राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने देश में कई मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से बढ़ने पर चिंता व्यक्त की। भागवत ने पुणे में 'भारत- विश्वगुरु' विषय पर गुरुवार को भाषण देते हुए कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग इस धारणा में हैं कि वे इस तरह के विवादों को उठाकर "हिंदुओं के नेता" बन सकते हैं। उन्होंने अन्य जगहों पर राम मंदिर जैसे मुद्दे न उठाने की सलाह देते हुए कहा कि यह अस्वीकार्य है।
पीटीआई के मुताबिक भागवत ने समावेशी समाज की वकालत करते हुए कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि भारत सद्भाव के साथ रह सकता है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि "हम लंबे समय से सद्भाव में रह रहे हैं। अगर हम दुनिया को यह सद्भाव प्रदान करना चाहते हैं, तो हमें इसका एक मॉडल बनाना होगा। राम मंदिर के निर्माण के बाद, कुछ लोग सोचते हैं कि वे प्रचार करके हिंदुओं के नेता बन सकते हैं नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दे उठाना स्वीकार्य नहीं है।''
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हर दिन, एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं।
-मोहन भागवत, संघ प्रमुख, पुणे में 19 दिसंबर 2024 सोर्सः पीटीआई
मोहन भागवत ने अपने इस भाषण के दौरान किसी जगह विशेष का नाम नहीं लिया, जहां मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दे उठाये गए हैं। हालांकि आसानी से समझा जा सकता है कि उनका इशारा संभल, अजमेर शरीफ, जौनपुर जैसे स्थानों के धार्मिक स्थलों को लेकर है। आरएसएस प्रमुख की टिप्पणी तब आई जब हाल के दिनों में मस्जिदों के सर्वेक्षण के लिए मस्जिदों का पता लगाने के लिए कई मांगें अदालतों तक पहुंच गईं। अदालतों ने सर्वे आदेश भी जारी कर दिये। संभल में ऐसे ही सर्वे के दौरान भारी हिंसा हुई, जिसमें चार मुस्लिम युवक मारे गये। हालांकि यूपी पुलिस ने उल्टा इसकी जिम्मेदारी वहां के मुस्लिमों पर डाल दी। पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई कर कई सौ लोगों पर एफआईआर कर दी। जबकि तथ्य बताते हैं कि सर्वे टीम के साथ आये लोगों ने आपत्तिजनक उत्तेजक नारे मस्जिद में घुसकर लगाये। वहां नमाज पढ़ रहे लोगों को मारपीट कर भगा दिया। इसी के बाद संभल में हिंसा शुरू हुई।
12 दिसंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने एक राष्ट्रव्यापी निर्देश जारी किया, जिसमें सभी अदालतों को नए मुकदमों पर विचार करने या मस्जिदों का सर्वेक्षण करने के आदेश पारित करने से रोक दिया गया। क्योंकि ऐसे सर्वे के दौरान ही शहर दर शहर मस्जिद के नीचे मंदिर के ढांचे हैं तलाशे जा रहे थे।
गुरुवार को अपने भाषण के दौरान मोहन भागवत ने यह भी कहा कि बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए हैं और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आए। उन्होंने कहा- "लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है। इस व्यवस्था में लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं, जो सरकार चलाते हैं। आधिपत्य के दिन चले गए हैं।"
भागवत ने मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन का हवाला देते हुए कहा कि उनके शासन की विशेषता ऐसी ही कट्टरता थी। हालाँकि, उन्होंने यह भी बताया कि मुगल शासक बहादुर शाह जफर के वंशज ने भी 1857 में गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया था। भागवत ने कहा, "यह तय किया गया था कि अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं को दिया जाना चाहिए, लेकिन अंग्रेजों ने इसे भांप लिया और दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी। तब से, 'अलगाववाद' की भावना अस्तित्व में आई। नतीजे में पाकिस्तान अस्तित्व में आया।"
उन्होंने यह भी सवाल किया कि अगर सभी खुद को भारतीय बताते हैं तो "प्रभुत्व की भाषा" का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। भागवत का इशारा अंग्रेजी की तरफ था। आरएसएस पूरे देश में हिन्दी को मुख्य भाषा बनाने के पक्ष में है, जबकि दक्षिण भारत में आरएसएस की इस बात को कोई भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, "कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक है? यहां हर कोई समान है। इस देश की परंपरा है कि सभी अपनी-अपनी पूजा पद्धतियों का पालन कर सकते हैं। एकमात्र आवश्यकता सद्भाव में रहना और नियमों और कानूनों का पालन करना है।" बता दें कि आरएसएस प्रमुख की कई विरोधाभासी बयान पहले भी सामने आ चुके हैं। वो एक तरफ देश में सद्भाव की बात कह रहे हैं, दूसरी तरफ आरएसएस से जुड़े लोग और संगठन अखंड हिन्दू राष्ट्र कायम करने के बयान देते रहते हैं। वो मुसलमानों के मारने-काटने की धमकी देते रहते हैं।