सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वीवीपीएटी के साथ ईवीएम डेटा के 100% सत्यापन की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इससे पहले इसने चुनाव प्रक्रिया में पवित्रता बनाए रखने को कहा। इसी के मद्दनज़र अदालत ने चुनाव आयोग से ईवीएम के साथ वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट पर्चियों को क्रॉस-वेरिफिकेशन के संबंध में पूरी जानकारी मांगी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी को भी यह आशंका नहीं होनी चाहिए कि जो कुछ अपेक्षित है वह नहीं किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील निज़ाम पाशा ने कहा कि एक मतदाता को वोट देने के बाद वीवीपैट पर्ची लेने और उसे मतपेटी में जमा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। जब न्यायमूर्ति खन्ना ने पूछा कि क्या ऐसी प्रक्रिया से मतदाता की गोपनीयता प्रभावित नहीं होगी, तो पाशा ने कहा, 'मतदाता की गोपनीयता का उपयोग मतदाता के अधिकारों के हनन के लिए नहीं किया जा सकता है।'
इस पर वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि वीवीपैट मशीन की लाइट हर समय जलती रहनी चाहिए- अब तक यह सात सेकंड तक जलती रहती है। उन्होंने कहा, 'एक संभावित समाधान यह है कि यदि वे इस स्तर पर शीशा नहीं बदल सकते हैं, तो कम से कम रोशनी हर समय चालू रहनी चाहिए, ताकि मैं पर्ची को कटते और गिरते हुए देख सकूं। किसी भी गोपनीयता से समझौता नहीं होगा।' याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी कहा कि मतगणना प्रक्रिया में अधिक विश्वसनीयता लाने के लिए एक अलग ऑडिट होना चाहिए।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें वीवीपैट के साथ ईवीएम का उपयोग करके डाले गए सभी वोटों के सत्यापन की मांग की गई है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जो मतदाता को यह देखने की सुविधा देती है कि उसका वोट सही ढंग से डाला गया है या नहीं। फ़िलहाल वीवीपैट सत्यापन प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में केवल पांच रैंडम रूप से चुनी गई ईवीएम में किया जाता है।
अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या मतदाता को मतदान के बाद पर्ची मिलना संभव है? चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि इससे वोट की गोपनीयता से समझौता होगा और बूथ के बाहर इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। इसमें कहा गया है, 'इसका इस्तेमाल दूसरे लोग कैसे कर सकते हैं, हम नहीं कह सकते।'
जब अदालत ने पूछा कि वीवीपैट पेपर पर्चियों की गिनती में अधिक समय क्यों लगता है और क्या इसके लिए मशीनों का उपयोग किया जा सकता है, तो चुनाव आयोग ने कहा कि कागज पतला और चिपचिपा है और वास्तव में गिनती के लिए नहीं है।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के निर्माता को यह नहीं पता है कि कौन सा बटन किस राजनीतिक दल को आवंटित किया जाएगा या कौन सी मशीन किस राज्य या निर्वाचन क्षेत्र को आवंटित की जाएगी।
मशीनों और उनकी वीवीपैटी इकाइयों के कामकाज पर सवालों का उत्तर देते हुए आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मतदान यूनिट में एक मतपत्र यूनिट, नियंत्रण यूनिट शामिल हैं। इसके साथ एक वीवीपैट यूनिट है, जो मूल रूप से एक प्रिंटर है।
मतदान से सात दिन पहले उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में वीवीपैट मशीन की 4 एमबी फ्लैश मेमोरी पर प्रतीकों की तस्वीरें अपलोड की जाती हैं। अधिकारी ने बताया कि बैलेट यूनिट उम्मीदवारों या प्रतीकों के प्रति पहचान योग्य नहीं होती है। इसमें केवल वही बटन होते हैं जिनके सामने पार्टी के चिह्न चिपकाए जाते हैं। जब कोई बटन दबाया जाता है, तो इकाई नियंत्रण इकाई को एक संदेश भेजती है, जो वीवीपैट इकाई को सचेत करती है और फिर दबाए गए बटन से मेल खाने वाले प्रतीक को प्रिंट करती है।
मतदान प्रक्रिया के बारे में अपनी सफ़ाई में चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम की नियंत्रण यूनिट वीवीपैट यूनिट को उसकी पेपर स्लिप प्रिंट करने का आदेश देती है। यह पर्ची एक सीलबंद बक्से में गिरने से पहले सात सेकंड के लिए मतदाता को दिखाई देती है। इसमें कहा गया है कि मतदान से पहले इंजीनियरों की मौजूदगी में मशीनों की जांच की जाती है।
जब अदालत ने पूछा कि क्या वीवीपैट प्रिंटर में कोई सॉफ्टवेयर है तो चुनाव आयोग ने नकारात्मक जवाब दिया। इसने कहा, 'प्रत्येक पीएटी में 4 मेगाबाइट फ्लैश मेमोरी है जो चिह्नों को सेव रखती है। रिटर्निंग अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक मतपत्र तैयार करता है, जिसे चिह्न लोडिंग यूनिट में लोड किया जाता है। यह एक सीरियल नंबर, उम्मीदवार का नाम और चिह्न देता है। कुछ भी पहले से लोड नहीं किया गया होता है। डेटा नहीं, यह इमेज फॉर्मेट है।"
बता दें कि मंगलवार को पीठ ने याचिकाकर्ता के मतपत्र की वापसी के विचार को खारिज कर दिया था। इसने कहा था कि वह यह नहीं भूली है कि उन दिनों क्या हुआ करता था जब वोट डालने के लिए मतपत्र का इस्तेमाल किया जाता था।