मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी को झूठा क़रार दिया है। उन्होंने दावा किया है कि पीएम मोदी ने नेहरू पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और ग़लत दावे किए हैं। उन्होंने कहा, ‘नेहरू के राज्यों को लिखे पत्र को तोड़-मरोड़कर पेश करके लोगों को गुमराह करने के लिए पीएम मोदी को लोगों से माफी मांगनी चाहिए।’
सोमवार को राज्यसभा के सत्र में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया और उनकी तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री अतीत में जी रहे हैं और सुझाव दिया कि मोदी के लिए समकालीन उपलब्धियों के बारे में बात करना अधिक फायदेमंद होता। खड़गे ने नागरिकों को धोखा देने के लिए खोखली बयानबाजी करने के लिए भाजपा की भी निंदा की।
शनिवार को लोकसभा बहस के समापन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के संवैधानिक संशोधनों का बचाव किया था और कहा था कि उनका उद्देश्य कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए संशोधनों के विपरीत सत्ता को मजबूत करना नहीं है। उनकी टिप्पणियों पर विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया, खासकर जब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तहत आपातकाल के कालखंड का हवाला दिया। पीएम मोदी ने नेहरू के कार्यकाल में किए गए पहले संशोधन को लेकर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि नेहरू ने संशोधन सत्ता को मज़बूत करने के लिए किया। पीएम ने आरक्षण के मुद्दे पर नेहरू द्वारा राज्यों को लिखी गई चिट्ठी को लेकर भी आलोचना की।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में किए गए दावों का मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में सोमवार को फ़ैक्ट चेक किया। उन्होंने पीएम मोदी पर तीन बड़े झूठ बोलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा,
"नरेंद्र मोदी का पहला झूठ: साल 1947 से 1952 के बीच कोई चुनी हुई सरकार नहीं थी और गैर-कानूनी संशोधन लाए जा रहे थे।
सच: मोदी जी, नेहरू जी के खिलाफ नफरत में इतना बह गए कि उन्होंने संविधान सभा, अंतरिम सरकार और अंतरिम संसद पर सवाल खड़ा कर दिया, जबकि इन सभी में श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे।
नरेंद्र मोदी का दूसरा झूठ: 1951 में जब चुनी हुई सरकार नहीं थी, तब नेहरू जी ने अध्यादेश लाकर संविधान बदला।
सच: संविधान का पहला संशोधन प्रोविजनल पार्लियामेंट ने किया था। प्रोविजनल पार्लियामेंट के सदस्य संविधान सभा के ही सदस्य थे, जिनमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे।
नरेंद्र मोदी का तीसरा झूठ: सरदार वल्लभभाई पटेल जी की जगह पंडित जवाहरलाल नेहरू जी खुद प्रधानमंत्री बने।
सच: 1946 के कैबिनेट मिशन प्लान के तहत कांग्रेस ने एग्जीक्यूटिव काउंसिल में नेहरू जी को वाइस प्रेसिडेंट बनाया था, इसीलिए उन्होंने 1947 में अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया। देश का पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ, जिसके बाद नेहरू जी प्रधानमंत्री बने, तब सरदार पटेल जी इस दुनिया में नहीं थे।"
खड़गे ने आगे कहा है, "सरदार पटेल जी ने 14 नवंबर, 1950 को नेहरू जी के जन्मदिन पर लिखे बधाई पत्र में लिखा था कि: 'कुछ स्वार्थ प्रेरित लोगों ने हमारे विषय में भ्रांतियां फैलाने की कोशिश की हैं और कुछ भोले व्यक्ति उस पर विश्वास भी कर लेते हैं। लेकिन वास्तव में हम लोग आजीवन बंधुओं की भांति साथ काम करते रहे हैं। अवसर की मांग के अनुसार हमने परस्पर एक-दूसरे के दृष्टिकोण के मुताबिक़ अपने आप को बदला है और एक-दूसरे के मतभेदों का भी सम्मान किया है, जैसा कि गहरा विश्वास होने पर ही किया जाता है।'
कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रोविजनल पार्लियामेंट द्वारा किए गए संविधान के पहले संशोधन को लेकर कहा, 'ये संशोधन इसलिए किया गया, ताकि पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए और जमींदारी उन्मूलन हो सके। क्योंकि उस वक़्त मद्रास स्टेट के आरक्षण के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था।'
उन्होंने कहा,
“
संशोधन करने का दूसरा पक्ष यह भी था कि इससे एससी-एसटी, ओबीसी वर्ग को शिक्षा और रोजगार का आरक्षण मिल सकेगा। इस संशोधन का तीसरा पक्ष यह भी था कि इससे साम्प्रदायिक दुष्प्रचार रोका जा सकेगा।
मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस अध्यक्ष
खड़गे ने कहा, "यही नहीं, इस बारे में 3 जुलाई, 1950 को सरदार पटेल जी ने पंडित नेहरू जी को पत्र लिखकर संविधान संशोधन को ही समस्या का हल बताया था।'
उन्होंने कहा, 'मोदी जी ने अपने भाषण में नेहरू जी द्वारा मुख्यमंत्रियों को लिखे गए पत्र का जिक्र किया, जिसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। इसके लिए उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए।' कांग्रेस नेता ने कहा कि इस संशोधन के पक्ष में खुद बाबासाहेब आंबेडकर जी ने दो घंटे तक सदन में चर्चा की थी।
1949 में RSS नेताओं ने संविधान का विरोध किया था: खड़गे
इसके साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने आरएसएस पर हमला किया। उन्होंने कहा, 'पूरा देश जानता है कि 1949 में आरएसएस के नेताओं ने संविधान का विरोध किया था, क्योंकि ये मनुस्मृति पर आधारित संविधान नहीं था। आरएसएस के लोगों ने न संविधान को स्वीकार किया और न तिरंगे झंडे को माना था। इसलिए पहली बार 26 जनवरी, 2002 को कोर्ट के आदेश के बाद आरएसएस को अपने मुख्यालय पर मजबूरी में तिरंगा फहराना पड़ा।'
उन्होंने कहा, 'हमारा संविधान देश के हर व्यक्ति को शक्तिशाली बनाता है। यह गरीबों की आवाज है, इसमें जाति-धर्म-पंथ के आधार पर भेदभाव करने की कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन आज संविधान पर खतरा बना हुआ है। आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे सहेजकर रखना एक बड़ी जिम्मेदारी है, जिसके लिए हमें चौकन्ना रहना पड़ेगा, क्योंकि मोदी सरकार की मंशा कब बदल जाए, यह हम नहीं जानते।'
खड़गे ने कहा, 'यूनिवर्सल एडल्ट फ्रेंचाइज का अगर किसी ने विरोध किया तो वह आरएसएस के लोग थे, जो आज हमें पाठ पढ़ा रहे हैं। सच्चाई यही है कि जिन लोगों ने कभी देश के लिए लड़ाई ही नहीं लड़ी, उन्हें आजादी का मतलब कैसे पता होगा?'