सरकार ने ही कहा है कि वह चुनाव से जुड़े क़ानून में बदलाव लाने के लिए चुनाव आयोग से संपर्क में है। क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि सरकार इसको लेकर चुनाव आयोग को विधायी समर्थन देने पर विचार कर रही है। उनका कहना है कि सरकार ऐसा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन के माध्यम से 'प्रमुख चुनावी सुधारों' के लिए कर रही है। हालाँकि, उन्होंने यह साफ़ नहीं किया कि जिन क़ानून में सरकार संशोधन करना चाहती है उनमें क्या कमियाँ, खामियाँ या गड़बड़ियाँ हैं।
क़ानून मंत्री के इस बयान से पहले ही चुनाव आयोग ने भी एक पहल की है। फ्रीबीज यानी मुफ़्त की 'रेवड़ी' बांटने को लेकर चुनाव आयोग ने एक परामर्श पत्र जारी किया है। उसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल विधानसभा या आम चुनावों से पहले किए गए वादों की लागत का विवरण दें और उन वादों को पूरा करने के लिए पैसे कहाँ से आएँगे, मतदाताओं को इसकी जानकारी भी दें।
फ्रीबीज पर चुनाव आयोग का यह प्रस्ताव तब आया है जब 'रेवड़ी कल्चर' को लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच बहस चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले यह कहकर बहस को छेड़ा था कि 'हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है। ये कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे। हमें मिलकर उनकी इस सोच को हराना है।' इस पर आम आदमी पार्टी का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा आम जनता के लिए चलाई जाने वाली तमाम वेलफेयर स्कीम्स को रेवड़ी बताकर केंद्र सरकार आम जनता का मजाक बना रही है।
चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर विपक्षी दलों ने कहा है कि यह चुनाव पैनल के अनुमोदन से परे है। इसे 'लोकतंत्र के ताबूत में एक और कील' कहते हुए कांग्रेस ने कहा कि कोई भी सामाजिक विकास योजना कभी भी वास्तविकता नहीं बन पाती यदि नौकरशाही का ऐसा दृष्टिकोण होता।
पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने इसे आयोग द्वारा यू-टर्न लेना बताया। बता दें कि चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर किया था और कहा था कि वह वर्तमान में अदालत के विचाराधीन फ्रीबी बहस से बाहर रहेगा।
बहरहाल, रिजिजू ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि बदलते समय और स्थिति में कुछ चुनावी क़ानूनों में बदलाव की आवश्यकता है जो पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में कम हैं।
कानून मंत्री ने अख़बार को बताया, 'मैं पहले से ही लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और अन्य चुनाव नियमों में बड़े बदलावों का अध्ययन करने के लिए चुनाव आयोग के साथ विस्तृत चर्चा कर रहा हूं। ...नए बदलते समय और स्थिति के अनुसार आवश्यक प्रमुख चुनावी सुधारों के लिए केंद्र उचित परामर्श के बाद कदम उठाएगा।'
बता दें कि चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए चुनाव आयोग ने हाल ही में क़ानून मंत्रालय को लिखा था कि पार्टियों द्वारा प्राप्त नकद चंदे को उनकी कुल प्राप्तियों के 20% तक सीमित करने के लिए आरपी अधिनियम में बदलाव किया जाए। इसने गुमनाम दान को सार्वजनिक करने की सीमा को 20,000 रुपये से घटाकर 2,000 रुपये करने का भी प्रस्ताव दिया था।