सौरभ किरपाल बन सकते हैं देश के पहले समलैंगिक जज

01:24 pm Nov 16, 2021 | सत्य ब्यूरो

भारत में समलैंगिकों के अधिकार और समाज में उनकी स्वीकार्यता की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने वरिष्ठ वकील सौरभ किरपाल को दिल्ली हाई कोर्ट का जज बनाने की सिफ़ारिश की है। यदि उन्हें यह पद मिलता है तो वह भारत में किसी अदालत के पहले समलैंगिक जज होंगे। 

साल 2018 से अब तक उनके नाम पर चार बार विचार किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम की 11 नवंबर को हुई बैठक में एक बार फिर यह मुद्दा उठा।

किरपाल के नाम पर विरोध कॉनफ़्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट के आधार पर हुआ था और यह कहा गया था कि उनके पार्टनर एक यूरोपीय हैं और स्विस दूतावास में काम करते हैं। लेकिन मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए सौरभ किरपाल के नाम पर मुहर लगा दी। 

न्यायपालिका में विविधता

इससे भारत की न्यायपालिका की विविधता बढ़ेगी और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव से निपटने में मदद मिलेगी। 

सौरभ किरपाल ने समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य बताने वाले क़ानून को चुनौती दी थी और उसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ऐतिहासिक फ़ैसला देते  हुए कहा था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। नवतेज जौहर और ऋतु डालमिया की याचिका की पैरवी किरपाल ने ही की थी।

इनके नाम पर सबसे पहले विचार 2018 में हुआ था, लेकिन उस  समय कहा गया था कि इस पर निर्णय कुछ समय बाद लिया जाएगा। कॉलिजियम ने सौरभ किरपाल के नाम पर जनवरी 2019, अप्रैल 2019 और अगस्त 2020 में भी विचार किया था, पर हर बार किसी न किसी कारण इसे टाला जाता रहा। 

किरपाल ने पिछले साल कहा था,

मेरा पार्टनर एक विदेशी है और इस कारण देश की सुरक्षा को ख़तरा है, यह एक बहाना है और यह साफ है कि मूल वजह मेरी यौनिकता है, मेरा मानना है कि जज के रूप में नियुक्ति के लिए मेरे नाम पर विचार इसलिए ही नहीं किया जा रहा है।


सौरभ किरपाल, वरिष्ठ वकील

मुद्दा समलैंगिकता का

बता दें कि इस साल फरवरी में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने तत्कालीन क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को चिट्ठी लिख कर कहा था कि किरपाल के नाम पर सुरक्षा एजंसियों का क्या कहना है, यह उन्हें बताया जाए। 

इसके पहले जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस रवींद्र भट्ट और  जस्टिस गीता मित्तल ने सौरभ किरपाल के नाम की सिफ़ारिश की थी। 

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पहली बार 4 सितंबर, 2018 को तब विचार किया था जब उसी के आसपास समलैंगिकता से जुड़ी धारा 377 पर कोर्ट ने ऐतिहासिक फ़ैसला दिया था। 

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था। इस फ़ैसले से पहले समलैंगिक यौन संबंध आईपीसी की धारा 377 के तहत एक आपराधिक जुर्म था।

सौरभ किरपाल ने कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों में क़ानून की पढ़ाई की है। उनके पिता बी. आर. किरपाल 2002 में देश के मुख्य न्यायाधीश थे।

बता दें कि अमेरिका में 2003 में ही ख़ुद को खुलेआम समलैंगिक घोषित करने वाले राइव्स किस्टलर को जज बना दिया गया था। अमेरिका में अब तक कुल ऐसे 12 जज हुए हैं जो ख़ुद को खुलेआम समलैंगिक कहते हैं जिसमें से 10 तो अभी कार्यरत भी हैं।

ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ़्रीका जैसे देशों में भी समलैंगिक जज हैं। ऐसे में हमारी स्थिति क्या है?

समलैंगिकता अपराध नहीं तो समलैंगिक जज बनने में रुकावट क्यों?