नागरिकता क़ानून: भारत में जो रहा है, वह दुखद है - सत्या नडेला 

09:20 am Jan 14, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन जारी हैं। कई बुद्धिजीवियों, सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इसके विरोध में आवाज़ उठाई है और इसे असंवैधानिक क़रार दिया है। माइक्रोसॉफ़्ट के सीईओ सत्या नडेला ने भी इस क़ानून को लेकर बयान दिया है। नडेला ने कहा है कि भारत में जो हालात बन रहे हैं, वे बेहद दुखद हैं। 

वेबसाइट बज़फ़ीड के एडिटर इन चीफ़ बेन स्मिथ ने सोमवार को ट्वीट कर बताया कि उन्होंने सत्या नडेला से एक कार्यक्रम में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर सवाल पूछा था। नडेला ने उन्हें दिये जवाब में आगे कहा, ‘यह बहुत ख़राब है। मैं एक बांग्लादेशी आप्रवासी को देखना पसंद करूंगा जो भारत आता है और इन्फ़ोसिस का अगला सीईओ बनता है।’ 

इसके बाद माइक्रोसॉफ़्ट इंडिया के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर नडेला ने कहा, ‘हर देश को अपनी सीमाएं तय करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को सुरक्षित करने और अपने हिसाब से आप्रवासियों के लिए नीति बनाने का अधिकार है और लोकतंत्र में यह ऐसी बात है जिसे लेकर जनता और सरकारें बहस करेंगी और परिभाषित करेंगी।’

 

नडेला ने ट्वीट में आगे कहा, ‘मैं भारतीय विरासत से जुड़ा हूँ, बहुसांस्कृतिक भारत में पला-बढ़ा हूँ और अमेरिका में मेरे पास आप्रवासी होने का अनुभव है। मैं ऐसे भारत की उम्मीद करता हूं जहाँ एक अप्रवासी किसी स्टार्ट-अप को शुरू कर सकता हो या किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का नेतृत्व कर सकता हो, जिससे भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर फायदा मिले।'

विपक्षी दल सरकार को घेरने में जुटे

सत्या नडेला का बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी इस क़ानून के ख़िलाफ़ सरकार की घेरेबंदी तेज़ कर दी है। विपक्षी दलों ने इस क़ानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के ख़िलाफ़ बताते हुए वापस लेने की माँग की है। यह क़ानून तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई और पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देता है। इसके अलावा देश भर में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस को लेकर भी विरोध तेज़ हो रहा है। दिल्ली के शाहीन बाग़, जामिया से लेकर उत्तर प्रदेश और दक्षिण के राज्यों में भी लोगों ने नागरिकता क़ानून को वापस लेने की माँग की है। 

कुछ ही दिन पहले 106 सेवानिवृत्त अफ़सरों ने देश के आम लोगों के नाम ख़त लिखकर इस क़ानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था और एनपीआर और एनआरसी को ग़ैर-ज़रूरी बताया था। उन्होंने ‘भारत को सीएए-एनपीआर-एनआरआईसी की ज़रूरत ही नहीं’ शीर्षक से ख़त लिखा था। ख़त लिखने वालों में दिल्ली के पूर्व लेफ़्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव के.एम. चंद्रशेखर, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला सहित तमाम बड़ी हस्तियां शामिल थीं। 

नडेला के बयान का इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने समर्थन किया है। गुहा ने कहा कि वह सत्या नडेला के बयान से ख़ुश हैं और आईटी इंडस्ट्री के बाक़ी लोगों को भी ऐसा कहने की हिम्मत दिखानी चाहिए। गुहा इस क़ानून के ख़िलाफ़ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। 

दुनिया की बड़ी कंपनियों गूगल, उबर, एमेज़न और फ़ेसबुक में काम करने वाले भारतीय मूल के 150 प्रोफ़ेशनल्स ने भी नागरिकता क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ खुला ख़त लिखा था और इन दोनों को ही फ़ासीवादी बताया था।

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय की ओर से भी इस क़ानून को भेदभाव करने वाला बताया गया है और कहा गया है कि यह भारत के संविधान के द्वारा दिये गये समानता के संकल्प को कमजोर करता है।