उसी हथियार से दिया जवाब
बेरोज़गारों ने इससे पहले इसी महीने की 5 और 9 सितंबर की तारीख़ को अपने इरादों का एहसास करा दिया था। दोनों ही दिन बेरोज़गारों ने रात को 9 बजकर 9 मिनट पर अपने-अपने घरों की बत्ती बुझाई और फिर दीये, टॉर्च वगैरह जलाए। यह तरीक़ा पीएम मोदी का ही था, इसलिए बेरोज़गारों ने उन्हें उन्हीं के हथियार से जवाब दिया था। इसके बाद से ही बेरोज़गारों और विपक्षी दलों की ओर से घोषणा की गई थी कि वे 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर ऐसा ही प्रदर्शन करेंगे।
इससे पहले JEE-NEET के परीक्षार्थियों ने परीक्षा रद्द करने की गुहार लगाई लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी। इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम को बीजेपी के यू ट्यूब चैनल पर ख़ूब डिसलाइक किया।
इसके अलावा भी बीजेपी के यू ट्यूब चैनल पर प्रधानमंत्री के कई अन्य वीडियो को भी डिसलाइक किया गया। इससे बीजेपी की सोशल मीडिया टीम हैरान है।
बेतहाशा नौकरियां चली गईं
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में बेतहाशा नौकरियां गई हैं। सिर्फ़ जुलाई में 48 लाख और अगस्त में 33 लाख लोगों की नौकरी छिन गयी। इसके अलावा देश में 12 करोड़ 10 लाख दैनिक मज़दूरों में से 9 करोड़ 10 लाख ने अपनी नौकरी खो दी। हालांकि अगस्त महीने में कुछ हद तक लोग काम पर लौटे हैं। लेकिन फिर भी हालात बेहद गंभीर हैं।
बेरोज़गारों के 5 सितंबर के आंदोलन पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह का वीडियो-
क्या करे सरकार
मोदी सरकार बेरोज़गारी के मुद्दे पर बुरी तरह घिर चुकी है। लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में लोगों का रोज़गार छिना है। काम-धंधे रफ़्तार नहीं पकड़ सके हैं, अर्थव्यवस्था गर्त में जा चुकी है, नौकरियों से लोगों को निकाला जा रहा है, ऐसे में बेरोज़गार युवाओं के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है और छह महीने तक सब्र करने के बाद भी जब उन्हें रोज़गार नहीं मिल रहा है तो वे अपनी आवाज़ उठाएंगे ही।
बेरोज़गारों व युवाओं का ग़ुस्सा अनायास नहीं है। लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में छोटे-बड़े रोज़गार ख़त्म हो चुके हैं। शहरों से घर लौटे युवा पूछ रहे हैं कि सरकार अब तो छह महीने हो गए, उनके रोज़गार का क्या हुआ। लेकिन न तो केंद्र और न ही राज्य सरकारों के पास इसका कोई जवाब है।
चेत जाए सरकार
लेकिन केंद्र और राज्यों की सरकारों को इस मसले को बिलकुल भी हलके में नहीं लेना चाहिए। वे चाहते हैं कि सरकार उनकी बातों को सुने और उन्हें रोज़गार दे। बेरोज़गारों के सब्र का बांध टूटता दिख रहा है और यह मोदी सरकार के लिए चेत जाने का वक़्त है, वरना बेरोज़गार देश में कोई व्यापक आंदोलन खड़ा कर सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं।