नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर बीजेपी पर विपक्षी दल तो हमलावर हैं ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल दल भी इस क़ानून को लेकर नाराज़गी जता रहे हैं। एनडीए में शामिल एक अहम सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल (शिअद) (बादल) ने भी कहा है कि इस क़ानून में मुसलिमों को भी भारत की नागरिकता देने का प्रावधान होना चाहिए। शिअद ने कहा है कि वह नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) के पूरी तरह ख़िलाफ़ है क्योंकि यह अल्पसंख्यकों के मन में भय पैदा करता है। कुछ दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार ने भी कहा था कि वह बिहार में एनआरसी को लागू नहीं करेंगे।
शिअद के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद नरेश गुजराल ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में कहा, ‘हमने नागरिकता क़ानून के पक्ष में वोट किया है लेकिन पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने कहा है कि इसमें मुसलिम समुदाय को भी शामिल किया जाना चाहिए।’ गुजराल ने कहा कि हमारे लिए यह थोड़ी असमंजस वाली स्थिति थी क्योंकि अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान में प्रताड़ना का शिकार हुए सिख समुदाय के 60,000 से 70,000 लोग नागरिकता के बिना पिछले 10-12 सालों से भारत में रह रहे हैं। गुजराल ने कहा है कि भले ही शिअद सिखों का प्रतिनिधित्व करता हो लेकिन हम सहिष्णुता में विश्वास रखते हैं।
शिअद के बयान के बाद बीजेपी की मुश्किलें इसलिए और ज़्यादा बढ़ गई हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल से लेकर, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पहले ही एनआरसी का विरोध कर चुके हैं।
‘एनडीए में कई दल नाख़ुश’
गुजराल ने कहा कि एनडीए में शामिल कई दल नाख़ुश हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह एनडीए में शामिल सहयोगी राजनीतिक दलों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, उससे सहयोगी दल ख़ुश नहीं हैं। राज्यसभा सांसद ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि एनडीए में बातचीत और चर्चा का होना बंद हो गया है और यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब सलाह-मशविरा भी नहीं होता और नाख़ुश होने की यही वजह है।
बीजेपी की सबसे अहम सहयोगी रही शिवसेना एनडीए छोड़ चुकी है। झारखंड में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) ने तो साथ छोड़ा ही, बीजेपी चुनाव भी हार गई। झारखंड में ही जेडीयू और लोकजनशक्ति पार्टी ने उसके ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा है।
गुजराल ने कहा कि हमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता की ज़रूरत है। शिअद नेता ने कहा, ‘वाजपेयी ने 20 दलों के गठबंधन वाली सरकार चलाई थी और सभी दल ख़ुश थे क्योंकि सभी को इज्जत दी जाती थी। वाजपेयी जी के दरवाज़े हमेशा खुले रहते थे और बातचीत होती थी।’ गुजराल ने कहा कि जब तक अरुण जेटली जीवित थे, तब तक भी बातचीत के दरवाजे खुले थे। लेकिन उनके जाने के बाद सब बंद हो गया है।
क्या शिअद सरकार से समर्थन लेने पर विचार कर रही है। यह पूछने पर गुजराल ने कहा कि यह इस पर निर्भर करता है कि सरकार किस तरह के क़दम उठाती है। गुजराल ने कहा, ‘जैसा मैंने कहा है, मैंने अन्य सहयोगियों से बात की है और वास्तव में कोई भी ख़ुश नहीं है। इस बात से नाराज़गी है कि समय-समय पर बैठकें नहीं होती और मैं सोचता हूँ कि कुछ संशोधन किये जाने की ज़रूरत है।’ कुछ दिन पहले ही सुखबीर बादल ने भी कहा था कि बीजेपी को अपने सहयोगियों की बातों को सुनने की ज़रूरत है, जैसे अटल बिहारी वाजयेपी एनडीए के प्रमुख होते हुए सुना करते थे।