”

दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले का जमकर विरोध हुआ था। इस मामले में 6000 से ज्यादा लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर कहा था कि बिलकीस बानो के दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया जाए।

जिन 11 लोगों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा किया गया था, उनके नाम- जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरढिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना हैं। 

'अच्छे आचरण' का तर्क

बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में रिहा किए गए 11 दोषियों की रिहाई के पीछे उनके 'अच्छे आचरण' का तर्क गुजरात सरकार ने दिया था। गुजरात सरकार की ओर से जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के सामने दिया गया था, उससे यह बात सामने आई थी कि दोषियों को जितने दिन की पैरोल या फरलो दी गई थी, वे उससे कहीं ज्यादा दिन तक जेल से बाहर रहे थे।