स्वास्थ्य व्यवस्था के पैमाने पर केरल फिर से अव्वल रहा है और बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश सबसे फिसड्डी।
कोरोना की दूसरी लहर धीमी पड़ने के दौरान केरल में संक्रमण के मामले ज़्यादा आने पर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर जो सवाल खड़े किए जा रहे थे, उनके दावे अब नीति आयोग की रिपोर्ट से शायद कमजोर पड़ जाएंगे। उत्तर प्रदेश में दूसरी लहर के दौरान गंगा नदी में शव तैरते मिलने के वक़्त यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठ रहे सवालों को यूपी सरकार ने भले ही खारिज किया हो, लेकिन नीति आयोग की ताज़ा रिपोर्ट से योगी सरकार के दावों को झटका लग सकता है।
केंद्र सरकार की ही थिंक टैंक संस्था नीति आयोग ने जो ताज़ा रिपोर्ट जारी की है वह दरअसल राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्था के हालात का रिपोर्ट कार्ड जैसा है। इसने चौथा स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया है। यह रिपोर्ट संदर्भ वर्ष 2019-20 की है।
रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य सूचकांक स्वास्थ्य से जुड़े 24 संकेतकों के आधार पर तैयार किया जाता है। इन सभी संकेतकों में किसी राज्य को नंबर दिए जाते हैं और सभी 24 संकेतकों में आए स्कोर का एक समग्र स्कोर तैयार होता है। विश्व बैंक की तकनीकी सहायता से और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से रिपोर्ट तैयार की गई है।
नीति आयोग की यह रिपोर्ट उसी केरल को लेकर है जिसमें इसी साल अगस्त में राज्य की इसलिए आलोचना की जा रही थी कि वहाँ कोरोना के मामले दूसरे राज्यों से ज़्यादा आ रहे थे। केंद्र सरकार की ही रिपोर्टें राज्य पर कई मामलों में विफल रहने का आरोप लगा रही थीं। हालाँकि, विशेषज्ञ केरल के प्रयासों की तारीफ़ कर रहे थे। विशेषज्ञ इस आधार पर तारीफ़ कर रहे थे कि सीरो सर्वे में पता चला था कि केरल में पॉजिटिविटी रेट 44 फ़ीसदी थी जबकि पूरे देश का औसत क़रीब 68 फ़ीसदी था। यूपी, बिहार और एमपी जैसे राज्यों में तो पॉजिटिविटी रेट क़रीब 75 फ़ीसदी थी। इससे पता चलता है कि केरल कोरोना संक्रमण को रोकने में किसी भी दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक सफल रहा। यह एक उपलब्धि है। खासकर तब जब केरल में जनसंख्या घनत्व काफ़ी ज़्यादा है और यह इस मामले में दूसरे स्थान पर है और लगभग 50% शहरी आबादी है।
केरल को कोरोना संक्रमण को रोकने में इसलिए काफ़ी हद तक दूसरे राज्यों से बेहतर माना जाता रहा क्योंकि वहाँ की स्वास्थ्य सेवाएँ अन्य राज्यों से बेहतर हैं।
वहीं उत्तर प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में एक तरह से तबाही मची थी। शिकायतें आ रही थीं कि अस्पताल में बेड की कमी थी, मेडिकल ऑक्सीजन की कमी की शिकायतें थीं, दवाइयाँ, डॉक्टर-नर्स की कमी के भी आरोप लग रहे थे। और उस दौरान जो तसवीरें आई थीं वे विचलित करने वाली थीं। लगातार रिपोर्टें आ रही थीं कि श्मशान में शवों की लाइनें लगी थीं, गंगा में शव तैरते मिले थे और नदी किनारे रेत में सैकड़ों शव दफनाए जाने की तसवीरें भी आई थीं। इसके लिए यूपी के स्वास्थ्य व्यवस्था को ज़िम्मेदार माना गया था। अब नीति आयोग की रिपोर्ट में भी स्वास्थ्य व्यवस्था की वही तसवीर सामने नज़र आती है।
बहरहाल, नीति आयोगी की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि तमिलनाडु और तेलंगाना स्वास्थ्य मानकों पर क्रमशः दूसरे और तीसरे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य के रूप में उभरे हैं।
बड़े राज्यों में सबसे ख़राब स्थिति यूपी की है और इसके बाद ख़राब प्रदर्शन करने के मामले में दूसरे स्थान पर बिहार है व तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश। हालाँकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश आधार वर्ष 2018-19 से संदर्भ वर्ष 2019-20 में सबसे बढ़िया प्रगति दर्ज करके इंक्रीमेंटल परफॉर्मेंस के मामले में शीर्ष पर है।
छोटे राज्यों में मिज़ोरम की स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे बढ़िया है। यह राज्य समग्र प्रदर्शन के साथ-साथ इंक्रीमेंटल परफॉर्मेंस के मामले में सर्वश्रेष्ठ रहा। जबकि केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली व जम्मू और कश्मीर समग्र प्रदर्शन के मामले में निचले क्रम में रहे, लेकिन इंक्रीमेंटल परफॉर्मेंस के मामले में अग्रणी प्रदर्शन करने वाले के रूप में उभरे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल लगातार चौथे दौर में समग्र प्रदर्शन के मामले में देश में सर्वश्रेष्ठ राज्य बनकर उभरा है। हालाँकि इंक्रीमेंटल परफॉर्मेंस के मामले में केरल 12वें स्थान पर रहा। तेलंगाना का इंक्रीमेंटल परफॉर्मेंस यानी वृद्धिशील प्रदर्शन भी अच्छा रहा और इस मामले में यह तीसरे स्थान पर रहा।