साल 1990 से ही कश्मीर से निर्वासित कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी को बीजेपी बड़ा मुद्दा बनाती रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी इस दिशा में लगातार काम करता है। लेकिन हाल ही में मोदी सरकार में मंत्री बनाई गईं मीनाक्षी लेखी ने कश्मीरी पंडितों के संबंध में जो बयान दिया है, उस पर बीजेपी और संघ परिवार की कोई प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है।
हाई प्रोफ़ाइल नई दिल्ली सीट से सांसद मीनाक्षी लेखी से कश्मीरी पंडितों के साथ एक ऑनलाइन बातचीत के दौरान सवाल पूछा गया कि कश्मीरी पंडितों को वहां कब बसाया जाएगा और कब उनकी संस्कृति को बचाया जाएगा।
प्रवासी मजदूरों से की तुलना
लेखी ने इसके जवाब में कहा कि वह इस सवाल से हैरान हैं। उन्होंने कहा कि इस देश का कोई भी नागरिक देश में जहां चाहे वहां जा सकता है, किसी को उनके घर जाने से कोई नहीं रोक रहा है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “दिल्ली में कोरोना आया और उस दौरान बिहार, झारखंड और दूसरे राज्यों के प्रवासी मजदूर अपने घरों को चले गए और फिर वापस भी आए।”
उनसे पूछा गया कि क्या कश्मीरी पंडितों के लिए घाटी में जाना संभव है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार देश भर के लोगों के साथ खड़ी है और लोगों को भी इसके लिए व्यक्तिगत प्रयास करने चाहिए।
बयान पर जताई नाराज़गी
ऑनलाइन बातचीत में मौजूद कई लोगों ने लेखी के इस बयान पर नाराज़गी जताई और कहा कि केंद्रीय मंत्री को इस बात का पता नहीं है कि कश्मीरी पंडितों ने क्या झेला है। मंत्री को कोरोना के दौरान घर लौटे लोगों से उनकी तुलना नहीं करनी चाहिए।
पीडीपी ने दी कड़ी प्रतिक्रिया
पीडीपी के प्रवक्ता मोहित भान ने लेखी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भान ने ट्वीट कर कहा, “बीजेपी की कोर मेंबर मीनाक्षी लेखी का यह बयान कश्मीरी पंडितों के समुदाय के मुंह पर जोरदार तमाचा है। लेखी को अपनी नीतियों के बारे में खुलकर बोलने के लिए धन्यवाद।” मोहित भान भी कश्मीरी पंडित हैं।
इसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता अश्विनी च्रूंगू ने ट्वीट कर कहा कि वह लेखी से मांग करेंगे कि वह अपना बयान वापस ले लें।
बीजेपी और संघ परिवार की ओर से आधिकारिक रूप से कोई बयान इस मसले पर ज़रूर आना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि मोदी सरकार में शामिल एक मंत्री के कश्मीरी पंडितों को लेकर दिए गए इस बयान से ये संगठन इत्तेफाक रखते हैं या नहीं।
कश्मीरी पंडित उन्हें फिर से घाटी में बसाने की आस भी बीजेपी और संघ परिवार से लगाए रहते हैं और इसलिए काफ़ी हद तक इनका समर्थन भी करते हैं।
मीनाक्षी लेखी ने हाल ही में कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों के बारे में बात करते हुए मवाली शब्द का इस्तेमाल किया था। इस पर विवाद होने के बाद उन्हें माफ़ी मांगनी पड़ी थी।