रुपए में एक बार फिर बड़ी गिरावट आई है और शुक्रवार को यह 16 पैसे गिरते हुए 82.33 रुपए प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंच गया। यह रुपए में आई अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। अब सवाल यह है कि क्या इस रिकॉर्ड स्तर तक गिरने के बाद रुपए में गिरावट और तेज हो सकती है। बीते कई महीनों से रुपए के लगातार गिरने को लेकर कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी नेता मोदी सरकार पर हमलावर हैं।
रुपए को लगातार नुकसान हो रहा है। विदेशी निवेशकों ने इस साल भारतीय संपत्ति से रिकॉर्ड 29 बिलियन डॉलर की निकासी की है।
रुपए के कमजोर होने का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर होता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि रुपए में कमजोरी का मतलब है कि अब देश को उतना ही सामान खरीदने के लिए ज़्यादा रुपए ख़र्च करने पड़ेंगे। आयात वाले सामान महंगे होंगे। इसमें कच्चा तेल, सोना जैसे कई सामान शामिल हैं।
गुरुवार को रुपया पहली बार गिरकर 82.17 रुपए के स्तर तक पहुंच गया था। आईएफए ग्लोबल रिसर्च एकेडमी ने एक नोट में कहा है कि कच्चे तेल की कीमतों में तेजी ने व्यापार घाटे के फिर से उभरने को लेकर चिंता पैदा कर दी है।
एकेडमी के मुताबिक, ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अपने रिजर्व को खर्च करने में उदारता नहीं दिखा रहा है। प्रसिद्ध वित्तीय संस्था बर्कले ने कुछ महीने रिपोर्ट दी थी कि रिजर्व बैंक ने रुपए में गिरावट को रोकने के लिए 41 अरब डॉलर बाजार में उतारे थे। लेकिन बावजूद इसके रुपया गिरता जा रहा है।
दूसरी ओर, वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार भी तेज गति से गिर रहा है। इस साल यह भंडार लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8 फीसदी की गिरावट के साथ 12 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया है और यह 2003 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है।
दरअसल, हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे आयात-निर्यात करते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर।
बताना होगा कि विश्व बैंक ने गुरूवार को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के अनुमान को घटा दिया है। इसने 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है और यह जून 2022 के अनुमान से एक प्रतिशत कम है।
आर्थिक मंदी की आशंका
दूसरी ओर, इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी आईएमएफ ने वैश्विक मंदी की चेतावनी दी है। आईएमएफ की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने दुनिया भर के नीति निर्माताओं से अपील की है कि वह मंदी को रोकने के लिए कदम उठाएं। यह आशंका बढ़ती जा रही है कि दुनिया एक गंभीर आर्थिक मंदी की चपेट में आ रही है। इस आशंका की सबसे बड़ी वजह कोरोना के बाद दुनिया भर में लगे लॉकडाउन और उसकी वजह से पूरी दुनिया में कारोबार पर असर पड़ना और अब यूक्रेन-रूस का युद्ध भी है। ताज़ा अनुमान है कि इस लड़ाई की कीमत यानी इसकी वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान लगभग दो लाख अस्सी हज़ार करोड़ डॉलर होगा।
आज की तारीख में भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप और चीन जैसे देश मंदी की चपेट में जाते दिख रहे हैं तो भारत कैसे और कब तक इस ख़तरे से बचा रह सकता है?