खुदकुशी करने वाले किसान ने मोदी सरकार के लिये ये कहा
शंभू बॉर्डर पर दिल दहलाने वाली घटना हुई है। जहरीला पदार्थ खाने वाले तरनतारन के 50 वर्षीय किसान की गुरुवार को मौत हो गई। जानकारी के मुताबिक, रेशम सिंह ने शंभू बॉर्डर पर कथित तौर पर कीटनाशक पी लिया, जिसके बाद उन्हें राजपुरा के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। हालत बिगड़ने पर उन्हें पटियाला के राजेंद्रा अस्पताल रेफर किया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। रेशम सिंह का वीडियो बयान सामने आया है। जिसे देखकर और सुनकर सिहरन पैदा हो जायेगी। वीडियो देखिये-
व्यथित मन की व्यथा..
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) January 9, 2025
शंभू बॉर्डर पर किसान रेशम सिंह के इस वीडियो ने सिहरन पैदा कर दिया है।
मोदी सरकार से नाराज़ होकर उन्होंने सलफास खा लिया।
मन में सवाल है कि कोई सरकार इतनी निर्दयी कैसे हो सकती है?
किसान आत्महत्या कर रहे है,इस कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर बैठे है,इससे पहले… pic.twitter.com/6Jij59vjhE
किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) के समन्वयक सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि किसानों के मुद्दे को हल करने में केंद्र सरकार की अनिच्छा पर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए किसान ने अपना जीवन समाप्त कर लिया।
पंधेर ने कहा कि रेशम सिंह का पोस्टमॉर्टम और अंतिम संस्कार तब तक नहीं किया जाएगा जब तक सरकार परिवार को 25 लाख रुपये का मुआवजा नहीं देती, परिजनों को सरकारी नौकरी नहीं देती और किसान का सारा बकाया कर्ज माफ नहीं कर देती।
उन्होंने कहा कि जब तक ये सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक किसान का शव अस्पताल के शवगृह में रखा जाएगा। मामले में पुलिस केस दर्ज करने की मांग करने के अलावा, पंढेर ने कहा कि किसानों को अपने नेतृत्व और आंदोलन पर भरोसा करना चाहिए और इस तरह के चरम कदम नहीं उठाना चाहिए।
रेशम सिंह दूसरे किसान हैं जिन्होंने केंद्र के खिलाफ निराशा जताते हुए यह कदम उठाया है। इससे पहले, खन्ना के पास रतनहेड़ी गांव के 57 वर्षीय रणजोध सिंह ने 14 दिसंबर को शंभू सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान कीटनाशक पी लिया था। बाद में 18 दिसंबर को उनकी मृत्यु हो गई।
13 फरवरी को विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद से अब तक 34 किसानों की मौत हो चुकी है, जिनमें 22 वर्षीय शुभकरण सिंह भी शामिल हैं, जिनकी पिछले साल 21 फरवरी को खनौरी सीमा पर विरोध प्रदर्शन के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
किसान रेशम सिंह की मौत और किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की बिगड़ती हालत से सोशल मीडिया भी दहल गया है। तमाम लोग चिन्ता जताते हुए ट्वीट किये रहे हैं। कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक्स पर लिखा- मन में सवाल है कि कोई सरकार इतनी निर्दयी कैसे हो सकती है? किसान आत्महत्या कर रहे है,इस कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर बैठे है,इससे पहले उन्होंने बारिश भी झेली,गर्मी और लू के थपेड़े भी खाए। सरकार की गोलियां,अश्रु गैस के गोले,पानी की बौछारें ने उन्हें कई ज़ख्म दिए। सत्ता पर बैठे घमंडी हुक्मरान अपने ही अन्नदाताओं को लगातार सता रही है। किसी ने सही कहा है कि.. किसानों का दर्द वो क्या समझेगे ? जिन्होंने कभी भी खेतों में पाँव तक नहीं रखा!
पूर्व पहलवान बजरंग पुनिया ने एक्स पर लिखा- आज किसानों के भगवान चौधरी छोटू राम जी की पुण्यतिथि के दिन शम्भु मोर्चे पर किसान आंदोलन में शामिल किसान रेशम सिंह ने आत्महत्या कर ली है। एक तरफ किसानों की मुक्ति और भलाई के लिए छोटूराम जी ने ऐतिहासिक कानून पास किए वहीं आज की हुकूमत ने किसानों की ऐसी हालत कर दी है कि उनको आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ रहा है। खेती में लागत बढ़ने और बचत घटने के कारण किसान लगातार कर्ज़ में डूबता जा रहा है।
डल्लेवाल की मार्मिक अपील
उधर, खनौरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, जिनका आमरण अनशन गुरुवार को 45वें दिन में प्रवेश कर गया। डल्लेवाल ने अपने साथी प्रदर्शनकारियों से कहा है कि अगर मेरी मौत हो जाये, तो भी किसान आंदोलन जारी रहना चाहिए। डल्लेवाल ने अपने करीबी साथी काका सिंह कोटड़ा को दिए एक मार्मिक संदेश में डल्लेवाल ने कहा कि उनके पार्थिव शरीर को विरोध स्थल पर रखा जाए और किसी अन्य नेता द्वारा उपवास जारी रखा जाए। उन्होंने उनके संदेश को फैलाने का आग्रह किया।कोटड़ा ने कहा कि अनशनकारी नेता ने किसी से मिलने से इनकार कर दिया है और उनसे तथा अन्य नेताओं से आंदोलन की ओर से अधिकारियों से बातचीत करने को कहा है। कोटड़ा ने कहा, "जज नवाब सिंह की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति से मुलाकात के कुछ घंटों बाद उनकी हालत खराब हो गई थी।"
सारे मामले में केंद्र सरकार को विपक्ष ने कटघरे में खड़ा कर दिया है। उसने किसानों से पिछले साल और इस साल एक-दो दौर की बातचीत की और मामला आगे नहीं बढ़ा। अब उसने किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी अभी अपने तामझाम में उलझी है और उसे बैठक करने के लिए पैसा चाहिए। जो एक दौर की बातचीत उसने चंद किसान संगठनों से की है, उससे कुछ हासिल नहीं हुआ। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी अगर किसानों के हित में कोई रिपोर्ट देगी तो क्या सुप्रीम कोर्ट उसे केंद्र सरकार से लागू करवा पायेगा। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट धूल चाट रही है। केंद्र आजतक उस पर ही अमल नहीं कर पाई है।