जस्टिस यादव ने नहीं मांगी माफ़ी, SC करेगा कार्रवाई?
विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में शामिल होने वाले और कथित नफ़रती भाषण से सुर्खियों में रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। भले ही संसद में उनके ख़िलाफ़ दिए गए महाभियोग प्रस्ताव नोटिस को खारिज कर दिया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सख्ती अभी भी कम नहीं हुई है। कॉलेजियम द्वारा तलब किए जाने के तीन सप्ताह बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश ने अब इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट से नई रिपोर्ट मांगी है। तो सवाल है कि क्या उनके ख़िलाफ़ कोई जाँच या कार्रवाई जैसा क़दम उठाया जाएगा?
जस्टिस यादव इसलिए विवाद में हैं कि हाल ही में विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने एक विवादास्पद टिप्पणी की थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में वीएचपी के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित उस कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि यह हिंदुस्तान है और यह देश बहुमत की इच्छा के अनुसार चलेगा। जज ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विवादास्पद बयान दिया और कहा कि बहुसंख्यकों का कल्याण और खुशी दूसरों की इच्छाओं से ऊपर है।
जब इस पर काफी बहस छिड़ी तो सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर को जस्टिस यादव के विवादास्पद भाषण का संज्ञान लिया था और हाईकोर्ट से जानकारी मांगी थी। 17 दिसंबर को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने जस्टिस यादव से मुलाकात की थी और उनसे स्पष्टीकरण मांगा था। हालांकि, बैठक के बाद से ही जस्टिस यादव ने अपना रुख नहीं बदला है और कोई माफी या स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।
उस बैठक के कुछ दिनों बाद अब फिर से सीजेआई ने इस मुद्दे पर आगे का क़दम उठाया है। द इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी है कि मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत को भी अवगत कराया था। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा माना जा रहा है कि भारत के सीजेआई संजीव खन्ना ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर नई रिपोर्ट मांगी है।
सीजेआई के इस ताज़ा क़दम को एक न्यायाधीश द्वारा कथित कदाचार पर आंतरिक जांच शुरू करने की प्रक्रिया में पहला कदम माना जा रहा है।
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि सी रविचंद्रन अय्यर बनाम जस्टिस ए एम भट्टाचार्जी और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के अपने फ़ैसले में कहा था कि जब मामला हाई कोर्ट के किसी जज के खिलाफ शिकायत से जुड़ा होता है तो उस हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जाँच के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करें।
उस मामले में तत्कालीन बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ए एम भट्टाचार्जी के खिलाफ वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप शामिल थे। भले ही आरोपों के सामने आने के बाद जस्टिस भट्टाचार्जी ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कानून बनाया और कहा कि यह 'भविष्य के लिए एक मिसाल कायम करेगा'।
इस फ़ैसले के बाद 1997 में सर्वोच्च न्यायालय की एक पूर्ण अदालत ने कहा कि यदि न्यायाधीशों को न्यायिक जीवन के मूल्यों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है, तो वे एक आंतरिक जांच तंत्र गठित करेंगे, जो शीर्ष न्यायालय द्वारा अपनाई गई आचार संहिता है।
समझा जाता है कि जस्टिस यादव के मामले में सीजेआई द्वारा उठाया गया ताज़ा क़दम इसी ओर इशारा करता है। वैसे, जस्टिस यादव की विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में टिप्पणी को न्यायिक जीवन के मूल्यों का उल्लंघन क़रार दिया जा रहा है। दिसंबर महीने की शुरुआत में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव ने विवादास्पद भाषण दिया था।
उन्होंने कहा था कि हिंदू धर्मग्रंथों जैसे शास्त्रों और वेदों में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन एक खास समुदाय के लोग अभी भी कई पत्नियाँ रखने, हलाला करने या तीन तलाक का अधिकार मांगते हैं।
उन्होंने कहा था, 'आप उस महिला का अपमान नहीं कर सकते जिसे हमारे शास्त्रों और वेदों में देवी के रूप में मान्यता दी गई है। आप चार पत्नियाँ रखने, हलाला करने या तीन तलाक का अधिकार नहीं मांग सकते। आप कहते हैं कि हमें 'तीन तलाक' कहने का अधिकार है और महिलाओं को भरण-पोषण नहीं देना है। यह अधिकार काम नहीं करेगा।'
जज ने कई विवादास्पद बयान दिए थे, जिसमें व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुसलमानों के खिलाफ आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द 'कठमुल्ला' का इस्तेमाल करना भी शामिल है। चरमपंथियों को 'कठमुल्ला' कहते हुए उन्होंने कहा था कि देश को उनके प्रति सतर्क रहना चाहिए। उन्होंने कहा था, 'लेकिन ये जो कठमुल्ला है जो…ये सही शब्द नहीं है… लेकिन कहने में परहेज नहीं है क्योंकि वो देश के लिए बुरा है… देश के लिए घातक है, खिलाफ़ है, जनता को भड़काने वाले लोग हैं… देश आगे ना बढ़े इस प्रकार के लोग हैं… उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।'
जज के इस बयान को लेकर राज्यसभा में इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने भी आपत्ति जताई थी। 13 दिसंबर को राज्यसभा में विपक्ष के 55 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दिया था। नोटिस में जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी। न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के अनुसार, यदि किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत लोकसभा में पेश की जाती है तो उसे कम से कम 100 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से पेश किया जाना चाहिए और यदि राज्यसभा में पेश की जाती है तो 50 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से पेश किया जाना चाहिए। हालाँकि, राज्यसभा के सभापति ने महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।