केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को ठीक चुनाव के बीच एक और झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक बेहद अहम आदेश में कहा है कि सभी राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले पैसे की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को दें। इसमें यह भी शामिल हो कि उन्हें किससे कितने पैसे मिले हैं। मोदी सरकार का अब तक यह कहना था कि चंदा देने वालों के नाम को उजागर करना ज़रूरी नहीं है। सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने तो अदालत से यहाँ तक कह दिया कि मतदाता को वोट देने का हक़ है, वे वोट दें, उन्हें यह क्यों बताया जाना चाहिए कि किसने किस दल को कितने पैसे दिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलील को ख़ारिज कर दिया।
बता दें कि 2017-18 के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले कुल पैसे का लगभग 95 प्रतिशत यानी 210 करोड़ रुपये सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को ही मिला है। यही पार्टी चंदा देने वालों के नाम बताने का सबसे ज़्यादा विरोध भी करती रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वे 15 मई तक इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे और चंदा देने वालों की जानकारी सीलबंद लिफाफे में 30 मई तक चुनाव आयोग में जमा कराएँ। इसमें उन्हें उन खातों का ब्योरा भी देना होगा, जिनमें रकम ट्रांसफ़र की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को लेकर सुनवाई के दौरान दिया। मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए यह ज़रूरी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए मिले चंदे का खुलासा किया जाए।
इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये चुनावी चंदे के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ असोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स नाम के एनजीओ ने जनहित याचिका दाखिल की है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर गुरुवार को सुनवाई के बाद अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। अपने बचाव में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में दलील देती रही है कि चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत राजनीति में कालेधन को समाप्त करने के लिए की गई थी।
केंद्र सरकार के लिए तगड़ा झटका
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला केंद्र सरकार के लिए तगड़ा झटका है, क्योंकि चुनाव आयोग की अलग राय के बावजूद केंद्र सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड की पक्षधर रही है। सरकार चुनावी बॉन्ड देने वालों की गोपनीयता को बनाए रखना चाहती है, लेकिन चुनाव आयोग का पक्ष है कि पारदर्शिता के लिए दानदाताओं के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए।
केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत चंदा देने वाले शख़्स की पहचान इसलिए उजागर नहीं की जा सकती क्योंकि इससे अन्य राजनीतिक पार्टियाँ सत्ता में आने पर उस शख़्स को परेशान कर सकती हैं।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड
केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने का दावा करते हुए 2017-18 के बजट के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू करने की घोषणा की थी। चुनावी बॉन्ड से मतलब एक ऐसे बॉन्ड से होता है जिसके ऊपर एक करेंसी नोट की तरह उसका मूल्य लिखा होता है। यह बॉन्ड व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों द्वारा राजनीतिक दलों को पैसा दान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया था कि चुनावी बॉन्ड ख़रीदने वालों के नाम गोपनीय रखा जायेगा। इन बॉन्ड को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिन्दा शाखाओं से ही ख़रीदा जा सकेगा। दान देने वाला चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड किसी उस पार्टी को ये दान दे सकते हैं, जिस पार्टी ने पिछले चुनावों में कुल वोटों का कम से कम 1% वोट हासिल किया है। बॉन्ड को जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर महीने में ख़रीदा जा सकता है।
ये चुनावी बॉन्ड एक हज़ार रुपए, दस हज़ार रुपए, एक लाख रुपए, दस लाख रुपए और एक करोड़ रुपए के मूल्य में उपलब्ध हैं। भारत का कोई भी नागरिक या संस्था या कोई कंपनी चुनावी चंदे के लिए बॉन्ड ख़रीद सकता है।