हमेशा से यह बात रही है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है: दुष्यन्त दवे

01:34 pm Aug 17, 2023 | सत्य ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सातवें दिन अनुच्‍छेद 370 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। 

गुरुवार को कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यन्त दवे की दलीलें सुनी। इसमें उन्होंने अनुच्छेद 370 के विविध पहलुओं पर दलीलें दी। लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यन्त दवे ने अपनी दलीलें देते हुए कहा कि, राष्ट्रपति अकेले ही संविधान सभा के प्रस्ताव पर कार्रवाई कर सकते हैं। अनुच्छेद 370(1) इसलिए बचा हुआ है क्योंकि यदि बाद में संविधान में संशोधन किया जाता है और जम्मू-कश्मीर में भी नए अनुच्छेद लागू किए जाने हैं तो उस खंड का उपयोग किया जा सकता है। जहां तक 370(3) का संबंध है, राष्ट्रपति कार्यकारी अधिकारी बन गए। 

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के सातवें दिन वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यन्त दवे ने दलील दी कि यह सिर्फ एक नैरेटिव है कि अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है, और यह पूरी तरह से गलत है। हमेशा से यह बात रही है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू ने भी इस नैरेटिव को खारिज कर दिया था। 

उनकी दलील पर सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि आप कह रहे हैं कि 370(1) का अस्तित्व बना हुआ है तो आप यह नहीं कह सकते कि 370(3) का अस्तित्व समाप्त हो गया है। या तो सब कुछ एक साथ रहता है या सब कुछ एक साथ नष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि, यदि खंड 3 के संबंध में आपका कथन सही है, तो 1957 में संविधान सभा द्वारा अपना कार्य पूरा करने के बाद कोई भी संवैधानिक संशोधन नहीं किया जा सकता है। इसे संवैधानिक प्रथा में ही झुठलाया गया है। संवैधानिक संशोधन हुए और 2019 तक होते रहे। 

यह एक वादा था जिसे किसी भी समय तोड़ा नहीं जा सकता था

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अनुच्छेद 370 पर इससे पहले बुधवार को छठे दिन हुई सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अपनी दलीलें देते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 विशेष दर्जे को लेकर किया गया एक वादा था। इसे किसी भी समय तोड़ा नहीं जा सकता था।अनुच्छेद 370 एक असामान्य मसौदा है। यह उद्देश्य और उद्देश्य की दृष्टि से अस्थायी है। एक बार जब वह उद्देश्य पूरा हो जाता है, तो राष्ट्रपति के पास करने के लिए कुछ भी नहीं बचता है। उन्होंने कहा कि न्यायालय को हस्तक्षेप करने की जरूरत है, एक कानून बनाना चाहिए, ताकि संवैधानिकता लागू हो। 

अनुच्छेद 370 ने तत्कालीन राज्य को आंतरिक संप्रभुता दी

लॉ से जुड़ी खबर देने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर हुई सुनवाई के छठे दिन वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने भी दलीलें दी थी। उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 370 ने तत्कालीन राज्य को आंतरिक संप्रभुता दी थी, जिसे अस्वीकार करने का मतलब है कि निरस्त करने से पहले राष्ट्रपति शासन लगाना अपने उद्देश्य में विफल रहा है। राष्ट्रपति शासन के दौरान, अनुच्छेद 3 और 4 को लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि उनमें सशर्तता जुड़ी हुई है, और सशर्तता राज्य विधायिका के साथ निहित है। और यहां विधायिका संसद थी और राज्यपाल राष्ट्रपति बन गये। धवन ने इस बात पर जोर दिया कि संसद को किसी राज्य की विधायिका का स्थान नहीं दिया जा सकता है। जैसा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के दौरान किया गया था।

संविधान में विविध प्रावधान हैं जिन्हें यूं ही खत्म नहीं किया जा सकता

बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पूछा था कि, क्या अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन होने पर संसद संविधान के अनुच्छेद 256 का सहारा लेकर कानून पारित कर सकती है? इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा था कि जब यह कोई कानून पारित करती है, तो इसे संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 की शर्तों का पालन करना होता है। कृपया अनुच्छेद 168 देखें। यह हमारे देश की संघीय संरचना के लिए सुरक्षा उपाय हैं। ये वे सीमाएं हैं जो संविधान के संदर्भ में संघीय ढांचा है। वरिष्ठ वकील  राजीव धवन ने कहा कि किसी राज्य की स्वायत्तता को इस तरह से ख़त्म नहीं किया जा सकता है। उन्होंने उत्तर-पूर्व भारत के कुछ राज्यों और क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करने वाले विशेष संवैधानिक प्रावधानों का उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि संविधान में विविध प्रावधान हैं जिन्हें यूं ही खत्म नहीं किया जा सकता है।धवन ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान को एक क़ानून की तरह नहीं पढ़ा जा सकता है और अनुच्छेद 370 संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। 

कथित दुरुपयोग को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए

इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की केंद्र सरकार की कानूनी शक्तियों और ऐसा करने में प्रक्रिया के किसी भी कथित दुरुपयोग को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन की दलीलों पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने बुधवार को कहा था कि शक्ति के अस्तित्व और शक्ति के दुरुपयोग के बीच अंतर है, इसलिए हमें इसे भ्रमित नहीं करना चाहिए।  

अनुच्छेद 370 को हटाना  'राजनीतिक कृत्य' था

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर चल रही सुनवाई में बीते 8 अगस्त को मुख्य याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें दी थी। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया वह गलत था और वह एक 'राजनीतिक कृत्य' था। राज्यपाल और केंद्र सरकार अनुच्छेद 370 को अमान्य करने के लिए मिलकर काम कर रहे थे। कपिल सिब्‍बल ने कहा था कि जब अनुच्छेद 370 लागू था तब भी भूमि और पर्सनल लॉ को छोड़कर अधिकतर भारतीय कानून जम्मू कश्मीर में लागू होते थे। फिर 370 को हटाने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा था कि सिर्फ राजनीतिक संदेश देने के लिए हमने अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया है। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद अब वहां करीब 1200 कानून लागू होते हैं। पहले वहां शिक्षा का अधिकार नहीं मिलता था जो कि अब मिल रहा है।