दिल्ली हाईकोर्ट की जज के मनुस्मृति की तारीफ करने का विवाद तूल पकड़ रहा है। तमाम महिला अधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिल्ली हाईकोर्ट की जज प्रतिभा एम सिंह की टिप्पणी की निन्दा की है। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने जबरदस्त विरोध किया है। उन्होंने एक दिन पहले कहा था कि भारतीय महिलाएं "भाग्यशाली" हैं क्योंकि मनुस्मृति जैसे ग्रंथ उन्हें "बहुत सम्मानजनक स्थान" देते हैं।
मनुस्मृति के संबंध में जज ने यह टिप्पणी फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) एक कार्यक्रम की थी। उन्होंने कहा था कि महिलाओं के लिए बिजनेस के क्षेत्र में अपार अवसर हैं, लेकिन उन्हें ऐसी प्रणालियों की जरूरत है जो उनके लिए अनुकूल और लचीली हों ताकि वे अपनी शैक्षणिक योग्यता का उपयोग क्षेत्र और सकल घरेलू उत्पाद में अधिक योगदान करने के लिए कर सकें।
उसी संबोधन के दौरान, जस्टिस प्रतिभा सिंह ने भारतीय शास्त्रों के उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा: वास्तव में, एशियाई देशों में महिलाओं का सम्मान घरों में बहुत ज्यादा है और वो बहुत बेहतर स्थिति में हैं। ऐसा हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण है। हम जहां हैं और जो हम चाहते हैं उसे हासिल करने के लिए महिलाएं और पुरुष समान रूप से हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि मनुस्मृति भी कहती है कि ऐसी प्रार्थना बेकार है जब तक कि महिलाओं का सम्मान नहीं किया जाता।
इन टिप्पणियों पर महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन ने एक बयान में जस्टिस प्रतिभा सिंह के विचारों से अपनी "मजबूत असहमति" दर्ज की है।
संगठन की महासचिव अन्नी राजा ने कहा, जस्टिस प्रतिभा सिंह ने महिलाओं के लिए आगे बढ़ने का रास्ता मनुस्मृति को कायम रखने के लिए निर्धारित किया, एक ऐसा दस्तावेज जो वर्णव्यवस्था की नींव पर बनाया गया है। मनुस्मृति का उनका जिक्र महिलाओं के अधिकारों का जानबूझकर अनदेखा करना है। मनुस्मति में वर्ण व्यवस्था की बात कर महिलाओं के अधिकारों को भी दबाया गया है। जस्टिस प्रतिभा की टिप्पणी को 'घोर अज्ञानी' बताते हुए कहा गया है कि जस्टिस प्रतिभा सिंह महिलाओं की दयनीय स्थिति से अनभिज्ञ हैं। विशेष रूप से ऐतिहासिक रूप से तमाम समुदायों में हाशिए पर खिसका दी गई महिलाओं की स्थिति वो नहीं जानती। ऐसा सिर्फ भारत ही में नहीं पूरी दुनिया में हुआ है।
सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन, जो अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ से भी जुड़ी हैं, ने मनुस्मृति के कुछ हिस्सों को कोट किया और कहा, "मनुस्मृति महिलाओं की 'श्रद्धा' या 'पूजा' करने को कहती है, जो वास्तव में महिलाओं पर नियंत्रण करना हैस ताकि सभी जातिगत रंगभेद को बनाए रखा जाए। ... एक जज के लिए इसे महिलाओं का 'सम्मान' बताना बेतुके से भी बदतर है।
सोशल मीडिया पर भी जज की टिप्पणी को लेकर खासा वाद-विवाद हुआ। ज्यादातर लोगों ने जज की मनुस्मृति वाली टिप्पणी पर ऐतराज किया। इन लोगों ने कहा कि महिलाओं को सम्मानजनक स्थान मनुस्मृति नहीं बल्कि भारतीय संविधान देता है। मनुस्मृति ने तो महिलाओं को केवल भोग विलास की वस्तु बताया था। यह तो भारत का संविधान है जो महिलाओं को बराबरी का हक देता है।
कुछ लोगों ने कहा कि यह अपने आप में शर्मनाक है कि जिन्हें संविधान के तहत अधिकार मिले, वो एक ऐसे ग्रंथ का गुणगान कर रही हैं जिसने महिलाओं के अधिकारों को दबाया। जिस मनुस्मृति में महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं था, उस ग्रंथ की तारीफ कैसे की जा सकती है। हालांकि कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर मनुस्मृति का गुणगान तो किया लेकिन वो जज की टिप्पणी पर खामोश रहे, उनकी बातों का समर्थन नहीं किया।