सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पटना हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए 65 प्रतिशत कोटा ख़त्म कर दिया गया था। बिहार सरकार ने आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के सरकार के फ़ैसले को रद्द करने के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
पटना उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने 20 जून को बिहार विधानसभा द्वारा 2023 में पारित संशोधनों को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि वे संविधान की शक्तियों से परे हैं और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता का उल्लंघन करते हैं।
7 नवंबर, 2023 को, नीतीश के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने बिहार कोटा स्लैब को बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया। इसके साथ ही, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत कोटा को ध्यान में रखते हुए राज्य में आरक्षण प्रभावी रूप से 75 प्रतिशत हो गया। सरकार के इसी फ़ैसले को पटना हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की विस्तृत सुनवाई सितंबर में की जाएगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह याचिका को स्वीकार करेगी और सितंबर में इस पर सुनवाई करेगी। लेकिन 20 जून, 2024 के पटना हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के रूप में कोई अंतरिम राहत नहीं देगी। पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ से संबंधित इसी तरह के एक मामले में अंतरिम आदेश पारित किया था। लेकिन सीजेआई चंद्रचूड़ ने बताया कि हाईकोर्ट ने पाया है कि पहले से ही 68 प्रतिशत सिविल सेवाओं में आरक्षित उम्मीदवार हैं।
दीवान ने न्यायालय से अनुरोध किया कि आदेश में कहा जाए कि इस स्तर पर कोई अंतरिम राहत नहीं। पीठ ने सहमति व्यक्त की और इसी अनुसार आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि 'इस स्तर पर कोई अंतरिम राहत नहीं'।