
भाई-बहन के प्यार पर बवाल: संस्कारी ब्रिगेड की कुंठाओं का खेल!
"अडानी-अंबानी ने बड़े-बड़े नेता खरीद लिए लेकिन मेरे भाई को नहीं खरीद पाए, न कभी खरीद पाएंगे।"
— Krishna Kant (@kkjourno) July 13, 2024
- प्रियंका गांधी
(भारत जोड़ो यात्रा में दिए भाषण की ये क्लिप आज वायरल है।) pic.twitter.com/Iljd5lsnJH
सियासत का मैदान इन दिनों खूब गरमाया हुआ है, और इस बार निशाने पर है भाई-बहन का वो निश्छल प्यार, जो हिंदुस्तान के हर घर की शान है। लेकिन भाजपा और संघ के तथाकथित "संस्कारियों" को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का ये स्नेह नागवार गुजर रहा है। आखिर क्यों? क्या इनके संस्कारों में ही कोई खोट है कि एक माँ के जूते के फीते बांधते बेटे या आपस में हंसी-ठिठोली करते भाई-बहन को देखकर इनके मन में अजीब-अजीब ख्याल उमड़ पड़ते हैं?
मैं अपने भाई के लिए जान दे सकती हूँ - प्रियंका गांधी। pic.twitter.com/DADFVRq9HR
— Jeetu Burdak (@Jeetuburdak) October 27, 2024
सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें और वीडियो एक अलग ही कहानी बयान कर रहे हैं। 'भारत जोड़ो यात्रा' में सड़क पर माँ सोनिया गांधी के खुले फीते बांधते राहुल हों या हवाई अड्डे पर चुनावी भागदौड़ के बीच बहन प्रियंका से गले मिलते राहुल—ये लम्हे लोगों के दिलों को छू गए। इन तस्वीरों ने नफरत और डर की सियासत में डूबे मुल्क को एक सुकून की सांस दी। भाई-बहनों की ये मासूम चुहल देखकर कईयों को अपनी पुरानी यादें ताजा हो आईं।
लेकिन इन "संस्कारियों" को इसमें भी कुछ और ही दिखाई दिया। शायद इनका ब्राह्मणवादी नजरिया, जो ब्रह्मचर्य की बीमार सोच से जकड़ा हुआ है, हर सहज स्पर्श में कुछ गलत ढूंढ लेता है। और इस मानसिकता का सबसे ताजा सबूत है लोकसभा स्पीकर ओम बिरला का रवैया। राहुल गांधी को संसद में बोलने से रोकना और उनके खिलाफ आपत्तियां उठाना—ये सब उसी कुंठित सोच का नतीजा है, जो भाई-बहन के प्यार को भी शक की नजर से देखती है।
राहुल का जादू: महिलाओं का भरोसा, विरोधियों की जलन
'भारत जोड़ो यात्रा' में राहुल का वो चेहरा देखिए, जहां किशोरियां, युवतियां, बुजुर्ग महिलाएं—सब बिना किसी हिचक के उनसे लिपटकर अपनी दिल की बात कह रही थीं। ऐसा क्या था राहुल में कि इन महिलाओं को उन पर इतना भरोसा हुआ? न "बैड टच" का डर, न कोई संकोच—बस एक अपनेपन का अहसास। दूसरी तरफ, कुछ नेता "दीदी ओ दीदी" जैसे सड़कछाप तंज कसते नजर आए। अंतर साफ है—राहुल की बॉडी लैंग्वेज में वो संवेदनशीलता थी, जो नफरत की आग में झुलस रही जनता को राहत दे गई। लेकिन लोकसभा में ओम बिरला का राहुल को बोलने से रोकना बताता है कि ये संवेदनशीलता सत्तापक्ष को कितनी चुभ रही है।
भावनाओं का खेल: सुकून बनाम नफरतः मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि किसी नेता का हाव-भाव, बोलने का लहजा और व्यवहार उसकी भावनात्मक परिपक्वता को जाहिर करता है। राहुल और प्रियंका में ये खूबी खानदान से मिली है। पिता के हत्यारों को माफ करने का उनका फैसला उनकी भावनात्मक गहराई का सबूत है। ऐसे नेता न सिर्फ अपनी भावनाओं को समझते हैं, बल्कि दूसरों पर इसके असर को भी भांपते हैं।
इसके उलट, आत्ममुग्ध नेता अपनी बात को ही आखिरी सच मानकर जनता पर थोपते हैं। राहुल को संसद में चुप कराने की कोशिश इसी आत्ममुग्धता का नमूना है। नफरत भड़काकर सत्ता पाने वाले जल्दी चमकते हैं, मगर उनकी चमक जल्दी फीकी पड़ती है। वहीं, राहुल जैसे नेता, जो सुकून और विवेक की सियासत करते हैं, लंबे वक्त तक दिलों में बसते हैं—भले ही उन्हें इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़े।
बच्चों के साथ व्यवहार: असली चेहरा
कहते हैं कि बच्चों के साथ बर्ताव से इंसान का असली चरित्र झलकता है। जहां एक तरफ बच्चों के कान मरोड़ते नेताओं की तस्वीरें क्रूरता दिखाती हैं, वहीं राहुल और प्रियंका का वंचित बच्चों को गोद में बिठाना, पीड़ितों को गले लगाना उनकी संवेदनशीलता की मिसाल है। यही वो बात है, जो सत्तापक्ष को खटक रही है। भाई-बहन के स्नेह को देखकर उनकी बेचैनी इसलिए है, क्योंकि ये स्नेह उनकी नफरत की सियासत को चुनौती दे रहा है। ओम बिरला का राहुल को बोलने से रोकना इसी बेचैनी का सबूत है—एक कोशिश कि जनता तक उनकी आवाज न पहुंचे, उनका संदेश दब जाए।राहुल गांधी ने ज़ब अपने मोबाइल से
— Jeetu Burdak (@Jeetuburdak) November 28, 2024
बहन प्रियंका का संसद प्रवेश का वीडियो बनाया !! 💞 pic.twitter.com/3Bdwhz1t6U
तो क्या ये तस्वीरें और वीडियो सिर्फ एक भाई-बहन की कहानी हैं, या एक ऐसी सियासत की शुरुआत, जो नफरत के बारूद को पानी से बुझाने की कोशिश कर रही है? जवाब जनता के दिलों में है, जो इन तस्वीरों को देखकर सुकून की सांस ले रही है, और शायद यही सुकून सत्तापक्ष को बर्दाश्त नहीं हो रहा।