कोरोना वायरस के इलाज में जिस प्लाज्मा थेरेपी से अच्छे परिणाम की बात अरविंद केजरीवाल कहते हैं, उसके बारे में स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि यह अभी प्रायोगिक चरण में है और इलाज के लिए कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। यानी फ़िलहाल प्लाज्मा थेरेपी से जो इलाज किया जा रहा है वह सिर्फ़ यह देखने के लिए है कि इसका परिणाम कैसा होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कई राज्य प्लाज्मा थेरेपी से इलाज करने के लिए मंजूरी माँग रहे हैं। कोरोना वायरस का अभी तक इलाज नहीं ढूँढा जा सका है इसलिए प्लाज्मा थेरेपी पर इतना ज़ोर दिया जा रहा है।
प्लाज्मा थेरेपी के तहत किसी कोरोना मरीज़ के ठीक होने के बाद उसके शरीर में बने इम्यून सिस्टम यानी बीमारियों से लड़ने की क्षमता को कोरोना वायरस से संक्रमित दूसरे मरीज़ के शरीर में डाला जाता है। दूसरे व्यक्ति में जिस प्रक्रिया से रोग प्रतिरोधी क्षमता को दिया जाता है वही प्लाज्मा थेरेपी है।
इसी प्लाज्मा थेरेपी के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त संचिव लव अग्रवाल ने कहा, 'प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग चल रहा है, हालाँकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इसे उपचार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके प्रभाव का पता लगाने के लिए आईसीएमआर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन शुरू किया गया है।'
उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि जब तक आईसीएमआर अपने अध्ययन का निष्कर्ष नहीं निकालता है और एक मज़बूत वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है, तब तक प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग केवल अनुसंधान या परीक्षण के उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि उचित दिशानिर्देश के तहत उचित तरीक़े से प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग नहीं किया जाता है तो यह ज़िंदगी के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है।
बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चार दिन पहले ही कहा था कि प्लाज्मा थेरेपी के अच्छे परिणाम सामने आए हैं। तब नियमित प्रेस ब्रीफ़िंग के दौरान केजरीवाल ने कहा था कि हमें केंद्र सरकार से अनुमति मिली थी कि कोरोना के गंभीर मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल किया जा सकता है। केजरीवाल ने कहा था, ‘हमने पिछले कुछ दिनों में 4 मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल करके देखा है और इसके परिणाम अच्छे रहे हैं।’
तब दिल्ली सरकार के आईएलबीएस अस्पताल के डॉक्टर सरीन ने बताया था कि कोरोना वायरस की बीमारी के तीन चरण होते हैं। पहले चरण में वायरस शरीर के अंदर जाता है, दूसरे चरण में यह वायरस फेफड़ों में चोट करता है जिस वजह से साँस लेने में दिक्क़त होती है जबकि तीसरे चरण में ऑर्गन फ़ेल्योर की स्थिति आती है। डॉक्टर सरीन ने कहा कि अगर हम दूसरे चरण में प्लाज्मा थेरेपी दें तो यह कारगर साबित हो सकती है और इससे हम मरीज को तीसरे चरण में जाने से बचा सकते हैं।