आयुष्मान भारत पीएम जन आरोग्य योजना का 'इलाज' क्यों जरूरी

04:27 pm Jan 09, 2025 | सत्य ब्यूरो

बेंगलुरु में 72 साल के शख्स ने आयुष्मान भारत प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) के लाभ से इनकार किए जाने के बाद 25 दिसंबर को आत्महत्या कर ली। उन्हें गैस्ट्रिक कैंसर था। उनकी खुदकुशी का मामला मीडिया में गुरुवार को सामने आया। रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित एक रिटायर्ड राज्य सरकार का कर्मचारी था।  रिपोर्ट में कहा गया है कि मरीज को तब और झटका लगा जब उसे पता चला कि अस्पताल ने उसे आयुष्मान भारत वरिष्ठ नागरिक योजना के तहत ₹5 लाख का कवर देने से इनकार कर दिया है। इस योजना में सीनियर सिटिजन की उम्र सीमा केंद्र ने हाल ही में बढ़ाई थी।

अखबार के पन्नों में बेंगलुरु की यह खबर किसी कोने में दबकर रह गई। टीवी चैनलों को ऐसी खबरों से मतलब नहीं है। आयुष्मान भारत योजना सभी बीजेपी राज्यों ने लागू की हुई है। लेकिन किसी भी राज्य में अस्पताल इस योजना के तहत गरीबों को इसका फायदा नहीं दे रहे हैं। सरकार के पास फुरसत ही नहीं है कि वो बीजेपी शासित राज्यों में ही सही इस योजना की समीक्षा करे।

पीएम मोदी ने अपने मन की बात रेडियो कार्यक्रम में जब आयुष्मान भारत योजना का उल्लेख किया, तो उन्होंने कहा था कि वह उन लाखों गरीब नागरिकों के संकट को हल करना चाहते हैं, जो दशकों से “निरंतर चिंता से घिरा हुआ अपना जीवन जी रहे हैं। अगर वे बीमार पड़ गए तो क्या होगा, इलाज करायेंगे, या परिवार के लिए रोटी कमाने की चिंता करेंगे? 

प्रधानमंत्री ने अच्छा सोचा होगा लेकिन उनकी सोच इस योजना का लाभ पहुंचाने में क्यों नहीं दिख रही है। आयुष्मान भारत अस्पताल में भर्ती होने से जुड़ी अप्रत्यक्ष लागतों को पहचानने और उनकी भरपाई करने में विफल है। इसलिए गरीबों के लिए इसका कोई मतलब नहीं हैं।

यूपी के हालात

यूपी के कुछ जिला अस्पतालों में लंबे समय से इस योजना के तहत एक भी इलाज नहीं हुआ है। आयुष्मान भारत योजना के क्रियान्वयन में फिसड्डी उत्तर प्रदेश को 'हालात दुरुस्त' की सलाह केंद्र सरकार ने ही दी थी। लेकिन हालात कभी दुरुस्त नहीं हुए।  

इस योजना की सबसे बड़ी कमी है- सार्वजनिक अस्पतालों का सक्रिय न होना। जबकि सरकारी अस्पतालों में इस योजना को सफल होना चाहिए था। प्राइवेट अस्पताल भी बकाया भुगतान में देरी की वजह से योजना में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। अधिकांश भाजपा शासित राज्यों में इस योजना के आंकड़े खराब हैं। लेकिन यूपी टॉप पर है।


केंद्र सरकार यूपी को 2020 से कह रही है कि वो इस योजना के तहत दैनिक इलाज की संख्या को तीन गुना करे। यूपी में चिकित्सा बीमा योजना की पहुंच वैसे भी कम है। क्योंकि अधिकांश सार्वजनिक अस्पतालों पर बहुत बोझ है। वे मरीजों के दबाव को संभालने में असमर्थ हैं। यूपी में आयुष्मान योजना के एक करोड़ से अधिक लाभार्थी परिवार बताए जा रहे हैं जबकि योजना का लाभ पाने वाले वास्तविक लोग 1000 भी नहीं हैं। आयुष्मान योजना में कई खामियां हैं, जिससे जरूरतमंद गरीबों के लिए इलाज कराना मुश्किल हो गया है।

2019 में योजना के तहत देश भर में उठाए गए 7,602 करोड़ रुपये के दावों में से बड़ी राशि मंजूर नहीं की जा सकी है। यूपी में अब तक केवल 2,312 अस्पताल ही आयुष्मान भारत योजना के तहत सूचीबद्ध हैं, जिनमें 842 सार्वजनिक अस्पताल और 1,470 निजी अस्पताल शामिल हैं। इस योजना के तहत अब तक यूपी में लगभग 2,628 स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र कार्यरत हैं। जरूरतमंद मरीज़ न केवल आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज पाने में असमर्थ हैं, बल्कि राष्ट्रीय आरोग्य नीति के तहत इलाज से भी वंचित हैं।

गुजरात के हालात

यूपी में इस योजना के हाल पर बात ऊपर हो चुकी है। लेकिन भाजपा और मोदी के आदर्श राज्य गुजरात की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। गुजरात में निजी अस्पतालों ने गरीबों के लिए लाई गई इस योजना को कमाई का जरिया बना लिया है। 2023 में सीएजी (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की ऑडिट रिपोर्ट में इस योजना के तहत गुजरात के अस्पतालों में अनियमितताएं सामने आईं। इस योजना के जरिये इलाज की आड़ में अस्पतालों ने सरकार से लाखों रुपये वसूले हैं। सीएजी रिपोर्ट 2023 के अनुसार, जनवरी 2021 से मार्च 2021 की अवधि के दौरान, ऑडिटरों ने गुजरात के 50 अस्पतालों का दौरा किया और अनियमितताएं पाईं।

मध्य प्रदेश के हालातः भाजपा शासित मध्य प्रदेश के हालात भी यूपी और गुजरात जैसे हैं। गुजरात की तरह सीएजी ने मध्य प्रदेश में भी जांच की और बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां पकड़ीं। कैग रिपोर्ट 2023 के मुताबिक जांच में पाया की 447 मरीजों का इलाज हुआ ही नहीं और उनकी मौत हो गई। लेकिन प्राइवेट अस्पतालों ने सरकार से लाखों रुपये वसूल लिये। 8081 मरीजों का अस्पताल एक ही समय में एकसाथ कई अस्पतालों में चलता हुआ पाया गया।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से उन गरीब मरीजों के बारे में रिपोर्ट मांगी है जो आयुष्मान भारत के लाभार्थी होने पर राष्ट्रीय आरोग्य निधि (आरएएन) के तहत इलाज नहीं करा पा रहे हैं। एनएचआरसी के अनुसार, उसे शिकायतें मिली हैं कि बीपीएल कार्ड रखने वाले मरीजों को एबी-पीएमजेएवाई का लाभ लेने पर आरएएन लाभ नहीं मिल रहा है।

ऐसे मामले भी सामने आये, जब आयुष्मान भारत के लाभार्थी रक्त कैंसर और पुरानी लीवर रोगों के इलाज का लाभ नहीं उठा पाए, क्योंकि ये प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कवर नहीं हैं। आयोग ने मंत्रालय से उचित कार्रवाई करने को कहा। वो उचित कार्रवाई क्या हुई, उसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है।

केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना का विस्तार नवंबर में किया और इसके जरिए 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को कवर किया गया। चाहे उनकी आय कुछ भी हो। इसके जरिये वरिष्ठ नागरिकों को सालाना 5 लाख रुपये का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा कवर दिया गया। इससे लगभग 4.5 करोड़ परिवारों को लाभ होने का दावा मोदी सरकार ने किया था। लेकिन बेंगलुरु से जो खबर आई, उसमें इस योजना का लाभ न पाने वाले बुजुर्ग की उम्र 72 साल थी।

वित्तीय योजनाकार और हम फौजी एनजीओ के सीईओ कर्नल संजीव गोविला (रिटायर्ड) ने इकोनॉमिक टाइम्स को दिये गये इंटरव्यू में कहा कि इस योजना के नाकाम होने की वजह नेटवर्क में पर्याप्त गुणवत्ता वाले अस्पताल का नहीं होना है। आयुष्मान भारत मुख्य रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए लाया गया है, और इसके पैनल में शामिल अस्पतालों का नेटवर्क अक्सर सरकारी और कुछ निजी अस्पतालों तक ही सीमित है। कर्नल संजीव गोविला का कहना है कि अगर पसंदीदा अस्पताल या डॉक्टर इस नेटवर्क का हिस्सा नहीं हैं, तो वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष इलाज की गुणवत्ता और उपलब्धता से समझौता करना पड़ेगा।

कई इलाज तो शामिल ही नहीं

आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों को अस्पताल अक्सर अंग प्रत्यारोपण, कॉस्मेटिक सर्जरी और यहां तक ​​कि कुछ प्रकार के कैंसर इलाज के लिए मना कर देते हैं। ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों को इसका फायदा नहीं मिलता है। यह आवश्यक है कि सरकार कवरेज व्यापक और लचीला करे।