केरल हाई कोर्ट ने डिजिटल न्यूज़ मीडिया और सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले क़ानून पर केंद्र सरकार को नोटिस दिया है। हाई कोर्ट ने 'लाइव लॉ' की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को यह नोटिस जारी किया है।
'लाइव लॉ' ने इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (गाइडलाइन फॉर इंटरमीडियरीज एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड रूल्स) एक्ट,2021 को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी।
जस्टिस पी. वी. आशा ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह आईटी रूल पार्ट तीन के तहत 'लाइव लॉ' के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न करे।
'लाइव लॉ' ने याचिका में क़ानून को चुनौती देते हुए कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 19 'ए', 19 'ए' ('जी') और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता की पैरवी करते हुए वकील संतोष मैथ्यू ने कहा कि इस क़ानून के तहत मीडिया को नियंत्रित करने की प्रक्रिया अनुपात से ज़्यादा और मनमर्जी से चलने वाली है।
इसके पहले डीजीपब यानी समाचार और करेंट अफ़ेयर्स से जुड़े प्रकाशकों ने सूचना व प्रसारण मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर कहा था कि दिशा निर्देश जारी करने से पहले उनसे राय-मशविरा किया जाना चाहिए था। क्विंटिलियॉन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की निदेशक ऋतु कपूर ने कहा था, "डिजिटल न्यूज़ सामग्री से जुड़े सरकारी दिशा-निर्देश पर हमें गहरी आपत्तियाँ हैं।"
बता दें कि नए इनफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमेडियरीज़ एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम 2021, के तहत सरकार ओटीटी और डिजिटल समाचार के लिए एक आत्मनियामक (सेल्फ़ रेगुलेटरी) संस्था का गठन करेगी। यह निकाय आचार संहिता भी बनाएगी और उसकी निगरानी करेगी। यह संस्था अलग-अलग विभागों के लोगों को लेकर एक कमेटी बनाएगी, जो शिकायतों की जाँच करेगी।
यदि प्रकाशकों की आत्मनियामक संस्था शिकायतों का निपटारा नहीं कर सकेगी तो यह कमेटी करेगी। सूचना व प्रसारण मंत्रालय संयुक्त सचिव के स्तर का एक अफ़सर नियुक्त करेगा जो ज़रूरत पड़ने पर ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक कर सकेगा।
इस क़ानून पर क्या कहना है वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का, देखें यह वीडियो।