अब केंद्र सरकार ने भी माना है कि सुदर्शन न्यूज़ के कार्यक्रम ‘यूपीएससी जिहाद’ ने प्रोगाम कोड यानी किसी कार्यक्रम के प्रसारण के लिए निर्धारित नियमों का उल्लंघन किया है। 15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ‘यूपीएससी जिहाद’ के कार्यक्रम के प्रसारण पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि ‘आप किसी धर्म विशेष को टारगेट नहीं कर सकते’। अदालत ने पहली नज़र में इस कार्यक्रम को मुसलिम समुदाय को अपमानित करने वाला पाया था।
केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया है कि इसे लेकर सुदर्शन न्यूज़ को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया है और चैनल से जवाब मांगा गया है। केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के तहत किसी भी कार्यक्रम में ऐसे दृश्य या शब्द नहीं होने चाहिए जो किसी भी धर्म या समुदाय पर हमला करते हों।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हुई पिछली सुनवाइयों में केंद्र सरकार से जानना चाहा था कि मीडिया ख़ासकर टीवी मीडिया में चल रहे कार्यक्रमों के दौरान धर्म और किसी ख़ास संप्रदाय को लेकर होने वाली बातचीत का एक दायरा क्यों नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि मीडिया को किसी भी तरह का कार्यक्रम चलाने के लिए बेलगाम नहीं छोड़ा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रोक लगाए जाने के बाद सुदर्शन न्यूज़ के एडिटर इन चीफ़ सुरेश चव्हाणके की ओर से अपने कार्यक्रम के बचाव में कोर्ट में हलफ़नामा पेश कर कहा गया था कि वह ‘नागरिकों और सरकार को राष्ट्र विरोधी और समाज विरोधी गतिविधियों के बारे में जगाने के लिए खोजी पत्रकारिता’ कर रहा है।
सुरेश चव्हाणके ने पिछले महीने एक टीजर वीडियो ट्विटर पर डाला था। इस वीडियो में सुरेश चव्हाणके ने सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की घुसपैठ का आरोप लगाते हुए इसे ‘नौकरशाही जिहाद’ या ‘यूपीएससी जिहाद’ का नाम दिया था। हैरानी की बात यह है कि जिस ट्वीट में उन्होंने यह वीडियो जारी किया था, उसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को भी टैग किया था।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था, 'जब हम मीडिया की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, तो इस संदेश को मीडिया में जाने दें कि किसी भी समुदाय को निशाना नहीं बनाना चाहिए। आख़िरकार, हम सभी का एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व है, जो एकजुटता वाला होना चाहिए न कि किसी भी समुदाय के ख़िलाफ़।' ॉ
सुरेश चव्हाणके की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर कहा गया था कि उनकी किसी भी समुदाय या व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई दुर्भावना नहीं है। यह भी कहा था कि ये चार एपिसोड जो प्रसारित किए गए हैं उनमें ऐसा कोई बयान या संदेश नहीं था कि किसी विशेष समुदाय के सदस्यों को यूपीएससी की परीक्षा में शामिल नहीं होना चाहिए।
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एनबीए की आलोचना की थी
कोर्ट ने एनबीए यानी न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन की आलोचना की थी और कहा था कि वह देश भर में ऐसे उकसाने वाले कंटेंट को नियंत्रित करने में 'शक्तिहीन' साबित हुआ है। इस पर एनबीए ने कहा था कि वह सिर्फ़ एनबीए सदस्यों के साथ इस पर काम करता है और सुदर्शन टीवी उसका सदस्य नहीं है।
बता दें कि इससे तीन दिन पहले भी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एनबीए की तीखी आलोचना की थी। तब न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘हमें आपसे यह पूछने की ज़रूरत है कि क्या आपका (एनबीए) लेटर हेड से आगे बढ़कर भी कुछ अस्तित्व है। जब किसी आपराधिक मामले की सामानांतर जांच या मीडिया ट्रायल चलता है और प्रतिष्ठा धूमिल की जाती है तो आप क्या करते हैं’