50% आरक्षण सीमा हटी तो क्या अब राज्यों में आंदोलन होंगे तेज?

05:20 pm Nov 08, 2022 | सत्य ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण पर मुहर लगाते हुए 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा पर अपना रुख बदलने का संकेत दे दिया है। 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण का रास्ता साफ़ होने से अब क्या होगा? क्या अब आरक्षण के लिए वो पुरानी मांगें फिर से नहीं उठेंगी जिसके लिए कभी भारी हिंसा तक हो चुकी है?

क्या मराठा, जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की माँग ज़ोर नहीं पकड़ेगी? जिस तरह मराठा आरक्षण के लिए हिंसा की हद तक चले गए थे उसी तरह जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी जब तब आंदोलन करते रहे हैं। जाट और पाटीदार आंदोलन में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। दूसरी जातियाँ भी आरक्षण मांगती रही हैं। 

सबसे ताज़ा मामला तो मराठा आरक्षण का है। पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के उस आरक्षण को रद्द कर दिया था जिसको बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा समुदाय को 12-13 फ़ीसदी आरक्षण देने को हरी झंडी दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं बनी है।

बता दें कि मराठा आरक्षण की मांग 1980 के दशक से चल रही है। 2018 में इस आंदोलन ने जोर पकड़ा। इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। 400 से ज़्यादा लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी।

तब तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने आनन-फानन में बैठक बुलाकर 16% मराठा आरक्षण देने का क़ानून मंजूर करने की घोषणा कर दी थी। लेकिन इसको अदालत में चुनौती दी गई और फिर अदालत ने 50 फ़ीसदी सीमा का हवाला देते हुए उस आरक्षण को रद्द कर दिया था। 

अब जबकि आरक्षण की इस सीमा के ख़त्म किए जाने के संकेत मिल रहे हैं तो फिर से मराठा आंदोलन शुरू हो सकते हैं।

जाट आंदोलन

जाट अपने समुदाय के लिए ओबीसी का दर्जा और आरक्षण माँग रहे हैं। क़रीब पाँच साल पहले हरियाणा में जाट आरक्षण की माँग को लेकर हिंसक आंदोलन हुआ था। आगजनी हुई थी। महिलाओं से गैंगरेप के मामले भी आए थे। आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में 30 लोग मारे गए थे जबकि लगभग 350 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे। केंद्र सरकार को इस आग को बुझाने के लिए सेना उतारनी पड़ी थी।

इन घटनाओं के बाद जाटों की मांग पूरी नहीं हुई। इसके बाद भी वे लगातार मांग करत रहे हैं। वे कहते रहे हैं कि जाट समाज के प्रमुख संगठनों, विधायकों, सांसदों व मंत्रियों की मौजूदगी में जाट समाज को केंद्रीय स्तर पर ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का वादा किया गया था, लेकिन अब तक ऐसा नहीं किया गया है। 

गुर्जर आंदोलन

गुर्जर समुदाय ख़ुद को ओबीसी से हटाकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा का माँग करता रहा है। राजस्थान में 2007 और 2008 में हिंसक आंदोलन में कई लोग मारे गए थे। बाद में राज्य सरकार ने राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम- 2019 के तहत गुर्जर सहित पाँच जातियों गाड़िया लुहार, बंजारा, रेबारी व राइका को एमबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग में पाँच प्रतिशत विशेष आरक्षण दे दिया था। हालाँकि इसके बाद भी और ज़्यादा आरक्षण की माँग होती रही है। कई बार यह आंदोलन भी हिंसक हुआ। 

राजस्थान में रेलवे ट्रैकों पर कई दिनों तक ट्रेनें बंद रहीं। गुर्जर समुदाय के लोगों ने पटरियों पर ही टेंट लगा दिए थे। वे अपनी मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं।

पाटीदार आंदोलन

हार्दिक पटेल अब जिस बीजेपी के साथ हो लिए हैं वे एक समय बीजेपी शासित गुजरात में पाटीदार समुदाय के आरक्षण के लिए हाथों में झंडा उठाए चल रहे थे। उन्होंने बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था।

हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाली पाटीदार अनामत आंदोलन समिति अपने समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने और आरक्षण की माँग करती रही है। हालाँकि पटेल समुदाय आरक्षण की मांग राज्य में दो दशक से ज़्यादा समय से कर रहा है। जुलाई 2015 में हिंसक प्रदर्शन हुआ था। आंदोलन जब तक शांत हुआ तब तक करोड़ों रुपये इसकी भेंट चढ़ चुके थे। उस हिंसा को लेकर हार्दिक पटेल के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज की गई थी। इन घटनाओं के बाद भले ही आंदोलन कमजोर पड़ गया, लेकिन आरक्षण की मांग उनकी लगातार बनी हुई है।

कापू आरक्षण 

आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय लगातार ओबीसी के तहत आरक्षण की माँग करते रहे हैं। साल 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलुगू देशम पार्टी ने राज्य की सत्ता में आने पर कापू समुदाय को पाँच फ़ीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। फ़रवरी 2016 में कापू आरक्षण आंदोलन की मांग उग्र और हिंसक हो गई थी। दिसंबर 2017 में इसके लिए राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। हालाँकि केंद्र सरकार ने उस पर सहमति नहीं जताई थी। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कापू समुदाय काफ़ी ताक़तवर माना जाता है। कापू एक किसान जाति है। आंध्र प्रदेश में इसे ऊँची जातियों में रखा गया है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब दूसरी जातियाँ भी इसी आधार पर अपने लिए आरक्षण नहीं माँगेंगी और ऐसे में क्या बवाल नहीं मचेगा?