यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में लव जिहाद को लेकर लाए गए क़ानून के ख़िलाफ़ जमीयत उलेमा ए हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपना पक्ष भी रखने की माँग की है। जमीयत उलेमा ए हिन्द की तरफ़ से दावा किया गया है कि कथित लव जिहाद पर लाया गया क़ानून ग़ैर संवैधानिक और ग़ैर क़ानूनी है।
जमीयत की तरफ़ से सवाल उठाया गया है कि क्या कोई मुसलिम किसी ग़ैर मुसलिम को कोई धार्मिक पुस्तक (क़ुरान, हदीस आदि) देता है और वह ग़ैर मुसलिम उसे पढ़कर मुसलिम धर्म अपनाना चाहता है तो क्या धार्मिक पुस्तक देना भी नये क़ानून के हिसाब से ‘प्रलोभन’ में आयेगा।
जमीयत उलेमा ए हिन्द की तरफ़ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि यूपी सरकार के पास किए गये क़ानून उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 के ज़्यादातर प्रावधान ग़ैर संवैधानिक और ग़ैर क़ानूनी हैं। जमीयत का कहना है कि नये क़ानून में प्रलोभन से धर्म परिवर्तन को ग़ैर क़ानूनी क़रार दिया गया है, इसी क़ानून में किसी को कोई गिफ्ट देना भी प्रलोभन की परिभाषा में शामिल होगा।
अपने धर्म में लौटना ग़ैर क़ानूनी नहीं!
दाखिल याचिका में कहा गया है कि अगर कोई शख्स अपना धर्म परिवर्तन कर लेता है और कुछ समय के बाद दोबारा से अपने धर्म में लौट आता है तो नये क़ानून के हिसाब से वह ग़ैर क़ानूनी कृत्य नहीं करता, चाहे दोबारा वापसी दबाव, प्रलोभन, बहका कर या फरेब से क्यों न कराया गया हो। उदाहरण के तौर पर यदि कोई ‘क’ शख्स ‘ख’ में धर्म परिवर्तन करता है और दोबारा से ‘क’ अपने धर्म में वापस आ जाता है तो ये नये क़ानून के अंतर्गत ‘धर्म परिवर्तन’ नहीं कहलाया जाएगा।
क़ानून की आम धारणा होती है कि तब तक किसी आरोपी को दोषी नहीं माना जा सकता है जब तक कि उसे क़ानून से दोषी साबित नहीं कर दिया जाता। भारतीय क़ानून के मुताबिक़ आरोप लगाने वाले की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह साबित करे कि दूसरे पक्ष ने ग़लत किया है।
नये क़ानून को लागू करने के तरीक़ों पर जाएँ तो यह साफ़ है कि नया क़ानून किसी भी तरह के धर्म परिवर्तन को आपराधिक दृष्टि से ही देखता है। यानी जिस शख्स ने धर्म परिवर्तन किया है (अपने मन से या बिना मन से ही) उसे ही साबित करना होगा कि उसने धर्म परिवर्तन बिना किसी छल, धोखे, प्रलोभन के किया है। साफ़ है नये क़ानून ने पूरी आपराधिक प्रक्रिया को ही उल्टा कर दिया है।
साथ ही नये क़ानून में ग़ैर क़ानूनी धर्म परिवर्तन को संज्ञेय और ग़ैर ज़मानती अपराध बना दिया है यानी पुलिस बिना वारंट ही उस शख्स को गिरफ्तार कर सकती है। यह कोर्ट पर निर्भर करेगा कि उसे ज़मानत दी जाए या जेल में ही रखा जाए।
अंतरजातीय विवाह
भारत जैसे देश में अंतरजातीय विवाह या अंतरधार्मिक विवाह को लेकर वैसे ही समाज में कटुता भरी है। माता-पिता ऐसे विवाहों के ख़िलाफ़ हैं और इस तरह का विवाह करने वाले लड़का-लड़की को तमाम यातनाओं से गुजरना भी पड़ता है, यहाँ तक कि ऑनर किलिंग जैसे मामले भी सामने आते हैं। दो व्यस्क अपनी मनमर्ज़ी से बिना किसी दबाव में धर्म परिवर्तन करके भी शादी करना चाहते हैं तो उन पर भी लगातार दबाव बनाया जाता है।
नये क़ानून के मुताबिक़ अपनी मर्जी से शादी करने वाले दो वयस्कों के मामले में परिजन भी पुलिस में मामला दर्ज करा सकते हैं। साफ़ तौर पर इस तरह के धर्म परिवर्तन करने वालों को परेशान करने का साधन नये क़ानून के अंतर्गत दे दिया गया है।
शादी से असंतुष्ट परिजन दर्ज करा हैं केस
याचिका में दावा किया गया है कि नये क़ानून के लागू होने के 1 महीने के अंदर 14 मामले दर्ज किए गये हैं जिनमें केवल 2 मामलों में ही पीड़ित लड़की की तरफ़ से शिकायत दर्ज करायी गयी है जबकि बाकी मामलों में परिजनों की तरफ़ से ही शिकायत दर्ज करायी गयी है। हालाँकि याचिका में यह भी कहा गया है कि इन 14 में से 13 मामलों में हिन्दू लड़कियाँ हैं।
नये क़ानून के मुताबिक़ धर्म परिवर्तन करने का विचार करने वाले शख्स को ज़िला अधिकारी के पास 60 दिनों पहले अर्जी लगानी होगी जबकि धर्म परिवर्तन करने जा रहे व्यक्ति को 30 दिनों पहले। इन दोनों ही मामलों में उस शख्स को जान का ख़तरा बन जाएगा अगर वह परिवार की मंजूरी के बिना धर्म परिवर्तन करेगा। साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट से आए व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आदेश के ख़िलाफ़ किया गया प्रावधान होगा।
वीडियो में देखिए, लव जिहाद- निशाने पर मुसलमान?
कई राज्यों में क़ानून
यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश जहाँ क़ानून पास कर लागू किया जा चुका है, वहीं मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने क़ानून पास कर दिया है जिसे जल्द अमल में ला दिया जाएगा। याचिकाकर्ता जमीयत उलेमा ए हिन्द ने कहा है कि इन सब राज्यों से पास हुए या होने जा रहे कथित लव जिहाद क़ानून ग़ैर संवैधानिक और ग़ैर क़ानूनी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया है नोटिस
शादी के लिए ग़लत तरीक़े से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बनाये गए यूपी और उत्तराखंड के क़ानून के ख़िलाफ़ दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने हालाँकि इस मामले में बनाए गए क़ानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
चीफ़ जस्टिस एस ए बोबडे की अगुवाई वाली बेंच ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है।
'भयानक हैं नए बने क़ानूनों के प्रावधान'
याचिकाकर्ता ने क़ानून पर रोक लगाने की मांग की और कहा कि शादी के दौरान भी लोगों को उठाया जा रहा है। इन क़ानूनों का कुछ प्रावधान काफ़ी भयानक है क्योंकि शादी के लिए सरकार से इजाज़त का प्रावधान किया गया है जो बिल्कुल आपत्तिजनक है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उत्तराखंड और यूपी राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिये चार हफ्ते का वक़्त दिया। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने लगातार क़ानून पर स्टे की गुहार लगाई तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नहीं सुना है, ऐसे में यह नहीं हो सकता और स्टे की गुहार को ठुकरा दिया।