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'एक देश, एक चुनाव' संविधान विरोधी, भारत के संघीय ढांचे पर हमला: विपक्ष

'एक देश, एक चुनाव' संविधान विरोधी, भारत के संघीय ढांचे पर हमला: विपक्ष

सरकार ने एक देश एक चुनाव विधेयक लोकसभा में पेश किया। विपक्ष विधेयक के पक्ष में 269 सदस्य और विरोध में 198 सदस्य थे। जानिए, विधेयक पर विपक्षी दलों ने क्या प्रतिक्रिया दी है।

लोकसभा में 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक पेश किए जाने पर विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इंडिया गठबंधन के दलों की प्रतिक्रिया का लब्बोलुआब यह है कि यह विधेयक संविधान विरोधी व अलोकतांत्रिक है और एक देश एक चुनाव 'भारत के संघीय ढांचे पर हमला' है।

प्रियंका गांधी ने पत्रकारों से कहा, 'यह संविधान विरोधी विधेयक है। यह संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है। हम इसका विरोध कर रहे हैं।' इस विधेयक को लेकर संसद भवन परिसर में शशि थरूर ने कहा कि मैं अकेला नहीं हूं जिसने एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक का विरोध किया है; अधिकांश दलों ने इसका विरोध किया है। 

थरूर ने कहा, 'यह हमारे संविधान में निहित भारत के संघीय ढांचे का उल्लंघन है। राष्ट्र की समय-सारिणी के कारण अचानक किसी राज्य के जनादेश को क्यों छोटा किया जाना चाहिए? संसदीय प्रणाली में, आप निश्चित कार्यकाल नहीं रख सकते। सरकारें गिरती और बनती हैं, और संसदीय प्रणाली में ऐसा होना तय है। इसी कारण से दशकों पहले निश्चित कार्यकाल को बंद कर दिया गया था। ...आज के मतदान ने यह दिखाया है कि भाजपा के पास संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के लिए ज़रूरी दो-तिहाई बहुमत नहीं है।'

कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा, 'यह विधेयक चुनाव आयोग को किसी भी समय किसी भी चुनाव की संस्तुति करने की असीमित ताक़त देता है, जिसमें 5 वर्ष का कार्यकाल ख़त्म हो जाता है। यह तानाशाही को दिखाता है।'

गौरव गोगोई ने 'एक देश एक चुनाव' को भारत के संघीय ढांचे पर हमला बताया। उन्होंने संसद में कहा कि चुनाव कराने का ख़र्च देश के मूल लोकतांत्रिक ढाँचे को बदलने का औचित्य नहीं देती है। उन्होंने कहा, 'सरकार तर्क दे रही है कि चुनाव कराने में करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, और वह पैसे बचाने की कोशिश कर रही है। एक लोकसभा चुनाव कराने में 3,700 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यह आंकड़ा भारत के चुनाव आयोग ने 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान दिया था। 3,700 करोड़ रुपये वार्षिक बजट का सिर्फ़ 0.02% है।'

गोगोई ने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के बारे में चिंताओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि वार्षिक बजट का 0.02% ख़र्च बचाने के लिए वे भारत के संपूर्ण संघीय ढांचे को ख़त्म करना चाहते हैं और ईसीआई को अधिक ताक़त देना चाहते हैं।

गोगोई ने कहा कि यह वही ईसीआई है, जिसके आयुक्त के चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय की कोई भूमिका नहीं है।

अखिलेश यादव ने कहा, "लोकतांत्रिक संदर्भों में ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है। लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है। ‘एक’ की भावना में दूसरे के लिए स्थान नहीं होता। जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है। व्यक्तिगत स्तर पर ‘एक’ का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है।"

उन्होंने आगे कहा, "‘एक देश-एक चुनाव’ का फ़ैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा। ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा। इससे क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व ख़त्म हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों के मायाजाल मे फंसकर रह जाएगी, जिन तक उनकी पहुँच ही नहीं है।"

उन्होंने कहा,  

एक तरह से ये संविधान को ख़त्म करने का एक और षड्यंत्र भी है। इससे राज्यों का महत्व भी घटेगा और राज्यसभा का भी। कल को ये भाजपावाले राज्यसभा को भी भंग करने की माँग करेंगे और अपनी तानाशाही लाने के लिए नया नारा देंगे ‘एक देश-एक सभा’।


अखिलेश यादव

टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा, 'आज जब संसद में संविधान पर बहस चल रही है, तब भाजपा द्वारा संविधान संशोधन विधेयक पेश करने का बेशर्म प्रयास लोकतंत्र पर बेशर्मी से हमला है। एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक लोगों से नियमित रूप से मतदान करने के उनके मौलिक अधिकार को छीनने का प्रयास करता है - एक ऐसा अधिकार जो सरकारों को जवाबदेह बनाता है और अनियंत्रित शक्ति को रोकता है। यह केवल एक विधेयक नहीं है, बल्कि यह हमारे संस्थापक पूर्वजों के बलिदानों के माध्यम से निर्मित हमारे लोकतंत्र की नींव पर सीधा हमला है। बंगाल चुप नहीं बैठेगा। हम भारत की आत्मा की रक्षा करने और इस लोकतंत्र विरोधी एजेंडे को कुचलने के लिए जी-जान से लड़ेंगे।'

शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अनिल देसाई ने कहा कि यह विधेयक फेडरलिज्म पर आघात है। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने बिल को संविधान पर आघात बताते हुए इसे अल्ट्रा वायरस बताया। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को संविधान का उल्लंघन बताते हुए कहा कि यह पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी का उल्लंघन है, फेडरलिज्म का भी उल्लंघन है। 

डीएमके सांसद टीआर बालू ने इस बिल को संविधान विरोधी बताते हुए इसे संसद में लाए जाने पर ही सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है, तब उसे किस तरह से ये बिल लाने की अनुमति दी गई।

मणिकम टैगोर ने कहा, 'आज लोकसभा में यह विफल हो गया। यह पूरी तरह से विफल रहा क्योंकि उनके पास संख्या नहीं थी। दो तिहाई बहुमत की ज़रूरत थी।'

बता दें कि 'एक देश, एक चुनाव' के लिए सरकार दो बिल ला रही है। इनमें एक संविधान संशोधन का बिल है। इसके लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। लोकसभा की 543 सीटों में एनडीए के पास अभी 292 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 362 का आंकड़ा जरूरी है। वहीं राज्यसभा की 245 सीटों में एनडीए के पास अभी 112 सीटें हैं, वहीं 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन है। जबकि विपक्ष के पास 85 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटें जरूरी हैं। 

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