गुजरात के भरूच में गुरुवार को नौकरी के लिए भगदड़ जैसी स्थिति हो गई। केमिकल फर्म थर्मैक्स कंपनी में 10 पदों के लिए भर्ती निकली थी। वहाँ सैकड़ों की तादाद में युवा पहुँच गए। युवा इंटरव्यू देने जाने के लिए ऐसी जद्दोजहद करते दिखे कि वहाँ रेलिंग टूट गई और कई युवा नीचे गिर गए। इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। राहुल गांधी ने इसको लेकर मोदी सरकार पर हमला किया।
राहुल ने एक्स पर पोस्ट में कहा, "'बेरोज़गारी की बीमारी' भारत में महामारी का रूप ले चुकी है और भाजपा शासित राज्य इस बीमारी का 'एपिसेंटर' बन गए हैं। एक आम नौकरी के लिए कतारों में धक्के खाता ‘भारत का भविष्य’ ही नरेंद्र मोदी के ‘अमृतकाल’ की हकीकत है।'
गुजरात के भरूच में उस समय भगदड़ जैसी स्थिति देखने को मिली जब सैकड़ों युवा केमिकल फर्म थर्मैक्स कंपनी द्वारा मात्र 10 रिक्त पदों के लिए आयोजित नौकरी के साक्षात्कार के लिए पहुंचे।
इंटरनेट पर वायरल हुए वीडियो में आवेदकों की एक बड़ी भीड़ को एक होटल में प्रवेश करने के लिए संघर्ष करते देखा जा सकता है। होटल में वॉक-इन इंटरव्यू आयोजित किया गया था। भीड़ इतनी बड़ी थी कि कुछ आवेदक साइड रेलिंग पर खड़े हो गए। वह रेलिंग आख़िरकर टूट गई और कई युवा नीचे गिर गए। हालाँकि किसी के घायल होने की ख़बर नहीं है।
थर्मैक्स लॉर्ड्स प्लाजा होटल अंकलेश्वर में शिफ्ट-इन-चार्ज, प्लांट ऑपरेटर, सुपरवाइजर, फिटर-मैकेनिकल और एग्जीक्यूटिव (ईटीपी) के पदों के लिए साक्षात्कार आयोजित कर रहा था।
वीडियो के वायरल होने के तुरंत बाद सोशल मीडिया यूज़रों ने पूछना शुरू कर दिया कि क्या यह वीडियो देश में बेरोजगारी की जमीनी हकीकत को दर्शाता है। कुछ ने इसे 'दुखद' स्थिति बताया और इसके लिए असफल 'गुजरात मॉडल' को जिम्मेदार ठहराया। कुछ ने दावा किया कि नौकरी के लिए अनुभवी कर्मचारियों की आवश्यकता है और इसलिए आवेदक बेरोजगार नहीं हो सकते।
क्या कहते हैं रोजगार पर सरकार के आँकड़े?
इस सप्ताह श्रम विभाग द्वारा जारी किए गए आँकड़ों में दिखाया गया है कि 2017-18 से हर साल 2 करोड़ नए रोज़गार के अवसर पैदा हुए हैं। केंद्रीय बैंक ने सोमवार को एक बयान में कहा था कि मार्च 2024 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था में रोज़गार 46.7 मिलियन बढ़कर कुल 643.3 मिलियन हो गया। यह एक साल पहले 596.7 मिलियन था।
लेकिन भारत में रोजगार बढ़ने के सरकारी आँकड़ों पर निजी क्षेत्र के अर्थशास्त्रियों ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि भारत में रोज़गार के बढ़ते अवसर मुख्य रूप से स्व-रोजगार लोगों, अवैतनिक श्रमिकों और अस्थायी कृषि श्रमिकों की वजह से है। यानी ये वो नौकरियाँ हैं जिनको नियमित वेतन नहीं मिलता है और काम भी नियमित रूप से नहीं मिल पाता है।
कहा जा रहा है कि जब नौकरी बढ़ी है तो आय भी बढ़नी चाहिए और ऐसे में ख़पत भी। अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था में कमज़ोर खपत की ओर इशारा किया है जो 2023-24 में केवल 4 प्रतिशत बढ़ी है। यह सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की आधी गति है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सतत रोजगार केन्द्र के प्रमुख अमित बसोले ने कहा, 'यह साफ़ है कि बड़ी बढ़ोतरी कृषि और स्वरोजगार से हो रही है, जिसमें खुद का काम या अवैतनिक पारिवारिक कार्य शामिल है।' वित्तीय वर्ष 2022-23 तक उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर बसोले ने कहा कि रोज़गार में उछाल की तुलना नियमित वेतन वाली औपचारिक नौकरियों से नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें नौकरियाँ नहीं कहूँगा। वे सिर्फ़ कृषि या गैर-कृषि स्व-रोज़गार में काम करने वाले लोग हैं, क्योंकि व्यवसायों से श्रमिकों की पर्याप्त माँग नहीं है।'
केंद्रीय बैंक ने 2023-24 में रोजगार में वृद्धि का एक प्रोविजनल अनुमान दिया, लेकिन इसने उन क्षेत्रों की जानकारी नहीं दी जिनमें ये रोजगार बढ़े। वह डेटा केवल पिछले वर्ष तक ही उपलब्ध था।
केंद्रीय बैंक और सरकार ने रायटर द्वारा प्रतिक्रिया मांगे जाने पर ईमेल का जवाब नहीं दिया।
रिपोर्ट के अनुसार भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोनब सेन ने कहा, 'हाँ, उन लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जो रोज़ग़ार में हैं। लेकिन इस वृद्धि का बड़ा हिस्सा कृषि और केजुअल काम में आया है।' उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में रोजगार का बढ़ना 'बेहद प्रतिगामी' है, क्योंकि यह देश के उस लक्ष्य के खिलाफ है, जिसके तहत अधिक से अधिक भारतीयों को कृषि कार्य से बाहर निकाला जाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार 2014 में 2 करोड़ नौकरियाँ प्रति वर्ष देने के वादे पर सत्ता हासिल की थी। हालाँकि, उन्हें तब से विश्लेषकों और राजनीतिक विरोधियों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वे इसे पूरा करने में विफल रहे हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस सप्ताह कहा, 'मोदी सरकार का एकमात्र मिशन यह सुनिश्चित करना है कि युवा बेरोजगार रहें।'