किसान आन्दोलन को लेकर राज्यसभा में हंगामा

12:13 pm Feb 02, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आन्दोलन का मुद्दा एक बार फिर संसद पहुँच गया है। मंगलवार को राज्यसभा में इस पर हंगामा हुआ और दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित की गई। 

मंगलवार को राज्यसभा में कामकाज शुरू होते ही कुछ विपक्षी दलों ने किसान आन्दोलन पर चर्चा कराने की माँग की।  कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा ने राज्यसभा में किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए नोटिस दिया है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद अर्पिता घोष ने भी इसी मुद्दे पर नोटिस दिया।

सीपीआई (एम) के सांसद एलाराम क़रीम ने राज्यसभा में नियम 267 के तहत किसानों के मुद्दों पर चर्चा की माँग की। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के सांसद अशोक सिद्धार्थ ने राज्यसभा में स्थगन प्रस्ताव दिया। 

हंगामा

लेकिन स्पीकर एम. वेंकैया नायूड ने यह कह कर इसे खारिज कर दिया कि इस पर बहस बुधवार को होगी, आज नहीं। इस पर विपक्ष के सदस्यों ने नारेबाजी की। थोड़ी देर नारेबाजी के बाद स्पीकार ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। 

उन्होंने कहा "यह गलत धारणा बन रही है कि कोई चर्चा नहीं हुई। मतदान के संबंध में, लोगों के अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन हर पार्टी ने अपने कार्य को पूरा किया और सुझाव दिए।"

थोड़ी देर बार सदन की कार्यवाही फिर शुरू हुई तो शून्य काल हो गया। इसके बाद विपक्ष के सदस्यों ने एक बार फिर किसानों का मुद्दा उठाने की कोशिश की, लेकिन वेंकैयानायूड ने एक बार फिर उनकी बात नहीं सुनी। उन सदस्यों ने नारेबाजी शुरू कर दी तो स्पीकर ने सदन की कार्यवाही एक बार फिर स्थगित कर दी।

राज्यसभा के उप-सभापति हरिवंश

हंगामे के बीच पारित हुए थे कृषि क़ानून

याद दिला दें कि सितंबर महीने में तीन कृषि क़ानूनों को लेकर राज्यसभा में ज़ोरदार हंगामा हुआ था। जब इससे जुड़े अधिनियम मतदान के लिए रखे गए तो विपक्ष ने उस पर मत विभाजन यानी वोटिंग की मांग की। लेकिन पीठासीन अध्यक्ष और राज्यसभा के उप-सभापति हरिवंश ने इस पर मतदान यह कह कर नहीं कराया कि यह मांग करते वक़्त सदस्य अपनी सीट पर नहीं थे।

लेकिन मत-विभाजन की माँग करने वाले सदस्य का कहना था कि वे अपनी सीट पर थे और वहीं से उन्होंने इसकी माँग की थी। इस पर सदन में हो-हल्ला मचा और हरिवंश ने अधिनियमों के पारित होने का एलान कर दिया। 

उसके बाद शीतकालीन सत्र में जो थोड़े समय के लिए सदन की कार्यवाही हुई, उसमें भी विपक्ष ने यह मुद्दा उठाने की कोशिश की, लेकिन उस पर बहस नहीं कराई गई। सरकार  ने उसके पहले बार-बार कहा कि वह कृषि क़ानूनों पर सदन में बहस कराने को तैयार है, पर बहस नहीं कराई गई। 

आन्दोलन

इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान आन्दोलन चल रहा है। दिल्ली की सीमा से सटे हरियाणा और उत्तर प्रदेश के इलाक़ों में हजा़ारों किसान पिछले दो महीने से अधिक समय से धरने पर बैठे हैं। सरकार के साथ उनके 10 दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है। सरकार किसानों की बात सुनने और क़ानूनों में संशोधन करने पर विचार करने को तैयार है। किसानों का कहना है कि तीन क़ानून रद्द किए जाने चाहिए और सरकार इसके लिए किसी सूरत में तैयार नहीं है। यह जिच बरक़रार है।