ट्विटर पर मीटू (#MeToo) आंदोलन के बाद यौन उत्पीड़न का सामना कर रहे पूर्व विदेश राज्य मंत्री एम. जे. अकबर के मामले में पत्रकार ग़ज़ाला वहाब ने कोर्ट में अपने बयान दर्ज कराए। वह पत्रकार प्रिया रमानी के केस में गवाह के रूप में पेश हुई थीं। ग़ज़ाला ने दिल्ली के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने उन घटनाक्रमों को सिलसिलेवार तरीक़े से बताया जो उनके सामने घटीं। कोर्ट इस मामले में एम. जे. अकबर द्वारा पत्रकार प्रिया रमानी के ख़िलाफ़ दर्ज कराए गए अवमानना मामले में सुनवाई कर रहा था। प्रिया रमानी ने अकबर के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था। इसके बाद अकबर ने रमानी पर अवमानना का केस दायर किया था। प्रिया रमानी भी मंगलवार को कोर्ट में मौजूद थीं। जब मीटू आंदोलन चल रहा था तब 20 से ज़्यादा महिलाओं ने अकबर पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। इसके बाद अकबर को विदेश राज्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था।
प्रिया रमानी से पहले ग़ज़ाला वहाब ने 2018 में भी एम. जे. अकबर के ख़िलाफ़ ट्वीट किया था- मुझे संदेह है कि एम. जे. अकबर के बारे में खुलासे कब होंगे।' मीटू आंदोलन में अकबर के फँसने के बाद ग़ज़ाला ने ' द वायर' के लिए इस पर एक लेख लिखा था जिसमें अकबर के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों के सिलसिले में घटनाओं का सिलसिलेवार ज़िक्र किया गया था। इन्हीं घटनाओं का ज़िक्र उन्होंने कोर्ट में भी किया जब वह प्रिया रमानी के गवाह के रूप में पेश हुईं। कोर्ट में अपनी गवाही के दौरान ग़जाला ने कहा कि 'द एशियन एज' अख़बर में, जहाँ तब एम. जे. अकबर संपादक थे, मेरी डेस्क अकबर के केबिन के ठीक बाहर रखी गई थी ताकि जब दरवाज़ा थोड़ा सा भी खुला हो तो वह मुझे देख सकें।
'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़ाला ने कथित तौर पर अदालत में कहा, ‘कई बार जब मैं अपने पीसी पर काम कर रही होती थी और मैंने अपनी स्क्रीन से देखा, तो मैंने अकबर को मुझे देखते हुए पाया।’ उन्होंने कहा कि इसके बाद उन्हें ‘द एशियन एज’ की इंट्रानेट मैसेजिंग सर्विस पर व्यक्तिगत संदेश मिलने शुरू हो गए।
उन्होंने यह भी कहा कि अगस्त 1997 में, एम.जे. अकबर ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया, उन्हें दरवाज़ा बंद करने के लिए कहा और उन्हें शब्दकोश में एक शब्द देखने के लिए कहा, जिसे उसकी डेस्क पर एक स्टूल पर रखा गया था। उन्होंने कहा, ‘यह (पुस्तक) इतने नीचे रखी गई थी कि किसी को झुकना पड़े। जब मैं नीचे झुकी, एम.जे. अकबर पीछे से आए और उन्होंने मेरी कमर पकड़ ली। वह अपने हाथों को मेरे ब्रेस्ट से लेकर हिप्स तक ले गये। मैंने उनके हाथों को दूर करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरी कमर मज़बूती से पकड़ी हुई थी।’ उन्होंने इस घटना को और विस्तार से कोर्ट को बताया।
हालाँकि, यह एकमात्र घटना नहीं थी। 'द न्यूज़ मिनट' के अनुसार, ग़ज़ाला ने अगले दिन हुई घटना के बारे में भी सुनाया, जिसके बारे में उन्होंने ‘द वायर’ में भी लिखा था। उन्होंने कहा, ‘अगली शाम, उन्होंने मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं वहाँ गई तो वह दरवाजे के बगल में खड़े थे और इससे पहले कि मैं प्रतिक्रिया दे पाती उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया, मुझे उन्होंने अपने शरीर और दरवाज़े के बीच फँसा दिया… बाद में मैं बाहर भाग गयी।’
अदालत में उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में जब उन्होंने ब्यूरो चीफ़ को बताया कि क्या हुआ था, तो उन्होंने कथित तौर पर कहा कि यह ग़ज़ाला पर निर्भर है कि उन्हें क्या करना है। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि ‘1997 में कार्यस्थल अब के कार्यस्थलों से बहुत अलग थे। महिलाओं को पुरुष सहयोगियों के ख़िलाफ़ बोलने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता था।
ग़ज़ाला ने कहा कि अकबर ने बाद में उनसे कहा कि वह उन्हें अहमदाबाद में शिफ्ट करना चाहते हैं, जहाँ वह एक फ़ीचर संपादक होंगी...। उसके बाद उन्होंने अहमदाबाद जाने के बहाने अपनी डेस्क खाली करनी शुरू कर दी और जिस दिन वहाँ से जाना था उसी दिन उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था। ग़ज़ाला ने अदालत को बताया कि उसे अपनी कहानी साझा करने के लिए मीटू आंदोलन ने प्रोत्साहित किया।
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर महीने में एम.जे. अकबर को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। कई महिला पत्रकारों की ओर से यौन शोषण और दुर्व्यवहार का आरोप लगाए जाने के बाद उन पर इस्तीफ़े को लेकर दबाव बढ़ गया था। कांग्रेस ने भी उनके इस्तीफ़े की मांग की थी। तब अकबर ने इस्तीफ़े के बाद बयान दिया था कि ‘मैं अदालत में न्याय के लिए गया हूँ। ऐसे में मेरा पद से इस्तीफ़ा दे देना उचित है। मैं इन झूठे आरोपों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ूँगा।’ इसके ूबाद ही उन्होंने प्रिया रमानी के ख़िलाफ़ अवमानना का केस दर्ज कराया है।