केंद्र सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट का एलान कर दिया है। साथ ही सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड को मसजिद बनाने के लिए पाँच एकड़ ज़मीन भी दे दी गई है। लेकिन यह ज़मीन अयोध्या कस्बे से क़रीब 22 किलोमीटर दूर धन्नीपुर में दी गई है। केंद्र की मोदी और यूपी की योगी सरकार के इस फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं। सबसे अहम सवाल यह उठ रहा है कि क्या पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में मसजिद बनाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान नहीं कर रहे हैं
सवाल उठने के पीछे कई वजहें हैं। अयोध्या के मंदिर-मसजिद विवाद पर हिंदू पक्ष शुरू से ही कहता रहा है कि वह राम मंदिर के पंचकोसी परिक्रमा के भीतर कोई मसजिद नहीं बनने देगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मसजिद निर्माण के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं रखी थी। मुसलिम पक्षकार चाहते थे कि अयोध्या की अधिग्रहित 67.7 एकड़ ज़मीन में से ही मसजिद के लिए ज़मीन दी जाए। लेकिन यूपी सरकार ने मसजिद के लिए ज़मीन देने के लिए जो तीन विकल्प दिए थे वे तीनों ही बाबरी मसजिद की जगह से 20 किलोमीटर दूर थे। ऐसा लगता है कि मसजिद के लिए ज़मीन देते वक़्त यूपी सरकार ने हिंदू पक्ष की मंदिर की पंचकोसी परिक्रमा के भीतर मसजिद नहीं बनने देने की ज़िद को ध्यान में रखा।
मुसलिम पक्षकारों को मसजिद के लिए विवादित स्थल से इतनी दूर ज़मीन दिए जाने पर ख़ासा एतराज़ है। बाबरी मसजिद के मुख्य पैरोकार रहे हाशिम अंसारी के पुत्र इक़बाल अंसारी साफ़ तौर पर कहते हैं कि अयोध्या से इतनी दूर ज़मीन देना सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक़ नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या कस्बे में ही ज़मीन देने की बात कही थी। उनका कहना है कि जब मुसलमानों ने सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला स्वीकर कर लिया है तो उनकी भावना का भी सम्मान होना चाहिए। लेकिन केंद्र और यूपी सरकार इस मामले में मनमानी करके एकतरफ़ा फ़ैसला कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में दो जगहों पर मसजिद देने का ज़िक्र है। एक जगह कहा गया है कि ‘अयोध्या शहर’ में जगह दी जानी चाहिए, जबकि दूसरी जगह ज़िक्र है कि अयोध्या में किसी प्रमुख जगह पर। दिक़्क़त यहीं है कि अब पूरे ज़िले का नाम ही अयोध्या कर दिया गया है।
इक़बाल अंसारी ने ‘सत्यहिंदी.कॉम’ से कहा, ‘अयोध्या में कुटिया मोहल्ला में एक छोटी मसजिद पहले से मौजूद है। हम अलग से मसजिद बनाने के बजाय इसी को बढ़ाकर बड़ी करने के हक़ में थे लेकिन सरकार इसकी इजाज़त नहीं दे रही। हम चाहते हैं कि जितने मुसलमान आसपास रहते हैं उनके लिए ज़्यादा बड़ी मसजिद की ज़रूरत नहीं है। हम चाहते हैं कि मसजिद के साथ एक स्कूल और एक धर्मशाला भी बने जिनके दरवाज़े बग़ैर धार्मिक और जातीय भेदभाव के सभी के लिए खुले हों।’
इक़बाल अंसारी का कहना है कि मसजिद के लिए ज़मीन अयोध्या कस्बे में ही मिलनी चाहिए थी।
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड और बाबरी मसजिद एक्शन कमेटी मंदिर निर्माण से पहले बाबरी मसजिद के अवशेष लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं। बाबरी मसजिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फ़रयाब जिलानी का कहना है कि कमेटी फ़ैसला कर चुकी है। इस मामले में बस ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड की भी राय की ज़रूरत है। ज़फ़रयाब जिलानी ने कहा कि इस संबंध में बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी से संपर्क करने की कोशिश की गई है, लेकिन उनकी तबियत ठीक नहीं होने की वजह से अभी तक बोर्ड की राय नहीं मिल सकी है। उन्होंने कहा कि फिर भी हमारी कोशिश है कि मंदिर निर्माण से पहले ही हम वहाँ से मलबा हटवा लें। उन्होंने कहा कि हमारे वकील राजीव धवन से बातचीत हो गई है, बस बोर्ड की सहमति का इंतज़ार है।
मसजिद का मलबा
जिलानी ने शरीयत का हवाला देते हुए कहा कि मसजिद की सामग्री किसी दूसरे मज़हब के पूजाघर में नहीं लगाई जा सकती। न ही इसका अनादर किया जा सकता है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने भी अपने फ़ैसले में मलबे के संबंध में कोई फ़ैसला नहीं किया है। इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी देंगे। जीलानी ने कहा कि न्यायालय ने वर्ष 1992 में बाबरी के विध्वंस को सिरे से असंवैधानिक माना है इसलिए इसके मलबे और दूसरी निर्माण सामग्री जैसे पत्थर, खंभे आदि को मुसलमानों के सुपुर्द किया जाना चाहिए। जीलानी को मंदिर निर्माण के लिए मलबे को हटाते समय उसका अनादर किए जाने की आशंका है।
बता दें कि बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। यह ट्रस्ट अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के निर्माण और उससे संबंधित विषयों पर निर्णय के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र होगा। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में इस बाबत घोषणा की।
‘तीन विकल्प भेजे थे केंद्र को’
राम मंदिर ट्रस्ट के एलान के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या के सोहावल तहसील के धन्नीपुर गाँव में ज़मीन देने का फ़ैसला किया है। सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 3 विकल्प केंद्र को भेजे थे, जिसमें से एक पर सहमति बन गई है। मसजिद के लिए धन्नीपुर में ज़मीन दी जाएगी। यह जगह मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर है। जबकि अयोध्या में विवादित स्थल से इसकी दूरी 22 किलोमीटर बताई जा रही है।
मसजिद के लिए ज़मीन अयोध्या की बजाय दूसरी तहसील में देने को लेकर मुसलिम पक्ष की नाराज़गी से साफ़ लगता है कि वह अभी इस मुद्दे को ठंडा करने के मूड में नहीं है।
वहीं मुसलिम पक्षकारों के बीच इस बात को लेकर भी सहमति नहीं बन रही कि सरकार से मिली ज़मीन पर मसजिद बनाई जाए फिर कुछ और मसलन कोई स्कूल या फिर अस्पताल। कुछ लोगों का कहना है कि बाबरी मसजिद का कोई विकल्प नहीं हो सकता। शरीयत के मुताबिक़ बबारी मसजिद क़यामत वहीं रहेगी जहाँ वो बनी थी, भले ही उस जगह कोई मंदिर बन जाए।
वहीं कुछ का मानना है कि पाँच एकड़ ज़मीन पर मसजिद ही बनाई जानी चाहिए। साथ ही कुछ का मानना है कि मसजिद ज़्यादा बड़ी न बनाकर छोटी बनाई जाए। बाक़ी बची ज़मीन का इस्तेमाल सामाजिक गतिविधियों के लिए हो। ख़बर आ रही है कि सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड मंदिर ट्रस्ट की तर्ज़ पर मसजिद के निर्माण के लिए भी ट्रस्ट बनाएगा। इसका नाम ‘इंडो-इसलामिक कल्चरल ट्रस्ट’ होगा। यह ट्रस्ट ही तय करेगा कि 5 एकड़ ज़मीन पर क्या बनाया जाए। ट्रस्ट अस्पताल, विद्यालय, इसलामिक कल्चरल एक्टिविटीज़ को बढ़ाने वाले इंस्टिट्यूट, लाइब्रेरी, पब्लिक यूटिलिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करने और दूसरे तरीक़े की सामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा देगा।