केंद्र सरकार के ही आँकड़े बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कोरोना संक्रमण के कम आँकड़े दर्ज किए जाने का पोल खोलते हैं। सरकारी एजेंसी है इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर। इसी ने सीरो सर्वे कराया है। इसी सीरो सर्वे की रिपोर्ट को आधार माना जाए तो संक्रमण का हर एक मामला दर्ज हुआ तो बिहार में 134, यूपी में 100 और मध्य प्रदेश में 86 संक्रमित लोग छुट गए। अब आँकड़े छुपाने का आरोप लगाएँ या कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था का नतीजा होना बताएँ? आँकड़े तो झूठ नहीं ही बोलेंगे!
आईसीएमआर के ताज़ा सीरो सर्वे के आँकड़े देश की वास्तविक तसवीर पेश करते हैं। सीरो सर्वे में कोरोना से बने एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है। यानी पहले जिनकी कोरोना जाँच नहीं हुई हो या जिन्हें कोरोना संक्रमण की जानकारी नहीं हो उसका भी इसमें पता चल जाता है। इस सर्वे में पता चला कि पूरे देश में सर्वे कराए गए लोगों में से 67.6 फ़ीसदी लोगों में वह एंटीबॉडी मिली। यानी उन्हें कोरोना हुआ था। सबसे ज़्यादा मध्य प्रदेश में 79% और बिहार, राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ में क़रीब 75%, और उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह 70% के क़रीब था। जबकि केरल में यह सिर्फ़ 44 फ़ीसदी था।
इससे पता चलता है कि केरल कोरोना संक्रमण को रोकने में किसी भी दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक सफल रहा है। यह एक उपलब्धि है। खासकर तब जब केरल में जनसंख्या घनत्व काफ़ी ज़्यादा है और यह इस मामले में दूसरे स्थान पर है और लगभग 50% शहरी आबादी है।
इस सीरो सर्वे के आँकड़ों और दर्ज किए गए आँकड़ों से पता लगाया जा सकता है कि कितने लोग अनुमानित तौर पर कोरोना से संक्रमित हुए होंगे और कितने लोग छुट गए होंगे। इस तरह से आँकड़े निकालने पर आख़िरी सीरो सर्वे से पता चलता है कि पूरे देश में औसत अनुमानित संक्रमण का एक मामला दर्ज किया गया तो 33 संक्रमण के मामले छुट गए। इस आधार पर सबसे ख़राब रिपोर्टिंग वाले राज्य बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश हैं। बिहार में हर एक केस दर्ज होने पर 134, यूपी में हर एक केस दर्ज होने पर 100 और मध्य प्रदेश में हर एक केस दर्ज होने पर 86 मामले दर्ज ही नहीं हुए। अब इन तीन राज्यों की तुलना केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक से करके देखिए। केरल में हर एक मामला दर्ज होने पर 6, महाराष्ट्र में हर एक मामला दर्ज होने पर 12 और कर्नाटक में हर एक मामला दर्ज होने पर 18 मामले छुट गए।
सीरो सर्वे की रिपोर्ट केरल और महाराष्ट्र की स्वास्थ्य व्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतर होने के संकेत देती है। इन दोनों राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार आते रहना यह भी दिखाता है कि लगातार मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
इस सर्वे से सवाल उठता है कि बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या क्या कराड़ों में नहीं होगी? सीरो सर्वे तो कम से कम ऐसा ही संकेत देता है। दूसरे राज्यों में भी संक्रमण के मामले दर्ज की गई संख्या से कहीं ज़्यादा होंगे।
ताज़ा सीरो सर्वे में एक महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस बार कराए गए 28,975 व्यक्तियों के सर्वे में 6-9 वर्ष के बच्चे भी 10% शामिल थे। आँकड़ों से पता चला है कि क़रीब 60% बच्चों और किशोरों में एंटीबॉडी या संक्रमण के सबूत हैं। यह इस विचार को पुष्ट करता है कि हालाँकि बच्चे गंभीर बीमारी से बच जाते हैं, लेकिन वे संक्रमित तो हो जाते हैं।
सर्वे में एक बात और प्रमुखता से सामने आई है कि जिन्हें कोरोना के टीके लगे उनमें भी कुछ लेगों में वह एंटीबॉडी नहीं पाई गई। सर्वे में क़रीब 5,000 ऐसे लोग थे जिन्हें टीके की एक खुराक और 2,600 लोगों को दोनों खुराकें लगी हुई थीं। ऐसे 62% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई जिन्हें कोई वैक्सीन नहीं लगी थी। जिनको एक खुराक लगी थी उनके 81% और जिनको दोनों खुराक लगी थी उन क़रीब 90% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई।
इसका मतलब यह है कि लगभग 10% व्यक्तियों को दोनों टीके की खुराक मिली, फिर भी उनमें कोई एंटीबॉडी नहीं थी। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसे लोगों को फिर बूस्टर वैक्सीन की खुराक की ज़रूरत होगी।
बहरहाल, इस सीरो सर्वे के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत हर्ड इम्युनिटी तक पहुँच गया है? लेकिन लगता है कि ऐसा नहीं है। 33% आबादी यानी 45 करोड़ से अधिक लोग अभी भी वायरस के प्रति संवेदनशील हैं। इसे इस रूप में भी देखा जा सकता है कि हर रोज़ अब मामले फिर से बढ़ने लगे हैं और 40 हज़ार से ज़्यादा केस आने लगे हैं। केंद्र सरकार ने पाँच दिन पहले ही कहा है कि 10 राज्यों में पॉजिटिविटी रेट 10% से ज़्यादा है। यानी जितने लोगों की कोरोना जाँच कराई गई है, उनमें से 10 प्रतिशत लोगों में कोरोना संक्रमण पाया गया है। 5 फ़ीसदी से ज़्यादा पॉजिटिविटी रेट होने पर चिंताजनक स्थिति होती है।