2019 के आख़िरी दिन रेलवे ने यात्री किराया बढ़ा दिया है। बढ़ा हुआ किराया 1 जनवरी, 2020 से लागू हो गया है। यह किराया अलग-अलग श्रेणियों में 1-4 पैसे प्रति किमी. तक बढ़ाया गया है। एसी क्लास के किराये में 4 पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोतरी की गई है जबकि नॉन-एसी ट्रेन के किराये में एक पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्धि की गई है। रेलवे ने कहा है कि लंबी दूरी वाली मेल और एक्सप्रेस ट्रेन के किराये में दो पैसे प्रति किमी की वृद्धि की गई है। बढ़ा हुआ किराया नॉन-एसी क्लास पर भी लागू होगा। हालांकि, रेलवे ने उपनगरीय वर्गों के किराये में कोई बदलाव नहीं किया है। दूसरी ओर, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने बिना सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर की क़ीमत भी 19 रुपये बढ़ा दी है।
ऑर्डिनरी नॉन एसी क्लास के किराये में सेकेंड क्लास ऑर्डिनरी, स्लीपर क्लास ऑर्डिनरी और फ़र्स्ट क्लास ऑर्डिनरी में एक पैसे प्रति किमी. किराया बढ़ाया गया है। मेल/एक्सप्रेस नॉन एसी के किराये में सेकेंड क्लास, स्लीपर क्लास और फ़र्स्ट क्लास का किराया 2 पैसे प्रति किमी. बढ़ाया गया है। एसी क्लास के किराये में एसी चेयर कार, एसी 3-टियर/3E, एसी 2-टियर, एसी फ़र्स्ट क्लास/इकॉनोमी क्लास/EA में 4 पैसे प्रति किमी. की बढ़ोतरी की गई है।
रेलवे को किराया बढ़ाने से एक साल में 2300 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। इस बढ़ोतरी का मतलब यह है कि दिल्ली से मुंबई तक की लगभग 1500 किमी की यात्रा में लोगों को राजधानी ट्रेनों के एसी क्लास में 60 रुपये, शताब्दी ट्रेनों में 15-20 रुपये और मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए लगभग 55-60 रुपये अधिक चुकाने होंगे। बताया जाता है कि रेल किराये में बढ़ोतरी का यह प्रस्ताव पिछले छह महीने से रुका हुआ था।
मोदी सरकार ने पिछली बार जब उपनगरीय ट्रेन के किराये में बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा था तो उसे बीजेपी की महाराष्ट्र इकाई और शिवसेना के विरोध के कारण इसे वापस लेना पड़ा था।
सूत्रों का कहना है कि रेलवे को इस वित्तीय वर्ष के अंत में 25 हज़ार करोड़ रुपये का राजस्व कम मिला है। पिछली बार रेलवे ने मोदी सरकार के सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद 2014 में किराया बढ़ाया था। रेलवे की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है और ख़र्च की तुलना में उसकी आमदनी काफ़ी कम हुई है।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी.के. यादव ने भी माना है कि रेलवे की आर्थिक स्थिति चिंताजनक है। उनका कहना है कि रेलवे का अनुमानित ख़र्च 2.18 लाख करोड़ है जबकि आमदनी सिर्फ़ दो लाख करोड़ रुपये ही है और इसका 25 फ़ीसदी हिस्सा तो कर्मचारियों की पेंशन में चला जाता है। वित्त वर्ष 2017-18 में रेलवे का ऑपरेटिंग रेशियो यानी कमाई और ख़र्च का औसत 98.44 फ़ीसदी रहा है जो पिछले 10 साल में सबसे ख़राब है।