प्रधानमंत्री मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के लिंक को ट्विटर और यूट्यूब से हटाने के फ़ैसले के पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र को नोटिस जारी किया है। अदालत इस मामले में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में गुजरात दंगे में पीएम मोदी की भूमिका की पड़ताल की गई है।
डॉक्यूमेंट्री पर कथित प्रतिबंध लगाए जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएँ लगाई गई हैं। इसमें डॉक्यूमेंट्री को रोकने और सोशल मीडिया से लिंक हटाने के लिए आपातकालीन शक्तियों के उपयोग को चुनौती दी गई। वकील एमएल शर्मा की एक याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने कभी भी ब्लॉकिंग आदेश को औपचारिक रूप से प्रचारित नहीं किया। दूसरी याचिका पत्रकार एन राम, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दायर की थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदर की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत तब तक अंतरिम निर्देश पारित नहीं कर सकती जब तक वह यह नहीं सुनती कि इस पर केंद्र का क्या कहना है। मामले की अगली सुनवाई अप्रैल में होगी।
शीर्ष अदालत ने केंद्र को यह भी निर्देश दिया कि वह डॉक्यूमेंट्री को हटाने के अपने आदेश से संबंधित मूल रिकॉर्ड पेश करे। पीठ ने कहा, 'हम नोटिस जारी कर रहे हैं। तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर किया जाना है। उसके बाद दो सप्ताह के भीतर जवाब दें।'
20 जनवरी को केंद्र ने यूट्यूब और ट्विटर को डॉक्यूमेंट्री शेयर करने वाले लिंक को हटाने का आदेश दिया था। आदेश में कहा गया था कि यह भारत की संप्रभुता और अखंडता को कमजोर करने वाला पाया गया, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और देश के भीतर सार्वजनिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है।
बीबीसी की 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नामक दो-भाग की श्रृंखला में डॉक्यूमेंट्री आयी है। बीबीसी ने इस सीरीज के डिस्क्रिप्शन में कहा है कि 'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक के बीच तनाव को देखते हुए 2002 के दंगों में उनकी भूमिका के बारे में दावों की जांच कर रहा है, जिसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे।' जब इस डॉक्यूमेंट्री की ख़बर मीडिया में आई तो भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया।
सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी श्रृंखला की कड़ी निंदा की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि 'झूठे नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए प्रोपेगेंडा डिजाइन किया गया'।
हालाँकि, पिछले महीने 21 जनवरी को लगाई गई इस तरह की रोक के बावजूद छात्रों ने विश्वविद्यालयों में स्क्रीनिंग की। अजमेर में राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय ने कम से कम 11 छात्रों को इसलिए निलंबित कर दिया कि उन्होंने कथित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री देखी थी। हालाँकि, विश्वविद्यालय के अधिकारियों का कहना है कि छात्रों पर कार्रवाई अनुशासनात्मक आधार पर की गई और डॉक्यूमेंट्री से जुड़े मामले में नहीं।
जेएनयू में भी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई थी, लेकिन तब ख़बर आई थी कि स्क्रीनिंग से पहले ही यूनिवर्सिटी में बिजली काट दी गई थी। तब छात्रों ने मोबाइल और लैपटॉप पर डॉक्यूमेंट्री देखकर विरोध जताया था। हैदराबाद विश्वविद्यालय में डॉक्यूमेंट्री देखने का विवाद हुआ था।
बहरहाल, इन विवादों के बीच ही वकील एमएल शर्मा की जनहित याचिका ने 20 जनवरी के सरकारी आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए दावा किया कि यह 'अवैध, दुर्भावनापूर्ण, मनमाना और असंवैधानिक है।' वह चाहते थे कि अदालत डॉक्यूमेंट्री की जाँच करे और 2002 के गुजरात दंगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करे।