मालेगाँव धमाके में ले. कर्नल पुरोहित के ख़िलाफ़ जो सबसे बड़ा आरोप है, वह यह कि उन्होंने एक कट्टर हिंदूवादी संगठन 'अभिनव भारत' का गठन किया जिसका मक़सद भारत में हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना और मुसलिम इलाकों में हिंसक वारदातें कर कथित इसलामी आतंकवाद का बदला लेना था। ले. कर्नल पुरोहित इस संगठन की बैठकों में भाग लेते रहे, इसके ऑडियो-वीडियो सबूत मौजूद हैं, इसलिए पुरोहित इससे इनकार नहीं कर सकते, न ही उन्होंने किया है।
ख़ुद को बताते थे जासूस
पुरोहित का कहना है कि इन बैठकों में उनकी हिस्सेदारी एक जासूस के तौर पर थी और उनका मक़सद उसकी योजनाओं का पता करके किसी अप्रिय घटना को रोकना था। पुरोहित इस सिलसिले में उन चिट्ठियों का भी ज़िक्र करते हैं जो उन्होंने सेना के अधिकारियों को लिखीं और जिसमें उन्होंने मालेगाँव धमाके में प्रज्ञा और इंद्रेश के हाथ होने का अंदेशा जताया था (पढ़ें - पुरोहित की चिट्ठी - धमाके में इंद्रेश का हाथ)।लेकिन ले. कर्नल पुरोहित ने सेना के अधिकारियों को यह जानकारी मालेगाँव में धमाका होने के बाद दी थी, उससे पहले नहीं। यही नहीं, धमाके से पहले वह और उनके साथी क्या-क्या करते रहे थे, यह भी उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया। लेकिन 'अभिनव भारत' के एक सदस्य सुधाकर द्विवेदी के लैपटॉप में जो रिकॉर्डिंग मिली है, उसने पुरोहित और उनके साथियों की सारी सच्चाई उजागर कर दी है।
पहले हम यह जानें कि यह 'अभिनव भारत' क्या है। 'अभिनव भारत', दरअसल एक हिंदूवादी संगठन था जिसकी स्थापना किसने और कब की, इसपर मतभेद है।
हिमानी सावरकर जो गोडसे परिवार की बेटी और सावरकर परिवार की बहू भी थीं, उनका कहना था कि आरएसएस कार्यकर्ता सुधीर कुलकर्णी ने अप्रैल 2008 में 'अभिनव भारत' को शुरू किया था और उनसे इसका अध्यक्ष बनने का आग्रह किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था।
हिमानी सावरकर को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव इसलिए दिया गया क्योंकि वह सावरकर परिवार की बहू थीं और विनायक दामोदर सावरकर ने ही कुछ छात्रों के साथ मिलकर 1905 में 'अभिनव भारत' सोसायटी के नाम से एक गुप्त संस्था बनाई थी, जो सशस्त्र क्रांति में विश्वास करती थी। लेकिन 1906 में सावरकर के विदेश चले जाने के बाद यह संस्था सालों निष्क्रिय रही और 1952 में सावरकर ने ही इसे भंग कर दिया। हिमानी सावरकर का 2015 में निधन हो गया था।
उधर, एटीएस का दावा है कि ले. कर्नल पुरोहित ने ही जून 2006 में इस ट्रस्ट का गठन किया था जब वे क़रीब एक दर्जन लोगों के साथ रायगढ़ में शिवाजी के क़िले में गए, वहाँ शिवाजी के सिंहासन के सामने उनसे आशीर्वाद लिया और ट्रस्ट को 'अभिनव भारत' का नाम देने का संकल्प किया। कुछ महीनों के बाद फ़रवरी 2007 में यह संगठन 'अभिनव भारत' के नाम और बिल्डर अजय राहिरकर के पुणे वाले पते से पंजीकृत हुआ।
अजय राहिरकर जो पुरोहित के स्कूल के समय के दोस्त थे, वे इस ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष बने (अजय राहिरकर पर मालेगाँव धमाके के लिए पैसे जुटाने का आरोप है और वह इस मामले में सह-अभियुक्त हैं)। इसके अन्य प्रमुख नेताओं में रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय भी थे जिनकी पुरोहित से टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत हम भाग 2 में पढ़ चुके हैं।
'अभिनव भारत' ट्रस्ट को अपने कार्यालय के लिए ज़मीन कैसे मिली, यह भी एक दिलचस्प कहानी है।
बूढ़ी महिला से दान में मिली ज़मीन
अजय राहिरकर ने एक दिन पुरोहित को बताया कि एक बूढ़ी महिला के पास ख़ाली ज़मीन है जो वह ऐसे किसी व्यक्ति या ट्रस्ट को सौंपना चाहती हैं जो लोगों की भलाई का काम करे। अजय ने कहा कि वह हमें तो ज़मीन नहीं देंगी लेकिन तुम अगर उनसे मिलो तो आर्मी अफ़सर होने के नाते तुम्हें दे सकती हैं। पुरोहित उनसे मिले और इस तरह 'अभिनव भारत' ट्रस्ट को दफ़्तर के लिए जगह मिली।
इसी बीच एक दिन एक निकट के गिरजाघर में तोड़फोड़ की वारदात हुई। यूनिट की तरफ़ से पुरोहित से कहा गया कि वह पता लगाएँ कि इस तोड़फोड़ में किसका हाथ है। पुरोहित इस सिलसिले में थाने में समीर कुलकर्णी नाम के एक व्यक्ति से मिले जो संघ परिवार से जुड़ा हुआ था। पुरोहित ने उनकी ज़मानत भी कराई।
कुलकर्णी के ज़रिए ही पुरोहित की मुलाक़ात प्रवीण मुतालिक और दयानंद पांडे से भी हुई। ये दोनों कट्टर हिंदू विचारधारा के थे और अपने मक़सद की पूर्ति में तोड़फोड़ और हिंसा को जायज़ हिस्सा मानते थे।
पुरोहित के मन में हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए काम करने और उसके लिए 'अभिनव भारत' संस्था का इस्तेमाल करने के बीज यहीं से पड़े। इसमें रिटायर्ड मेजर उपाध्याय और हथियारों के विशेषज्ञ राकेश धावड़े जैसे लोगों का कितना हाथ था, यह हम आगे जानेंगे।
तहलका ने 2010 में 'अभिनव भारत' की बैठकों के 37 ऑडियो टेप और दो वीडियो देखे-सुने थे। इन रिकॉर्डिंगों से न केवल देशभर में उग्रपंथी हिंदूवादियों के बीच के मेलजोल का पता चलता है बल्कि संघ के प्रति ‘कटुता और शत्रुता’ के भाव भी नज़र आते हैं। संगठन के सदस्यों का मानना था कि संघ ‘मुसलमानों के प्रति द्वेष के अजेंडे’ से दूर जा रहा है।
'25 मुसलमानों को एक साथ जला दिया'
इन टेपों में संगठन के लोगों ने दंगों में अपनी भूमिका भी स्वीकारी है। मसलन, अपोलो हॉस्पिटल के एक एंडोक्रिनॉलजिस्ट आर. पी. सिंह, दयानंद पांडे से कहते हैं, ‘हमने 25 मुसलमानों को एक साथ जला दिया। दिन में मुसलमानों की हत्या, रात में अस्पताल का काम। यह काम ज़रूरी है। हमें दहशत भरनी होगी उनके मन में। अब रोना-धोना नहीं चलेगा।’पूर्व उपराष्ट्रपति अंसारी की हत्या पर चर्चा
इसी बातचीत में आर. पी. सिंह, दिल्ली में बीजेपी के पूर्व सांसद बी. एल. शर्मा ‘प्रेम’, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय और ले. कर्नल पुरोहित से पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की हत्या करने की योजना पर चर्चा करते हैं। सिंह कहते हैं, ‘विहिप के अशोक सिंघल जी से मेरे बहुत अच्छे संबंध थे। वे विलक्षण पुरुष हैं लेकिन संघ के लोगों ने उनको (पद पर) बने रहने नहीं दिया। आरएसएस को अपनी दग़ाबाज़ी की सज़ा भुगतनी होगी।’
इसी बातचीत में पुरोहित स्वीकारते हैं कि इससे पहले के दो धमाकों में उन्हीं का हाथ था। पुरोहित कहते हैं, ‘इस्राइली हमसे हमारे इन्वॉल्वमेंट का सबूत माँगते हैं। उनको क्या प्रूफ़ चाहिए हमने इससे पहले दो ऑपरेशन किए हैं और दोनों सफल रहे हैं। मैंने ही उनके लिए साजो-सामान उपलब्ध करवाया था।’ इस पर मेजर रमेश उपाध्याय कहते हैं, ‘हैदराबाद में जिसने ब्लास्ट किया था, वो अपना ही आदमी था। वह कर्नल आपको बताएँगे, किसने किया था।’
आगे की किस्त में हम देखेंगे टेप में मौजूद कुछ वार्तालापों का विस्तृत ब्यौरा। साथ ही हम जानेंगे कि क्या स्वरूप था इनके ‘सपनों के भारतवर्ष’ के संविधान और झंडे का।