सुरभि कारवा नाम की लड़की ने चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई के हाथों पुरस्कार नहीं लिया। सुरभि ने ऐसा क्यों किया, जबकि लॉ की पढ़ाई करने वाले और वक़ालत को अपना करियर बनाने वाले किसी भी शख़्स के लिए सीजेआई के हाथों पुरस्कार मिलना बेहद सम्मान की बात है। सुरभि ने ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया क्योंकि सीजेआई गोगोई पर हाल ही में यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे। बाद में उन्हें इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई थी।
कार्यक्रम के दौरान शनिवार को जब नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली में एलएलएम में फ़र्स्ट आने के लिए सुरभि का नाम पुकारा गया तो वह वहाँ नहीं थीं। सुरभि अपने ऑफ़िस में थीं। तब सुरभि की ग़ैर-मौजूदगी में यह मेडल प्रोफ़ेसर जी. एस. बाजपेयी ने लिया। ख़ास बात यह है कि कारवा को इस बात का पता था कि उसे सम्मानित किया जाएगा, लेकिन जब उसे यह पता चला कि हो सकता है कि यह पुरस्कार उसे सीजेआई गोगोई के हाथों मिलना है तो उसने तुरंत इस कार्यक्रम में न जाने का फ़ैसला किया।
सुरभि ने अंग्रेजी अख़बार, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, ‘मैंने अपनी पढ़ाई के दौरान जो कुछ भी सीखा उसने मेरे मन में इस बात की आशंका को पैदा कर दिया कि मुझे सीजेआई गोगोई से पुरस्कार लेना चाहिए या नहीं। जब उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे तो तब यह संस्था पूरी तरह फ़ेल रही थी।’ सुरभि ने कहा, ‘मैं ख़ुद से इस बात का जवाब माँग रही हूँ कि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने में वकीलों की क्या भूमिका होनी चाहिए और यह वही बात है जिस पर सीजेआई गोगोई ने अपने भाषण में बात की।’
सुरभि ने सीजेआई गोगोई पर लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर अदालत के रुख पर बात करते हुए कहा कि यही वह कारण था जिस वजह से उसने सीजेआई गोगोई से पुरस्कार नहीं लिया। सुरभि ने अख़बार के साथ बातचीत में कहा कि हालाँकि उसने पुरस्कार लेने से मना नहीं किया था।
कारवा ने कहा कि गोल्ड मेडल मिलना अपने आप में बेहद सम्मान की बात है और मैं इसके लिए अपने माता-पिता और टीचर्स का शुक्रिया अदा करती हूँ। लेकिन मेरे लिए पुरस्कार मिलना ज़्यादा अहम है न कि किसी विशेष व्यक्ति से पुरस्कार मिलना। सुरभि कारवा की मास्टर डिग्री संवैधानिक क़ानून में विशेषज्ञता को लेकर है और उनकी थीसिस संविधान सभा के सदस्यों में नारीवादी आलोचना को लेकर है। कारवा ने अपनी थीसिस में इस सवाल को उठाया है कि क्या संविधान एक नारीवादी दस्तावेज़ है
बता दें कि इस साल अप्रैल महीने में सीजेआई रंजन गोगोई पर उन्हीं के दफ़्तर में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर चुकी एक महिला ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। लेकिन मामले की जाँच के लिए बनी सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की इन हाउस कमेटी ने सीजेआई गोगोई पर लगे आरोपों को निराधार बताया था और कहा था कि उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले हैं। जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट मिलने के बाद आरोप लगाने वाली महिला ने कहा था कि उसके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफ़ी हुई है और वह इससे बेहद निराश है। तब यह मामला ख़ासा चर्चा में रहा था।
महिला ने 19 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को एक चिट्ठी लिखी थी और इस चिट्ठी में यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये थे। महिला ने कहा था कि उसे इस घटना के दो महीने के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। उसके पति और उसके देवर जो दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल के पद पर थे, उन्हें भी दिसंबर 2018 में सस्पेंड कर दिया गया था। लेकिन गोगोई ने इन आरोपों के सामने आने के बाद कहा था कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर ख़तरा है यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है। गोगोई ने कहा था कि यह आरोप उन पर तब लगे हैं जब वह अगले हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करने जा रहे हैं।