शशि थरूर, छह पत्रकारों की गिरफ़्तारी पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

12:49 pm Feb 09, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम घटनाक्रम में छह पत्रकारों और कांग्रेस सांसद शशि थरूर को बड़ी राहत दी है। अदालत ने कहा है कि अगले आदेश तक इन लोगों को गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता है। 

इन छह पत्रकारों में 'इंडिया टुडे' के राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडेय, 'कौमी आवाज़' के मुख्य संपादक ज़फ़र आगा, 'द कैरेवन' के मुख्य संपादक परेशनाथ, संपादक अनंतनाथ और कार्यकारी संपादक विनोद के जोस हैं। 

यदा दिला दें कि 26 दिसंबर को हुई ट्रैक्टर परेड से जुड़ी ख़बर करने और उससे जुड़े ट्वीट करने के मामले में इन सभी लोगों पर राजद्रोह का मामला दायर किया गया है। 

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस. ए. बोबडे की अगुआई वाली बेंच में जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन भी थे। इन्होंने शशि थरूर और छह पत्रकारों की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। उनकी पैरवी मशहूर वकील कपिल सिब्बल ने की। दूसरी ओर, सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली पुलिस का पक्ष रखा। 

नोएडा में एफ़आईआर

नोएडा में अर्पित मिश्रा नाम के शख्स ने सेक्टर 20 में यह केस दर्ज कराया था। थरूर और छह पत्रकारों के ख़िलाफ़ आपराधिक धाराओं के साथ ही आईटी एक्ट में कार्रवाई की माँग की गई है।

एफ़आईआर में कहा गया था कि 'इन लोगों ने जानबूझकर इस दुर्भावनापूर्ण, अपमानजनक, गुमराह करने वाले और उकसावे वाली ख़बर प्रसारित की।'

उनपर आरोप लगाया गया है कि 'उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया कि आंदोलनकारी एक ट्रैक्टर चालक की पुलिस द्वारा हत्या कर दी गई।' 

क्या हैं आरोप?

आरोप लगाया गया है कि इन सभी अभियुक्तों ने आपसी सहयोग से सुनियोजित साज़िश के तहत ग़लत जानकारी प्रसारित की कि पुलिस ने एक आंदोलनकारी को गोली मार दी। यह इसलिए किया गया ताकि बड़े पैमाने पर दंगे हों और समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न हो।

इनपर जानबूझकर दंगा कराने का आरोप लगाया गया है। यह एफ़आईआर गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली में हिंसा को लेकर दर्ज कराई गई है।

एडिटर्स गिल्ड ने जताई थी चिंता

ए़डिटर्स गिल्ड ने इन छह पत्रकारों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराने की निंदा करते हुए उस पर चिंता जताई थी। उसने एक बयान जारी कर कहा था कि राजद्रोह, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने और लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करने से जुड़ी 10 धाराएं लगाना अधिक चिंता की बात है।

उसने एक बयान जारी कर कहा था कि एफ़आईआर में यह बिल्कुल ग़लत कहा गया है कि ट्वीट ग़लत मंशा से किए गए थे और उसकी वजह से ही लाल किले को अपवित्र किया गया।

संपादकों की इस शीर्ष संस्था का कहना है कि पत्रकारों को निशाने पर लेना उन मूल्यों को कुचलना है जिनकी बुनियाद पर हमारा गणतंत्र टिका हुआ है। इसका मक़सद मीडिया को चोट पहुँचाना और भारतीय लोकतंत्र के निष्पक्ष प्रहरी के रूप में काम करने से उसे रोकना है।