चुनावी मौसम में मनरेगा मजदूरी 7 से 30 रुपये तक बढ़ाने की घोषणा, क्या दबाव है?

12:54 pm Mar 28, 2024 | सत्य ब्यूरो

देश में आम चुनाव की घोषणा पहले ही हो चुकी है। लेकिन केंद्र की मोगी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी दर में नाममात्र 3-10 फीसदी वृद्धि की घोषणा की है। यह बढ़ोतरी चालू वित्त वर्ष के लिए घोषित बढ़ोतरी के समान है। नई वेतन दरें 1 अप्रैल, 2024 से लागू होंगी। अधिसूचना गुरुवार 28 मार्च को जारी की गई।

देश में चुनाव आचार संहिता लागू है। लेकिन सरकार ने इसकी घोषणा के लिए चुनाव आयोग से अनुमति पहले ही ले ली थी। चुनाव आयोग ने बिना देर लगाए सरकार को इसकी घोषणा करने की अनुमति भी दे दी। चुनाव आयोग की तेजी और सरकार की इस घोषणा को लेकर सवाल तो होंगे ही। क्योंकि पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को है और मनरेगा मजदूरी की नई दरें 1 अप्रैल से ही लागू हो जाएंगी। यहां यह बताना जरूरी है कि पिछले महीने यानी मार्च में एक संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि केंद्र को मनरेगा के तहत मजदूरी दरों में उचित वृद्धि के मुद्दे पर "विचारशील नजरिया" अपनाना चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि सरकार ने फरवरी में ही मनरेगा मजदूरी की दरों में बढ़ोतरी क्यों नहीं की। उसके लिए चुनाव की घोषणा का इंतजार क्यों किया गया। जाहिर है कि मजदूरी में सात रुपये से लेकर 30 रुपये की इस बढ़ोतरी का भाजपा गा-गाकर प्रचार करेगी। मीडिया भी उसे इस तरह पेश करेगा कि जैसे एक मनरेगा मजदूर की जिन्दगी सात रुपये मिलने पर बदल जाएगी।

कांग्रेस का दबाव

यह बहुत साफ है कि मरेगा मजदूरी में 7 रुपये से 30 रुपये तक की बढ़ोतरी की घोषणा कांग्रेस के दबाव में की गई है। क्योंकि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में श्रमिक न्याय गारंटी नाम से वादा किया है कि उसकी सरकार अगर आती है तो न्यूनतम मजदूरी 400 रुपये की जाएगी। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने गुरुवार को इस मुद्दे पर टिप्पणी भी की है। जयराम रमेश ने मनरेगा मजदूरी बढ़ने की अधिसूचना जारी होने के बाद कहा-  मोदी सरकार ने 2024/25 के लिए मनरेगा मजदूरी दर में संशोधन किया है। नई दरें 1 अप्रैल से लागू होंगी। अभी इस मुद्दे को छोड़ दें कि क्या यह आगामी चुनावों के मद्देनजर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है। फ़िर भी सरकार द्वारा सभी राज्यों के लिए घोषित दैनिक मजदूरी की दरें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के श्रमिक न्याय गारंटी के तहत घोषित 400 रुपए प्रति दिन से बेहद कम है। 

कांग्रेस ने जो घोषणा की है, उसे आप इस ग्राफ के जरिए समझ सकते हैंः

मनरेगा पर मोदी सरकार की घोषणा क्या है

यूपी और बिहार में मनरेगा मजदूरों की तादाद सबसे ज्यादा है। क्योंकि यहां गरीबी भी ज्यादा है। लेकिन मोदी सरकार ने गुरुवार को जिस बढ़ोतरी की घोषणा की है वो अलग-अलग राज्यों में अलग रेट से लागू होगी। उसे आप समझिए। प्रतिशत वृद्धि के संदर्भ में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मजदूरी दरों में 2023-24 की तुलना में 2024-25 में सबसे कम 3 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, जबकि गोवा में 10.6 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि की गई। यूपी में यह बढ़ोतरी 7 रुपये है तो गोवा में 30 रुपये है। यूपी और गोवा की आबादी में जमीन-आसमान का अंतर है।

सरकार ने यूपी जैसे गरीब राज्य में मनरेगा मजदूरी सिर्फ तीन फीसदी बढ़ाई है। जिसके जरिए एक मनरेगा मजदूर की मजदूरी में सिर्फ 7 रुपये की बढ़ोतरी हुई है।


मनरेगा मजदूरी में अंतिम संशोधन 24 मार्च, 2023 को अधिसूचित किया गया था। उस समय विभिन्न राज्यों के लिए मजदूरी में वृद्धि दो से 10 प्रतिशत तक बढ़ोतरी की गई थी। कर्नाटक, गोवा, मेघालय और मणिपुर उन राज्यों में से थे, जहां मजदूरी में सबसे कम प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी। राजस्थान में तब सबसे ज्यादा 24 रुपये की बढ़ोतरी की गई थी।

घट रही है मजदूरी दरें

द हिन्दू की एक रिपोर्ट में फरवरी में बताया गया था कि केंद्रीय योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) के तहत अकुशल मैनुअल श्रमिकों के लिए औसत मजदूरी दर 2018-19 से धीमी गति से बढ़ रही है। 2018-19 में औसत वेतन दर ₹207 थी, जो 2023-24 में बढ़कर ₹259 हो गई। इस अवधि में यह केवल 4.5 प्रतिशत की मिलीजुली औसत वार्षिक वृद्धि दर है। मनरेगा और दूसरे मजदूरों की मजदूरी दर में भारी असमानता है।आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में, हरियाणा, केरल और कर्नाटक ने भारत में अकुशल श्रमिकों को सबसे अधिक मजदूरी प्रदान की, जो क्रमशः ₹357, ₹333 और ₹316 थी। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं जो इस योजना के तहत बहुत कम मजदूरी देते हैं। मनरेगा मजदूरों की मांग भी घट रही है। डेटा बता रहा है कि घरेलू रोजगार की मांग 2021-22 में 8.05 करोड़ से घटकर 2023-24 में 6.20 करोड़ हो गई है। इसकी वजह साफ नहीं है कि मनरेगा मजदूरों की मांग कम क्यों हो रही है।

केंद्र सरकार की इस योजना का मकसद प्रत्येक ग्रामीण परिवार में अकुशल मैनुअल मजदूरों को 100 दिनों की गारंटीशुदा रोजगार प्रदान करना है। लेकिन 2009 में, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने न्यूनतम मजदूरी को मनरेगा मजदूरी से अलग कर दिया था।