दिल्ली के टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों को केंद्र सरकार ने मंगलवार को बातचीत के लिए बुलाया है। यह बातचीत विज्ञान भवन में दिन में 3 बजे होगी। लेकिन इसे लेकर किसानों का विरोध है।
पंजाब किसान संघर्ष कमेटी के नेता सुखविंदर ने मंगलवार को न्यूज़ एजेंसी एएनआई से कहा है कि आंदोलन में 500 से ज़्यादा किसान संगठन शामिल हैं लेकिन सरकार ने सिर्फ़ 32 संगठनों को बुलाया है। उन्होंने कहा कि हम लोग तब तक बातचीत के लिए नहीं जाएंगे जब तक सारे संगठनों के लोगों को नहीं बुलाया जाता।
भारतीय किसान यूनियन (दकौंदा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा है कि उनके साथ पंजाब के 30 किसान संगठन हैं और वे किसी भी तरह की शर्त वाली बातचीत का विरोध करते हैं।
इससे पहले सोमवार शाम को हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेन्स में किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा था कि सरकार सोचती है कि हम थक जाएंगे और हार मान लेंगे लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। उन्होंने कहा कि ये अच्छा होगा कि किसानों के दिल्ली को सील करने से पहले सरकार हमसे बिना किसी शर्त के बातचीत करे। योगेंद्र यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक के किसान संगठन इस आंदोलन से जुड़ गए हैं।
सोमवार को दिल्ली-एनसीआर की टैक्सी यूनियन भी किसानों के समर्थन में उतर आई थी। यूनियन ने कहा है कि अगर दो दिन के भीतर किसानों की मांगें नहीं मानी गईं तो कैब, टैक्सी, ऑटो और ट्रक ड्राईवर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बुराड़ी ग्राउंड आने की अपील को भी किसान ठुकरा चुके हैं। किसान नेताओं का कहना है कि बातचीत के लिए किसी भी तरह की शर्त उन्हें मंजूर नहीं है।
किसानों ने रविवार शाम को भी कहा था कि बुराड़ी ग्राउंड ओपन जेल की तरह है और वे वहां नहीं जाएंगे। किसान नेताओं ने कहा है कि दिल्ली में आने के 5 मुख्य रास्ते हैं, इन जगहों को वे जाम कर देंगे और दिल्ली की जोरदार घेराबंदी करेंगे। किसान नेताओं ने कहा था कि उन्हें रहने-खाने की कोई दिक्कत नहीं है और वे आराम से 4 महीने रोड पर बैठ सकते हैं।
भ्रम फैला रहे हैं लोग: मोदी
किसान आंदोलन के शोर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा है कि कुछ लोग किसानों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। नए क़ानूनों के तहत मंडियों को ख़त्म करने को लेकर उठ रहे सवालों को लेकर मोदी ने कहा कि अगर मंडियों और एमएसपी को ख़त्म करना होता तो हम इन पर इतना निवेश क्यों करते। उन्होंने कहा कि सरकार मंडियों को आधुनिक और मजबूत बनाने के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है।
मोदी ने कहा, ‘सरकारों की नीतियों को लेकर सवाल उठना लोकतंत्र का हिस्सा है। लेकिन अब विरोध का आधार सरकार के फ़ैसलों को नहीं बल्कि आशंकाओं को बनाया जा रहा है। ऐतिहासिक कृषि सुधारों के मामले में भी यही खेल खेला जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं जिन्होंने दशकों तक किसानों के साथ लगातार छल किया है।
किसान आंदोलन के कारण विपक्षी दलों के हमले झेल रही सरकार को बचाने उतरे मोदी ने कहा, ‘मुझे एहसास है कि दशकों का छलावा किसानों को आशंकित करता है। लेकिन अब छल से नहीं गंगाजल जैसी पवित्र नीयत के साथ काम किया जा रहा है।’
हर्फ चीमा और कंवर ग्रेवाल।
पंजाबी गायक भी आए साथ
किसानों के आंदोलन के लिए पंजाब और हरियाणा से दिल्ली बॉर्डर आने वाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। इनमें बड़ी संख्या में पंजाबी गायक भी शामिल हैं। ये ऐसे गायक हैं, जिनका दुनिया भर में फैले पंजाबियों के बीच बड़ा मान-सम्मान और फॉलोइंग है और ये दिन रात किसानों के साथ डटे हुए हैं। इनमें कंवर ग्रेवाल और हर्फ चीमा का नाम शामिल है। इसके अलावा भी कई पंजाबी गायक जो अब तक पंजाब में किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे थे, अब दिल्ली बॉर्डर पर ही आकर बैठ चुके हैं।
सुनिए, देवेंद्र शर्मा से खास बातचीत-
दिल्ली में लगेगा जाम
किसानों के दिल्ली बॉर्डर पर आने से राजधानी में जाम की समस्या का खड़ा होना तय है। यूपी की तरफ़ से ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों का इकट्ठा होने से हज़ारों लोग जो ग़ाज़ियाबाद और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाक़ों से दिल्ली में आते हैं, जाम में फंस जाएंगे। इसी तरह सोनीपत से आने वाले लोग सिंघू बॉर्डर पर लगे जाम की वजह से और रोहतक, बहादुरगढ़ और झज्जर से आने वाले लोग टिकरी बॉर्डर पर किसानों के जमावड़े की वजह से जाम में फंसेंगे।
ऐसे में केंद्र सरकार को किसानों से बातचीत के लिए 3 दिसंबर या अपनी शर्तों को मानने का इंतजार न कर तुरंत बातचीत करनी चाहिए, जिससे राजधानी व एनसीआर के लोगों को परेशानी न हो।
किसानों के जबरदस्त आंदोलन से परेशान दिख रही सरकार की ओर से अमित शाह ने शनिवार शाम को भी कहा था कि अगर किसान संगठन ये चाहते हैं कि भारत सरकार उनसे 3 दिसंबर से पहले बात करे तो वे दिल्ली पुलिस द्वारा तय की जगह पर आ जाएं, उसके दूसरे ही दिन भारत सरकार उनसे बातचीत करेगी। लेकिन अगले ही दिन किसानों ने उनकी बात को ठुकरा दिया।