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'एक देश, एक चुनाव' के बारे में जानिए वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

'एक देश, एक चुनाव' के बारे में जानिए वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

एक देश एक चुनाव क्या है और इसको सरकार क्यों लाना चाहती है? जानिए, एक देश एक चुनाव के बारे में पूरी जानकारी।

'एक देश, एक चुनाव' विधेयक लोकसभा में पेश हो गया। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के सहयोगियों ने इसके कई फायदे बताते हुए इसका समर्थन किया है जबकि, समाजवादी पार्टी, टीएमसी, आरजेडी, कांग्रेस जैसी पार्टियों वाले इंडिया गठबंधन ने इसका विरोध किया है। 

यह विधेयक पूरे देश में एक चुनाव कराने की राह खोलता है। 'एक देश, एक चुनाव' के लिए सरकार दो विधेयक ला रही है। इनमें एक संविधान संशोधन का बिल है। इसके लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। तो क्या सरकार के लिए इसे पास कराना इतना आसान है? आख़िर यह विधेयक क्या है, इसके समर्थन में सरकार का तर्क क्या है और विपक्ष विरोध क्यों कर रहा है? जानिए, वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं।

क्या है एक देश एक चुनाव?

'एक देश, एक चुनाव' से मतलब है पूरे देश में सभी चुनाव एक साथ ही कराना। लोकसभा और विधानसभाओं के साथ ही स्थानीय निकाय के चुनाव भी हर पाँच साल में करने का प्रावधान कराने के प्रयास के तहत सरकार विधेयक लेकर आई है।

मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में एक देश एक चुनाव कराने के लिए प्रक्रिया तेज़ कर दी थी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति का गठन भारत सरकार द्वारा 2 सितंबर, 2023 को किया गया था। समिति का प्राथमिक कार्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता का आकलन करना था। इसके लिए समिति ने जनता और राजनीतिक दलों से व्यापक प्रतिक्रिया जुटाई और इस चुनावी सुधार के संभावित लाभों और चुनौतियों का मूल्यांकन करने के लिए विशेषज्ञों से परामर्श किया। 

कोविंद समिति ने क्या कहा?

सितंबर 2023 में एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए गठित कोविंद पैनल ने सिफारिश की है कि इस तरह के समन्वय को सक्षम करने वाले संवैधानिक संशोधनों के लिए संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत राज्यों द्वारा समर्थन की ज़रूरत नहीं है।

कोविंद पैनल का कहना है कि एक समान मतदाता सूची शुरू करने और नगरपालिका तथा पंचायत चुनावों को एक साथ चुनाव कराने के उद्देश्य से संवैधानिक संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं के समर्थन की ज़रूरत होगी।

एक देश एक चुनाव को कैसे लागू किया जाएगा? 

चुनाव सुधार के प्रस्तावित बदलाव चरणों में होंगे। पहले चरण में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव धीरे-धीरे एक साथ होंगे जो राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के 100 दिनों के भीतर होंगे। संसद में अस्थिरता, अविश्वास प्रस्ताव या अन्य अप्रत्याशित हालात बनने की स्थिति में नए चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि, नव निर्वाचित लोकसभा या विधानसभा का कार्यकाल पिछले पूर्ण कार्यकाल के शेष कार्यकाल तक ही चलेगा। इसके लिए चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से एक ही मतदाता सूची और समान मतदाता पहचान पत्र तैयार करेगा। 

विधेयक के मुख्य प्रावधान क्या?

अनुच्छेद 82(ए) को शामिल करना प्रस्तावित कानून का मूल है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव आम चुनाव के रूप में एक साथ आयोजित किए जाएं।

मसौदे के अनुसार, आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक के बाद राष्ट्रपति इस प्रणाली को लागू करने के लिए एक सार्वजनिक अधिसूचना जारी करेंगे। अगला आम चुनाव 2029 में होना तय है। इस तय तिथि के बाद निर्वाचित सभी विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के साथ अपने आप जुड़ जाएगा, जो लोकसभा के पांच साल के कार्यकाल के अंत में एक साथ ख़त्म होगा।

स्थगन और मध्यावधि चुनाव हुए तो क्या होगा?

विधेयक उन स्थितियों के लिए भी व्यवस्था देता है जहां किसी विशेष राज्य में एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। धारा 82ए(5) के तहत, चुनाव आयोग राष्ट्रपति को राज्य विधानसभा के चुनाव स्थगित करने की सिफारिश कर सकता है, जबकि उसका कार्यकाल तब लोकसभा के साथ ही है। यह प्रावधान अप्रत्याशित परिस्थितियों से निपटने के लिए बनाया गया है जो विशिष्ट राज्यों में चुनाव कराने में बाधा डाल सकती हैं।

यदि किसी विधानसभा के लिए चुनाव स्थगित कर दिए जाते हैं, तो विधेयक साफ़ करता है कि देरी के बावजूद इसका कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही समाप्त होगा।

इसके अलावा विधेयक अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन का प्रस्ताव करता है ताकि ऐसे हालातों से निपटा जा सके जहां मध्यावधि चुनाव ज़रूरी हो जाते हैं। यदि लोकसभा या विधानसभा अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले भंग हो जाती है, तो चुनाव पूरे कार्यकाल के बजाय 'अधूरे कार्यकाल' के लिए होंगे। इसका मतलब यह है कि, यदि कोई सरकार भंग हो जाती है, जब उसका कार्यकाल समाप्त होने में दो साल और बचे होते हैं, तो नव निर्वाचित निकाय केवल अगले दो साल के लिए सत्ता में रहेगा, न कि पूरे 5 साल के लिए।

केंद्र शासित प्रदेशों में क्या होगा?

केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ और मध्यावधि चुनाव कराने के लिए संशोधन भी प्रस्तावित किए गए हैं, जो केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1962 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तथा जम्मू-कश्मीर के लिए संबंधित क़ानूनों के संबंध में हैं।

विधेयक के समर्थन और विरोध में कौन? 

समर्थक: सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), बीजू जनता दल (बीजेडी) और एआईएडीएमके जैसे कई क्षेत्रीय सहयोगी इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। वे इसे कार्यकुशलता में सुधार और राजकोष पर वित्तीय दबाव कम करने की दिशा में एक कदम मानते हैं। 

विरोधी: कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टियाँ इस विधेयक का कड़ा विरोध करती हैं। कांग्रेस ने इसको 'संसदीय लोकतंत्र पर हमला और भारत के संघीय ढांचे पर हमला करार दिया। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने इसे असंवैधानिक और संघीय व्यवस्था विरोधी करार दिया। समाजवादी पार्टी ने क्षेत्रीय दलों के लिए इसे नुक़सानदेह बताया है और दावा किया कि इससे बड़े संसाधनों और पहुंच वाले राष्ट्रीय दलों को फायदा होगा। बहुजन समाज पार्टी जैसी कुछ पार्टियों ने भारत जैसे विशाल, विविधतापूर्ण देश में इसको लागू करने की व्यवहार्यता पर आपत्ति जताई।

राह कितनी आसान?

'एक देश, एक चुनाव' के लिए सरकार दो बिल ला रही है। इनमें एक संविधान संशोधन का बिल है। इसके लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। लोकसभा की 543 सीटों में एनडीए के पास अभी 292 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 362 का आंकड़ा जरूरी है। वहीं राज्यसभा की 245 सीटों में एनडीए के पास अभी 112 सीटें हैं, वहीं 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन है। जबकि विपक्ष के पास 85 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटें जरूरी हैं। 

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