ऐसे में जब बड़े पैमाने पर फ़ेक न्यूज़ फैलाई जा रही हो और फैक्ट चेक यूनिट बंद हो जाएँ या उनका संचलान बड़े पैमाने पर प्रभावित हो तो विश्वसनीय सूचनाओं और जानकारियों की क्या स्थिति होगी? कम से कम भारत में ऐसी आशंका को लेकर तब चिंताएँ पैदा होने लगीं जब मेटा ने अमेरिका में अपने थर्ड-पार्टी फैक्ट-चेकिंग कार्यक्रम को ख़त्म करने की घोषणा कर दी है। हालाँकि, इसने भारत में इस तरह के कार्यक्रम को बंद करने की घोषणा नहीं की है, लेकिन यहाँ के फ़ैक्ट चेकरों में घबराहट है। ऐसा इसलिए कि यदि भारत में मेटा ने कभी इस तरह का क़दम उठा लिया तो फैक्ट चेकरों को मिलने वाले फंड पर असर पड़ सकता है और इसके अलावा इन फ़ैक्ट चेकिंग वेबसाइटों की रीडरशीप या व्यूअरशिप प्रभावित हो सकती है।
फैक्ट चेकिंग यूनिट और वेबसाइटों पर इस तरह का असर बड़ा प्रभाव डालने वाला हो सकता है। ख़ासकर ऐसा इसलिए कि सोशल मीडिया के इस दौर में एक्स से लेकर फे़सबुक और वाट्सऐप पर फ़ेक न्यूज़ और ग़लत सूचनाओं की बाढ़ आई हुई है। किस पर भरोसा करें और किस पर नहीं, यह बड़ी चिंता का विषय है। हालाँकि, यूज़रों का एक बड़ा वर्ग इन ग़लत सूचनाओं और फ़ेक न्यूज़ को ही सच मान बैठता है। अब जाहिर है इसके नतीजे तो भयावह होंगे ही।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कुछ महीने पहले ही मिसइंफोर्मेशन यानी ग़लत सूचना को लेकर बड़ी चिंता जाहिर की और उन्होंने कहा था कि ग़लत सूचना ने लोगों को ध्रुवीकृत कर दिया है, और इससे एक खास तरह की राय बनायी जा रही है। जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि ग़लत सूचना सबसे गंभीर जोखिम के रूप में उभरी है और यह क़ानून के शासन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। उन्होंने कहा कि यह राज्य और इसकी कानूनी प्रणाली को उलझन में डाल सकती है।
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा था, 'हम डिजिटल युग के महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। यह सूचना का विस्फोट है। एक्स, फेसबुक, व्हाट्सऐप और यूट्यूब जैसे सूचना के गैर-पारंपरिक माध्यम बहुत तेज़ गति से सूचना फैलाने में सक्षम हैं।' उन्होंने कहा कि सूचना के इसी रूप से राज्य और कानूनी प्रणाली खुद को एक उलझन में पाती है क्योंकि ग़लत सूचना काफी तेजी से फैलती है। उन्होंने कहा कि यह अन्य मामलों के अलावा कानून के शासन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। एकमात्र सवाल यह है कि इसे कौन और कैसे रोकेगा।
जाहिर तौर पर इसको रोकने का सबसे बेहतर तरीक़ा फैक्ट चेक करना ही हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में उभरे कई फ़ैक्ट-चेकर मेटा से मिलने वाले फंड पर बहुत अधिक निर्भर हैं। अमेरिका में कंपनी के रुख के किसी भी संभावित प्रभाव का मतलब होगा कि इन फ़ैक्ट चेकरों के काम पर बुरा असर पड़ेगा। द इंडियन एक्सप्रेस ने एक फैक्ट-चेकिंग संगठन के वरिष्ठ कार्यकारी के हवाले से रिपोर्ट दी है कि 'यह अस्तित्व पर संभवतः सबसे बड़ा खतरा है जिसका सामना कई फैक्ट चेकर्स को करना होगा।'
मेटा के सह-संस्थापक और सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स सहित मेटा प्लेटफॉर्म पर कई प्रमुख कंटेंट-संबंधी बदलावों की घोषणा की। उनमें से प्रमुख मेटा का अमेरिका में अपने थर्ड-पार्टी फैक्ट चेकिंग कार्यक्रम को ख़त्म करने का निर्णय है।
जुकरबर्ग ने कहा है कि कंपनी अब एलन मस्क की कंपनी एक्स के कम्युनिटी नोट्स की तरह कम्युनिटी- आधारित प्रणाली पर जाने की सोच रही है।
जुकरबर्ग ने एक वीडियो में कहा, 'हम अपनी जड़ों की ओर वापस लौटेंगे और ग़लतियों को कम करने, अपनी नीतियों को सरल बनाने और अपने प्लेटफॉर्म पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे। ...सबसे पहले, हम फैक्ट-चेकरों से छुटकारा पाने जा रहे हैं और उन्हें अमेरिका से शुरू करते हुए एक्स के समान सामुदायिक नोट्स से बदल देंगे।' मेटा ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा, 'एक्स पर जिस तरह से वे करते हैं, सामुदायिक नोट्स को पक्षपातपूर्ण रेटिंग को रोकने में मदद करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों वाले लोगों के बीच सहमति की ज़रूरत होगी।'
भले ही मेटा के थर्ड-पार्टी फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम को ख़त्म करने का निर्णय फ़िलहाल संयुक्त राज्य अमेरिका तक ही सीमित है, लेकिन भारत में फ़ैक्ट चेकरों का मानना है कि भारत में इसी तरह के बदलाव किए जाने में समय लगेगा। अंग्रेज़ी अख़बार ने फ़ैक्ट चेकरों से बातचीत के आधार पर कहा है कि अगर ऐसा होता है तो दो प्रमुख चिंताएँ हैं: फंडिंग और लोगों की नज़र। फ़ैक्ट चेकरों ने कहा कि कई भारतीय संस्थाओं के लिए मेटा के थर्ड-पार्टी फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम का हिस्सा बनना ही फंडिंग का एकमात्र स्रोत है। अगर यह बंद हो जाता है, तो इसका मतलब यह हो सकता है कि उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ेगी।
दूसरा यह है कि ये फ़ैक्ट चेकर अपने काम पर नज़र रखने के लिए मेटा प्लेटफ़ॉर्म पर भी निर्भर करते हैं। फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम उनकी अपनी वेबसाइट पर ट्रैफ़िक लाने के सबसे बड़े ज़रिया हैं, और अगर उनके फैक्ट-चेक प्लेटफ़ॉर्म से गायब हो जाते हैं, तो इससे उनकी वेबसाइट पर आने वाले लोगों की संख्या पर गंभीर असर पड़ सकता है।
रिपोर्ट है कि मेटा इंटरनेशनल फ़ैक्ट-चेकिंग नेटवर्क द्वारा प्रमाणित फ़ैक्ट चेकरों के साथ काम करता है, जो मूल रिपोर्टिंग के माध्यम से मेटा प्लेटफ़ॉर्म पर पोस्ट की सटीकता की समीक्षा और रेटिंग करते हैं। भारत में, मेटा के पास वर्तमान में 12 ऐसे फ़ैक्ट चेकिंग पार्टनर हैं, जिनमें पीटीआई, एएफ़पी, इंडिया टुडे फ़ैक्ट चेक, द क्विंट जैसे कुछ मुख्यधारा के प्रकाशक शामिल हैं। इनमें कई छोटी फ़र्म भी हैं।
वैसे, भारत में फैक्ट चेकिंग यूनिट पर संकट के बादल देश के अंदर भी मंडराते रहे हैं। सरकार समय-समय पर क़ानून में बदलाव कर ऐसा करने की कोशिश की। केंद्र सरकार ने 2023 में आईटी नियमों में संशोधन किया था।
सरकार आईटी एक्ट में संशोधन के ज़रिए सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर झूठी या फर्जी खबरों की पहचान करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट बना सकती थी। सरकार के इस फ़ैसले की चौतरफ़ा जमकर आलोचना की गई।
इसी वजह से इसके ख़िलाफ़ अदालत का रुख किया गया। कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन ने याचिका लगाकर आईटी नियमों में संशोधन को चुनौती दी। इनमें तर्क दिया गया कि फेक न्यूज तय करने की शक्तियां पूरी तरह से सरकार के हाथ में होना प्रेस की आजादी के विरोध में है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने आईटी एक्ट में किए गए संशोधन को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि आईटी एक्ट में संशोधन जनता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सुनवाई के दौरान जस्टिस गौतम पटेल ने कहा था कि संशोधित आईटी नियम सेंसरशिप के समान हैं।