प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट बनाने का प्रस्ताव पारित हो गया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक़ यह ट्रस्ट बनाया जाएगा और यह राम मंदिर के निर्माण से जुड़े सभी विषयों को लेकर फ़ैसला लेगा।
मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा, ‘बुधवार सुबह हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राम मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट के गठन की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये हैं। सरकार ने कोर्ट के आदेशानुसार राम मंदिर निर्माण के लिये और इससे संबंधित अन्य विषयों के लिये वृहद योजना तैयार की है। मंत्रिमंडल की बैठक में ट्रस्ट का गठन करने का प्रस्ताव पारित किया गया है और ट्रस्ट का नाम श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र रखा गया है।’ हालांकि ट्रस्ट के सदस्यों को लेकर अभी कोई फ़ैसला नहीं लिया गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यह ट्रस्ट मंदिर निर्माण से जुड़े विषयों पर फ़ैसला लेने के लिये स्वतंत्र होगा। कोर्ट के आदेश के अनुसार, सुन्नी वक्फ़ बोर्ड को 5 एकड़ ज़मीन देने का अनुरोध उत्तर प्रदेश सरकार से किया गया और राज्य सरकार ने इसकी अनुमति प्रदान कर दी है।’ उन्होंने कहा कि भविष्य में राम मंदिर के दर्शन के लिये अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं को देखते हुए फ़ैसला लिया गया है कि अयोध्या क़ानून के तहत अधिग्रहीत भूमि जो लगभग 67.03 एकड़ है, उसे श्री राम जन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट को ट्रांसफ़र किया जाएगा।
प्रधानमंत्री के लोकसभा में एलान के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर कहा, ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में 15 ट्रस्टी होंगे जिसमें से एक ट्रस्टी हमेशा दलित समाज से रहेगा।’ उन्होंने सरकार के इस फ़ैसले को सामाजिक सौहार्द्र को मजबूत करने वाला बताया और इस फ़ैसले के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी।
दशकों से चल रहे अयोध्या विवाद में पिछले साल 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया था। अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा था कि विवादित जगह राम लला विराजमान को दी जाए। इसके अलावा मुसलमानों को मसजिद बनाने के 5 एकड़ ज़मीन देने का बात भी कोर्ट ने कही थी और केंद्र सरकार से मंदिर बनाने के लिए 3 महीने में ट्र्स्ट का गठन करने के लिये कहा था। अदालत ने कहा था कि मंदिर के ट्र्स्ट बोर्ड में निर्मोही अखाड़े को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा था कि हिन्दू पक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा है कि बाहरी आंगन पर उसका कब्जा बहुत पहले से रहा है और दूसरी ओर मुसलिम पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि आंगन पर सिर्फ़ उसका ही कब्जा था।
सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पूरी ज़मीन को एक ही माना जाना चाहिए। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित ज़मीन को तीन पक्षकारों में बाँट दिया था।