दिल्ली उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों के 150 वकीलों के एक समूह ने भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उच्च न्यायालय के एक जज पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने न्यायाधीश से जुड़े हितों के टकराव का आरोप लगाया है। वकीलों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत के आदेश पर रोक लगाने के लिए न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन की आलोचना की।
वकीलों ने दावा किया है कि जस्टिस जैन के भाई अनुराग जैन प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के वकील के रूप में काम करते हैं। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने तर्क दिया कि जस्टिस जैन को 'हितों के टकराव' के कारण ईडी की चुनौती पर सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए था। पत्र में लिखा है, 'न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन को खुद को कार्यवाही से अलग कर लेना चाहिए था क्योंकि उनके सगे भाई प्रवर्तन निदेशालय के वकील हैं। न्यायमूर्ति जैन ने कभी भी हितों के इस स्पष्ट टकराव की घोषणा नहीं की।'
रिपोर्ट के अनुसार ख़त में उन्होंने दावा किया कि न्यायमूर्ति जैन ने केजरीवाल की जमानत को लेकर ईडी की चुनौती को सूचीबद्ध करने की अनुमति दी और आदेश अपलोड होने से पहले ही जमानत बांड के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।
उन्होंने तर्क दिया कि यह कार्रवाई अनियमित थी और वकील समुदायों के भीतर बेहद चिंताएँ पैदा करती है। पत्र में वकीलों ने हाईकोर्ट और निचली अदालतों में विशेष रूप से ईडी और सीबीआई से जुड़े मामलों में 'अभूतपूर्व प्रथाओं' पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने दावा किया कि न्यायाधीश जमानत मामलों में देरी कर रहे हैं, न्याय और संवैधानिक स्वतंत्रता को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने लिखा, 'देश के नागरिक बड़ी उम्मीद और भरोसे के साथ अदालतों का रुख करते हैं। यह वह भरोसा है जिसे न्यायपालिका और कानूनी समुदाय द्वारा बनाए रखा जाना चाहिए।'
पत्र में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश न्याय बिंदु द्वारा 20 जून को केजरीवाल को जमानत देने के फैसले का संदर्भ दिया गया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के हवाले से कहा गया था कि उच्च न्यायालयों में भीड़भाड़ से बचने के लिए ट्रायल कोर्ट के त्वरित और साहसिक फैसलों की ज़रूरत है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत से मिली जमानत पर 25 जून को रोक लगा दी। जस्टिस सुधीर कुमार जैन की एकल पीठ ने ईडी की उस अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया जिसमें निचली अदालत के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
निचली अदालत के आदेश में 20 जून को केजरीवाल को जमानत दी गई थी। राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश न्याय बिंदु ने 20 जून को मुख्यमंत्री को जमानत दे दी थी और ईडी के जमानत आदेश को 48 घंटे तक स्थगित रखने की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद ईडी ने पिछले शुक्रवार को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 21 जून को उच्च न्यायालय ने ईडी की रोक लगाने की अर्जी पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रखते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को 'दो-तीन दिन' के लिए स्थगित कर दिया था।
राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश न्याय बिंदु ने 20 जून को मुख्यमंत्री को जमानत दे दी थी और ईडी की जमानत आदेश को 48 घंटे तक स्थगित रखने की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद ईडी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। 21 जून को उच्च न्यायालय ने ईडी की रोक लगाने की अर्जी पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रखते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को 'दो-तीन दिन' के लिए स्थगित कर दिया था।
हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने ज़मानत देते समय अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और कहा कि निर्णय देने में चूक हुई है। इसमें अभियोजन पक्ष को आवेदन पर बहस करने के लिए समय नहीं देना और धन शोधन निवारण अधिनियम में रिहाई के लिए शर्तों पर उचित रूप से चर्चा करने में विफल होना शामिल है।
निचली अदालत ने कहा था कि ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय अपराध की आय के संबंध में मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई सीधा साक्ष्य देने में विफल रहा है। अदालत ने ईडी पर पक्षपातपूर्ण तरीक़े से भी काम करने का आरोप लगाया। राउज एवेन्यू कोर्ट की जज न्याय बिंदु ने कहा था कि 'न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि होते हुए दिखना चाहिए'।
जज ने कहा, 'यदि कोई आरोपी अपनी बेगुनाही साबित होने तक सिस्टम के अत्याचारों को झेलता है, तो वह कभी यह कल्पना नहीं कर सकता कि उसके पक्ष में वास्तव में न्याय हुआ है।' यह देखते हुए कि प्रथम दृष्टया आधार पर केजरीवाल का अपराध अभी तक स्थापित नहीं हुआ है, अदालत ने उन्हें जमानत दे दी।
जज न्याय बिंदु ने कहा था कि चूंकि ईडी का मानना है कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य केजरीवाल के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए किसी भी तरह से साक्ष्य हासिल करने में समय लग रहा है।