स्टैन स्वामी को बचाने के पूरे प्रयास करे सरकार: मानवाधिकार आयोग

09:24 am Jul 05, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि आदिवासियों के लिए काम करने वाले 84 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टैन स्वामी को स्वास्थ्य सुविधाएँ और इलाज का हर संभव प्रयास किया जाए। उन्हें सख़्त यूएपीए के तहत जेल भेजा गया है। भीमा कोरेगाँव मामले में पिछले साल उन्हें अक्टूबर में गिरफ़्तार किया था। वह पहले से ही काफ़ी बीमार थे, लेकिन हाल के दिनों में उनकी तबीयत बेहद ख़राब हो गई है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। आरोप लगाए गए हैं कि उन्हें जेल में स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं दी जा रही हैं।

इन आरोपों के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी ने स्टैन स्वामी के स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति और उन आरोपों पर एक रिपोर्ट तलब की है। इसके साथ ही इसने महाराष्ट्र सरकार को उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराने को कहा है। 

एनएचआरसी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि स्टैन स्वामी के स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति की शिकायतों को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि ज़िंदगी बचाने वाले उपाए करने और आधारभूत मानवाधिकार की सुरक्षा की जाए। 

बयान में यह भी कहा गया है कि इससे पहले, आयोग को 16 मई, 2021 को एक शिकायत मिली थी कि स्वामी को कोरोना अवधि के दौरान चिकित्सा सुविधा से वंचित किया जा रहा था। यह भी आरोप लगाया गया था कि उन्हें टीका नहीं लगाया गया था और जेल अस्पताल में उचित चिकित्सा देखभाल नहीं थी। 

पिछले महीने ही स्टैन स्वामी ने अपने स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर ज़मानत के लिए याचिका दायर की थी जिसका एनआईए यानी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने यह कहते हुए विरोध किया था कि उनकी बीमारी के बारे में कोई 'ठोस सबूत' नहीं है। लेकिन अब रिपोर्ट है कि स्टैन स्वामी की हालत इतनी बिगड़ गई है कि उनको वेंटिलेटर पर रखा गया है। 

स्टैन स्वामी लंबे समय से पार्किंसन बीमारी से पीड़ित हैं। उनके ख़िलाफ़ यूएपीए के मामले की जाँच एनआईए कर रही है। एनआईए ने उन्हें महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव मामले में आरोपी बनाया है।

एनआईए ने स्वामी और उनके सह-आरोपियों पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादियों) की ओर से काम करने वाले फ्रंटल संगठनों के सदस्य होने का आरोप लगाया है और 2017 के एल्गार-परिषद मामले में उनका नाम लिया है।

एल्गार परिषद का मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के एक सम्मेलन में कथित रूप से भड़काऊ भाषणों से जुड़ा है। पुलिस का दावा है कि इसमें भड़काऊ भाषण के अगले दिन ही भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई। पुलिस ने दावा किया है कि सम्मेलन कथित माओवादी लिंक वाले लोगों द्वारा आयोजित किया गया था।

हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। 2018 को 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे थे। इस दौरान हिंसा हो गई थी। इसी हिंसा के मामले में कार्रवाई की गई और इस मामले में जुड़े होने को लेकर जन कवि वर वर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, वरनों गोंजाल्विस और गौतम नवलखा को भी अभियुक्त बनाया गया है।