पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने का सिलसिला एक फिर शुरू हो गया है। उसी के साथ दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ अन्य राज्यों की आबोहवा भी प्रदूषित होती जा रही है। बीमार होने वालों की तादाद बढ़ गई है लेकिन पराली अभी भी राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। इसे हल करने की बजाया तमाम राजनीतिक दलों के बीच नूरा कुश्ती चल रही है। खासकर आम आदमी पार्टी ने तो हद ही कर दी है। दिल्ली और पंजाब में उसकी सरकार है। मुद्दे का समाधान आसानी से हो सकता है लेकिन दिल्ली सरकार पंजाब को घसीट रही है और पंजाब सरकार केंद्र की मोदी सरकार को घेर रही है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पराली जलाने पर नजर रखता है। उसने बताया है कि 15 सितंबर से 2 अक्टूबर तक 275 मामले दर्ज हुए। इसमें सबसे ज्यादा पंजाब में 275 मामले, यूपी में 49 मामले और हरियाणा में कुल 8 मामले सामने आए हैं। इसमें हरियाणा का आंकड़ा शक पैदा करता है। क्योंकि पंजाब के बाद हरियाणा में सबसे ज्यादा पराली जलाई जाती रही है। खैर, आंकड़ो की बात एक तरफ रख दें तो भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दिल्ली एनसीआर की आबोहवा पंजाब-हरियाणा के रहमोकम पर हैं। हालांकि हरियाणा के चार शहर एकदम दिल्ली से सटे हुए हैं। इसी तरह यूपी के दो शहर दिल्ली से सटे हुए हैं।
आप ने पिछला विधानसभा चुनाव दिल्ली को प्रदूषण मुक्त नारे के साथ लड़ा था। तब उसे पता नहीं था कि पंजाब में कभी उसकी अपनी सरकार होगी। लेकिन जब यह सत्य सामने है तो भी आप सरकार इस अवसर का फायदा उठाने से चूक रही है।
पंजाब, हरियाणा और यूपी में किसान अक्टूबर और नवंबर में खेतों में आग लगा देते हैं। उसका धुआं धीरे-धीर वातावरण में फैलता है। दिल्ली में इससे स्मोग बन जाता है। मौसम शुरू हो गया है। जब तक आप की सरकार पंजाब में नहीं थी, तब तक दिल्ली की सरकार इस मुद्दे पर पंजाब सरकार को बहुत ज्यादा घेरती रहती थी। लेकिन दोनों तरफ से अब चुप्पी है। ऐसी रणनीति जानबूझकर अपनाई गई है। केजरीवाल सरकार दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के मुद्दे पर बात ही नहीं करना चाहती लेकिन प्रदूषण की वजह से बीमारों की संख्या सारे हालात को बता रही है।
आप ने इस साल पंजाब विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान पराली जलाने की समस्या का समाधान करने का वादा किया था। आप ने कहा था कि पंजाब में पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ जो केस दर्ज किए जाते हैं, उसका वो स्थायी हल खोजेगी। उन्हें सब्सिडी देगी। लेकिन अब ये सारे वादे हवाहवाई साबित हो रहे हैं।
आप के नेतृत्व वाली पंजाब और दिल्ली सरकार ने पहले तो किसानों को पराली नहीं जलाने के लिए 2,500 रुपये प्रति एकड़ की नकद सब्सिडी देने का प्रस्ताव दिया था। इसमें केंद्र की 1,500 रुपये प्रति किसान सब्सिडी और बाकी दो राज्यों पंजाब और दिल्ली द्वारा बोझ उठाने का प्रस्ताव किया गया। लेकिन केंद्र और केजरीवाल के बीच चल रही तनातनी के दौरान ही केंद्र सरकार ने मदद करने के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। हालांकि यह एक तरह की नूरा कुश्ती है। जिसमें आम आदमी पार्टी और केंद्र की बीजेपी सरकार मिलकर किसानों को बेवकूफ बना रहे हैं। यही केंद्र सरकार है, जब पंजाब में बीजेपी और अकालियों की मिली-जुली सरकार थी और उसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार थी तो दिन रात पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को सब्सिडी देने की बाच जोरशोर से कहती थी। लेकिन अब क्या हुआ। किसे बेवकूफ बनाया जा रहा है।
बहरहाल, पंजाब के कृषि निदेशक गुरविंदर सिंह का कहना है कि किसानों को धान की पराली न जलाने के लिए प्रेरित करने के लिए गांवों में व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए राज्य के गांवों में लगभग 2,800 शिविर लगाने की योजना है।
पंजाब में 180 मीट्रिक टन धान की पुआल पैदा होती है। 180 लाख मीट्रिक टन धान की पराली में से 48 फीसदी का प्रबंधन इन-सीटू और एक्स-सीटू (ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है) के माध्यम से किया जाता है, जबकि शेष अवशेषों में आग लगा दी जाती है। फसल अवशेषों को जल्दी से हटाने के लिए किसानों ने अपने खेतों में आग लगा दी ताकि खेत अगली रबी फसल (गेहूं) के लिए तैयार हो जाए।
उन्होंने बताया कि पंजाब में 2021 में पराली जलाने के 71,304, 2020 में 76,590, 2019 में 55,210 और 2018 में 50,590 मामले दर्ज किए गए, जिनमें संगरूर, मानसा, बठिंडा और अमृतसर सहित कई जिलों में बड़ी संख्या में ऐसी घटनाएं हुई हैं।
पंजाब सरकार ने पराली जलाने पर नजर रखने के लिए राज्य में करीब 10,000 अधिकारियों और कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति की है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के अध्यक्ष आदर्शपाल विग ने कहा कि धान की पराली जलाने के आंकड़े संबंधित जिला अधिकारियों के साथ साझा किए गए हैं। हालांकि पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ सरकार कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से कतरा रही है। इसके बजाय हम अनुनय पर ध्यान केंद्रित करेगा।
भारतीय किसान संघ (एकता-उग्रहन) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी ने कहा, हम पराली जलाने को बढ़ावा नहीं देते हैं, लेकिन अगर सरकार किसानों के खिलाफ मामला दर्ज करती है तो हम उसका विरोध करेंगे। हम किसानों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के खिलाफ हैं, जो खेती की बढ़ती लागत के कारण पहले से ही संकट का सामना कर रहे हैं।
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) के संस्थापक और परियोजना निदेशक गुफरान बेग ने कहा, चूंकि आग की संख्या कम है, इसलिए खेत की आग ने दिल्ली की एयर क्वॉलिटी को अभी प्रभावित नहीं किया है। लेकिन 10 अक्टूबर से पराली की घटनाएं बढ़ने की उम्मीद है। पहले का अनुभव बताता है कि एक-एक दिन में लगभग 100 घटनाएं दर्ज की जाती थीं। आमतौर पर पराली जलाने का सिलसिला नवंबर के पहले सप्ताह में चरम पर होता है, जब रोजाना 5,000-6,000 मामले रिपोर्ट किए जाते हैं।